भारत के 'टाइटैनिक' को भूली दुनिया! जब समंदर में समा गए सैकड़ों लोग

भारत के 'टाइटैनिक' को भूली दुनिया! जब समंदर में समा गए सैकड़ों लोग

Credit- Getty Images, Twitter, Pexels, Pixabay

अटलांटिक महासागर में 1912 को डूबे टाइटैनिक का मलबा दिखाने गई टाइटन पनडुब्बी हादसे का शिकार हो गई है. इसमें पांच लोग सवार थे.

सभी को OceanGate कंपनी ने मृत घोषित कर दिया है. कहा जा रहा है कि सफर शुरू होने के बाद पनडुब्बी में धमाका हुआ और ये दो हिस्सों में बंट गई.

अब इस हादसे के बाद से दुनिया भर में एक बार फिर टाइटैनिक जहाज हादसा चर्चा में आ गया है.

लोगों का कहना है कि ये जगह हादसे में मारे गए 1500 लोगों की कब्रगाह है. और इससे किसी तरीके की छेड़छाड़ नहीं होनी चाहिए.

बेशक दुनिया आज टाइटैनिक हादसे की बात कर रही है, जो ब्रिटेन से अमेरिका जाने के दौरान हुआ था.

मगर क्या भारत के टाइटैनिक हादसे के बारे में आप जानते हैं? भारत में भी ऐसा ही एक हादसा हुआ था, जिसमें 690 लोग समुद्र में समा गए थे.

हादसे से जुड़ी कई बातें बादमें सामने आती रहीं. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, हादसे का शिकार बने जहाज का नाम एसएस रामदास था.

रिपोर्ट में फिल्म निर्देशक किशोर पांडुरंग बेलेकर के हवाले से लिखा गया है कि उन्हें इस हादसे पर फिल्म बनाने का ख्याल साल 2006 में आया था.

इसके बाद उन्होंने रामदास के बारे में जानकारी जुटाने का काम शुरू कर दिया. वो दस साल तक हादसे में बचे तमाम लोगों से मिले.

इसके साथ ही उन्होंने कई अखबार पढ़े और अपनी रिसर्च करते रहे. इस काम में उनकी मदद वैज्ञानिक खाजगीवाले ने की.

बेलेकर के सफर की शुरुआत अलीबाग के बारकू शेठ मुकादम से मिलकर हुई. ये हादसे में बचने वाले लोगों में शामिल हैं.

सबसे आखिर में बोलेकर ने दक्षिण अफ्रीका में रहने वाले अब्दुल कैस से मुलाकात की. वो भी इस हादसे से बचकर निकलने वालों में शामिल थे.

रामदास जहाज को बनाने का काम स्वान और हंटर कंपनी ने किया था. ये वही कंपनी है, जिसने महारानी एलिजाबेथ का जहाज तैयार किया था.

साल 1936 में बने रामदास की लंबाई 179 मीटर, चौड़ाई 29 फीट थी. इसमें 1000 यात्री सवार हो सकते है.

ये हादसा उस वक्त हुआ जब भारत में स्वतंत्रता संग्राम अपने उफान पर था. कुछ साल बाद इंडियन कोऑपरेटिव स्टीम नेविगेशन कंपनी ने इसे खरीद लिया.

समान विचार वाले कुछ राष्ट्रवादियों ने इस कॉपरेटिव नेविगेशन कंपनी की स्थापना की. इसकी शुरुआत कोंकण तट पर सुखकर बोट सेवा के तौर पर हुई.

इसे लोग माझी आगबोट कंपनी कहते थे. कंपनी ने इसी वजह से जहाजों के नाम भी साधु संतों के नाम पर रख दिए.

फिल्म निर्देशक को अपनी रिसर्च के दौरान ही पता चला कि उसी रास्ते पर दो और जहाज हादसे का शिकार हुए थे. 

रामदास से पहले 11 नवंबर, 1927 को एसएस जयंती और एसएस तुकाराम उसी रास्ते पर, ठीक उसी दिन, करीब उसी वक्त डूबे थे.

जयंती में 96 लोगों की मौत हुई थी. वहीं तुकाराम में 48 लोगों की मौत हुई थी, जबकि 96 की जान बचा ली गई.

इसके 20 साल बाद उसी रास्ते पर रामदास भी हादसे का शिकार हुआ. जिसमें करीब 700 लोगों की मौत हो गई.

जानकारी के मुताबिक, जहाज पर 778 लोग सवार थे. इसने मुंबई से 17 जुलाई, 1947 को अपना सफर सुबह 8 बजे शुरू किया.

ये रेवास के लिए निकला था. मछुआरे और छोटे व्यापारियों के साथ साथ कुछ अंग्रेज अधिकारी भी अपने परिवार के साथ जहाज पर सवार थे.

सीटी बजते ही जहाज तेजी से आवाज करता हुए चल पड़ा. 13 किलोमीटर दूर पहुंचते ही बारिश और तेज हो गई. तेज हवाएं भी चल रही थीं.

अब धीरे धीरे जहाज में पानी भरने लगा. आपस में बात करते लोग अचानक खौफ से घिर गए. वो एकदम शांत थे.

पूरे जहाज में देखते ही देखते सन्नाटा पसर गया. तभी जहाज एक तरफ को झुका और लोगों ने चीखना चिल्लाना शुरू कर दिया.

तब जहाज पर बेहद कम लाइफ जैकेट्स मौजूद थे. इसके लिए लोगों ने लड़ना शुरू कर दिया. हर तरफ अफरा तफरी का माहौल था.

जहाज के नीचे झुकते ही जिन लोगों को तैरना आता था वो पानी में कूद गए. जब रामदास एक द्वीप तक पहुंचा तभी बड़ी लहर का उससे सामना हुआ.

अब जहाज एक तरफ को पलट गया. कई लोग तिरपाल में फंस गए और निकल नहीं पा रहे थे. तभी एक और लहर आई और जहाज पूरी तरह डूब गया.

इसे भारत के समुद्री इतिहास का सबसे बड़ा हादसा कहा जाता है. जहाज सुबह करीब 9 बजे पानी में डूबा था. लेकिन मुंबई में शाम 5 बजे इसकी खबर लगी.

जो लोग बचकर लौटे उन्होंने हादसे की कहानी बताई. मगर बहुत से लोग ऐसे भी थे, जिनके शव तक नहीं मिले.

रामदास जहाज 17 जुलाई, साल 1947 के दिन डूबा था. इसके करीब एक महीने बाद हमारा देश आजाद हो गया.

एक तरफ पूरा देश आजादी के जश्न में डूबा था, दूसरी तरफ रामदास के डूबने से समंदर में समाने वालों के अपने उनकी तलाश में जुटे थे. (तस्वीरें- प्रतीकात्मक)