04 April 2025
ताजमहल पर वक्फ बोर्ड ने कई बार अपना दावा किया है, लेकिन कोर्ट ने हर बार इसे खारिज कर दिया है. ताजमहल पर दावे को लेकर विवाद 1998 में शुरू हुआ था.
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1998 में इरफान बेदार ने उत्तर प्रदेश सुन्नी वक्फ बोर्ड के समक्ष ताजमहल को वक्फ की संपत्ति घोषित करने का अनुरोध किया था. तब बोर्ड ने ASI से इसका जवाब मांगा था. ASI ने इसका विरोध किया था. फिर भी बोर्ड ने इसे वक्फ की संपत्ति घोषित कर दी थी.
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वक्फ बोर्ड ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) को एक नोटिस जारी किया था, जो ताजमहल का प्रबंधन करने वाली एजेंसी है. इसके बाद इस मुद्दे ने एक लंबी कानूनी लड़ाई को जन्म दिया.
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2004 में बेदार ने ताजमहल का केयरटेकर बनने की अपनी मांग के लिए कानूनी सहायता की मांग करते हुए इलाहाबाद उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया. उच्च न्यायालय ने वक्फ बोर्ड को मामले को गंभीरता से लेने की सलाह दी.
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2005 में बोर्ड ने ताजमहल को वक्फ संपत्ति के रूप में पंजीकृत करने का फैसला किया.एएसआई ने तुरंत इस फैसले के खिलाफ अपील की और कानूनी लड़ाई सुप्रीम कोर्ट चली गई.
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तब बोर्ड की ओर से कहा गया कि शाहजहां ने ही ताजमहल का वक्फनामा तैयार करवाया था. कोर्ट ने इस बात का सबूत मांगा कि ताजमहल को मुगल बादशाह शाहजहां ने खुद वक्फ की संपत्ति घोषित किया था.
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2010 में कोर्ट ने वक्फ बोर्ड के उस फैसले पर रोक लगा दी जिसमें ताजमहल को वक्फ की संपत्ति घोषित की गई थी और पूरी जांच के आदेश दिए गए.
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कोर्ट ने कहा कि मुगलकाल का अंत होने के साथ ही ताजमहल समेत अन्य ऐतिहासिक इमारतें अंग्रेजों को हस्तांतरित हो गई थीं. आजादी के बाद से यह स्मारक सरकार के पास है और एएसआई इसकी देखभाल कर रहा है.
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फिर अप्रैल 2018 में यह मामला एक महत्वपूर्ण मोड़ पर पहुंच गया जब सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर हस्तक्षेप किया. न्यायालय ने वक्फ बोर्ड के दावे पर सवाल उठाते हुए कहा कि उनके पास ताजमहल के स्वामित्व का समर्थन करने के लिए कोई ठोस सबूत नहीं है.
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सुप्रीम कोर्ट ने वक्फ बोर्ड से शाहजहां द्वारा हस्ताक्षरित मूल दस्तावेज उपलब्ध कराने की मांग की. ताकि यह साबित हो सके कि उन्होंने ताजमहल को वक्फ संपत्ति घोषित किया था.
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कोर्ट ने टिप्पणी की थी कि भारत में कौन स्वीकार करेगा कि ताजमहल वक्फ बोर्ड का है?यह 250 से अधिक वर्षों तक ईस्ट इंडिया कंपनी के कब्जे में था. उसके बाद, यह केंद्र सरकार के पास चला गया.
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एएसआई इसके प्रबंधन का प्रभारी रहा है, और इसे प्रशासित करने का अधिकार उसके पास था. तब वक्फ बोर्ड आवश्यक सबूत देने में विफल रहा. अगली सुनवाई के दौरान वक्फ बोर्ड के प्रतिनिधियों ने माना कि ताजमहल पर उनका कोई हक नहीं है.
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फिर भी बोर्ड ने तर्क दिया कि ताजमहल अल्लाह का है.इस वजह से केवल व्यावहारिक उद्देश्यों के लिए वक्फ बोर्ड द्वारा ही इसे प्रबंधित किया जाना चाहिए.
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इस पर ASI ने चेतावनी दी कि अगर ऐसा किया जाता है तो इससे खतरनाक मिसाल कायम होगी और आगे लाल किला और फतेहपुर सीकरी जैसे महत्वपूर्ण स्मारकों पर दावे हो सकते हैं.
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