कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज में 9 अगस्त को एक ट्रेनी डॉक्टर के साथ हुए बलात्कार और हत्या के बाद पश्चिम बंगाल सरकार विधानसभा में एंटी रेप बिल पेश करने जा रही है. कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि राज्य में इस कानून को लागू करने के लिए राष्ट्रपति की मंजूरी आवश्यक है. हालांकि राज्य द्वारा ऐसा संशोधन लाना संवैधानिक रूप से बिल्कुल सही है.
पश्चिम बंगाल विधानसभा बलात्कारियों को सजा के तौर पर मृत्युदंड देने का विधेयक पेश करने जा रही है. पश्चिम बंगाल कैबिनेट ने 28 अगस्त को बलात्कार को रोकने और ऐसे अपराधों के लिए कड़ी सजा सुनिश्चित करने के उद्देश्य से एक नया विधेयक पेश करने के प्रस्ताव को मंजरी दी थी.
'अगर हमारे पास शक्ति होती...'
28 अगस्त को मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा था कि अगर राज्य सरकार के पास शक्ति होती तो वह ट्रेनी डॉक्टर मामले में आरोपी को मृत्युदंड दिलाती. उन्होंने कहा, 'अगर राज्य सरकार के पास शक्ति होती तो हम डॉक्टर की हत्या के आरोपी को सात दिनों के भीतर मृत्युदंड दिलाते. हम डॉक्टर के बलात्कार-हत्या मामले में आरोपी को मृत्युदंड दिलाने के लिए आंदोलन शुरू करेंगे.'
क्या बोले लीगल एक्सपर्ट?
वरिष्ठ अधिवक्ता और सुप्रीम कोर्ट के वकील संजय घोष ने आजतक को बताया, 'आपराधिक कानून समवर्ती सूची का मामला है, इसलिए राज्य सरकार और केंद्र सरकार आपराधिक कानून बना सकते हैं. हालांकि, अगर इस मामले में पहले से ही केंद्रीय कानून लागू है तो राज्य सरकार के पास राज्य संशोधन पारित करने का एकमात्र तरीका अनुच्छेद 254 के तहत इसे मंजूरी के लिए आरक्षित करना और केंद्र सरकार की सहमति लेना है.'
मंजूरी देने की कोई समयसीमा नहीं
संवैधानिक कदम के बारे में घोष ने कहा, 'पश्चिम बंगाल सरकार अपना स्वतंत्र राज्य संशोधन पारित कर सकती है और इसे राष्ट्रपति के पास भेज सकती है, जो संविधान के दायरे में है. यदि राष्ट्रपति उस राज्य संशोधन को स्वीकार कर लेते हैं तो इस मामले में पश्चिम बंगाल राज्य का संशोधन मान्य होगा.'
क्या राष्ट्रपति द्वारा मंजूरी देने के लिए कोई समयसीमा तय की गई है, घोष ने कहा, 'राष्ट्रपति केंद्र सरकार की सलाह पर चलते हैं. उन पर सहमति देने का कोई दायित्व नहीं है. साथ ही, संविधान में ऐसी कोई समयसीमा नहीं दी गई है जिसके भीतर यह प्रक्रिया पूरी करनी होगी.'
सत्र बुलाने का तरीका चुनौतीपूर्ण
क्या राष्ट्रपति द्वारा मंजूरी देना अनिवार्य है, सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड अश्विनी दुबे ने कहा, 'संविधान में इस तरह के पुनर्विचारित विधेयक को राष्ट्रपति द्वारा मंजूरी देना अनिवार्य है या नहीं, इसका उल्लेख नहीं है.' अश्विनी दुबे ने भी सहमति जताई कि संशोधन लाने का कदम कानूनी रूप से वैध है, लेकिन उन्होंने विशेष विधानसभा सत्र बुलाने के तरीके पर भी सवाल उठाया और कहा, 'केवल राज्यपाल को अनुच्छेद 174 के तहत सत्र बुलाने का अधिकार है, लेकिन इस मामले में सरकार ने खुद ही सत्र बुलाया है, जो एक चुनौतीपूर्ण मुद्दा है.'
केंद्र और राष्ट्रपति की मंजूरी जरूरी
सुप्रीम कोर्ट के वकील सत्यम सिंह राजपूत ने आजतक को बताया, 'चूंकि यह एक आपराधिक कानून है, इसलिए इस विधेयक को केंद्र सरकार से भी मंजूरी की आवश्यकता होगी. गृह मंत्रालय प्रस्तावित कानून की जांच करेगा ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि यह मौजूदा राष्ट्रीय कानूनों और नीतियों के अनुरूप है. इसके अलावा, भले ही केंद्र सरकार विधेयक को मंजूरी दे दे, फिर भी इसे कानून बनने से पहले भारत के राष्ट्रपति की मंजूरी लेनी होगी.'