भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी इसरो का चंद्रयान-3 का लैंडर मॉड्यूल (एलएम) बुधवार शाम को चंद्रमा की सतह पर उतरेगा.
इसकी सफल लैंडिंग होने पर भारत चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुवीय क्षेत्र पर पहुंचने वाला दुनिया का पहला देश बनकर इतिहास रच देगा.
अब बस कुछ ही घंटों का वक्त बचा है. इसरो के इस मिशन पर भारत समेत पूरी दुनिया के वैज्ञानिकों और आम लोगों की निगाहें टिकी हुई हैं.
चंद्रयान-3 चांद के जिस दक्षिणी ध्रुवीय क्षेत्र पर उतरने की कोशिश करेगा, वो काफी रहस्यमयी माना जाता है.
नासा का कहना है कि यहां ऐसे कई गहरे गड्ढे और पहाड़ हैं, जिनकी छांव वाली सतह पर अरबों वर्षों से सूर्य की रोशनी नहीं पड़ी है.
हाल में ही चंद्रयान ने चांद की कुछ तस्वीरें भेजी थीं. जिसमें लोगों को चांद पर काफी गड्ढे नजर आए.
ये गड्ढे यहां चांद पर करीब चार अरब साल पहले आकाशीय पिंडों की टक्कर की वजह से बने थे. इन गड्ढों को इंपैक्ट क्रेटर भी कहा जाता है.
चांद का दक्षिणी ध्रुवीय क्षेत्र करीब ढाई हजार किलोमीटर चौड़ा है. इसके साथ ही ये आठ किलोमीटर गहरे गड्ढे के किनारे स्थित है. जिसे सौर मंडल का सबसे पुराना इंपैक्ट क्रेटर भी कहा जाता है.
नासा के अनुसार, चंद्रमा के इस हिस्से में सूर्य क्षितिज के नीचे या हल्का ऊपर रहता है. ऐसे में यहां दिन में थोड़ी बहुत रोशनी पहुंचती है. इस दौरान तापमान 54 डिग्री सेल्सियस तक रहता है.