पश्चिम बंगाल (West Bengal) विधानसभा में पिछले दिनों ममता सरकार ने एंटी-रेप बिल पारित किया लेकिन इसके कानून बनने का रास्ता आसान नहीं लग रहा है. यह विधेयक तब तक कानून नहीं बनेगा, जब तक इस पर राज्यपाल की सहमति नहीं होगी. बंगाल के राज्यपाल सीवी आनंद बोस ने बिल को लेकर ममता सरकार पर नाराजगी जताई है. इसके पीछे की वजह है कि राज्यपाल के पास विधेयक से जुड़ी टेक्निकल रिपोर्ट नहीं भेजी गई है. गुरुवार को ममता बनर्जी सरकार की आलोचना करते हुए सीवी आनंद बोस ने कहा, "मेरे पास एंटी-रेप विधेयक के साथ टेक्निकल रिपोर्ट नहीं भेजी गई है, जो इसे मंजूरी देने के लिए जरूरी है." राज्यपाल ने दावा कि वे बहुत निराश हैं क्योंकि राज्य में विधेयकों के साथ तकनीकी रिपोर्ट न भेजना और फिर उन्हें मंजूरी न देने के लिए राज्यपाल कार्यालय को दोषी ठहराना एक नियमित प्रक्रिया बन गई है.
एजेंसी के मुताबिक, राजभवन के एक अधिकारी बताया, "राज्यपाल ने अपराजिता विधेयक के साथ टेक्निकल रिपोर्ट अटैच करने में फेल रहने के लिए राज्य प्रशासन की आलोचना की है. नियम के मुताबिक, विधेयक को मंजूरी देने पर फैसला लेने से पहले राज्य सरकार के लिए टेक्निकल रिपोर्ट भेजना जरूरी है."
'इन राज्यों की नकल है विधेयक'
सीवी आनंद बोस ने कहा, "यह पहली बार नहीं है, जब सरकार ने टेक्निकल रिपोर्ट नहीं भेजी और विधेयक को मंजूरी न देने के लिए राजभवन को दोषी ठहराया है." राज्यपाल ने राज्य सरकार को इस तरह के अहम मामलों में होमवर्क न करने के लिए भी फटकार लगाई है. उन्होंने आगे कहा, "विधेयक आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र और अरुणाचल प्रदेश द्वारा पारित इसी तरह के विधेयकों की नकल है."
सूत्र के मुताबिक, राज्यपाल ने अपनी राय व्यक्त की है कि ममता बनर्जी केवल पश्चिम बंगाल के लोगों को धोखा देने के लिए धरने की धमकी दे रही हैं, क्योंकि वह भी अच्छी तरह से जानती हैं कि इसी तरह के विधेयक भारत के राष्ट्रपति के पास लंबित हैं.
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पश्चिम बंगाल विधानसभा ने 3 सितंबर को सर्वसम्मति से 'अपराजिता महिला एवं बाल विधेयक (पश्चिम बंगाल आपराधिक कानून एवं संशोधन) विधेयक 2024' पारित किया, जिसमें रेप के दोषियों के लिए मृत्युदंड की मांग की गई है, अगर उनके कृत्यों के परिणामस्वरूप पीड़िता की मृत्यु हो जाती है या वह अचेत अवस्था में चली जाती है और अन्य अपराधियों के लिए पैरोल के बिना आजीवन कारावास की सजा का प्रावधान है.
प्रस्तावित कानून की अन्य अहम विशेषताओं में प्रारंभिक रिपोर्ट के 21 दिनों के अंदर रेप के मामलों की जांच पूरी करना, पिछली दो महीने की समय सीमा में कमी और एक स्पेशल टास्क फोर्स शामिल है, जहां महिला अधिकारी जांच का नेतृत्व करेंगी.
बिल में क्या-क्या प्रस्ताव?
ममता सरकार के नए बिल में भारतीय न्याय संहिता (BNS) की कुछ उन धाराओं में संशोधन का प्रस्ताव है, जो महिला अपराधों के लिए सजा का प्रावधान करती हैं. इनमें धारा 64, 66, 68, 70, 71, 72, 73 और 124 में संशोधन का प्रस्ताव दिया गया है.
इसके अलावा, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) की धारा 193 और 346 में संशोधन का प्रस्ताव है. जबकि, पॉक्सो एक्ट की धारा 4, 6, 8, 10 और 35 में संशोधन का प्रस्ताव रखा गया है.
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BNS से कैसे अलग हुआ ममता सरकार का बिल?
1. दुष्कर्म की सजा
- बीएनएस में क्या?: धारा 64 में दुष्कर्म की सजा का प्रावधान है. इसमें कम से कम 10 साल की सजा का प्रावधान है, जिसे उम्रकैद तक बढ़ाया जा सकता है. इसमें उम्रकैद का मतलब दोषी जब तक जिंदा रहेगा, तब तक जेल में गुजारना होगा. जुर्माने का भी प्रावधान है.
- बंगाल सरकार के बिल में क्या?: उम्रकैद की सजा का प्रावधान है. ऐसे मामलों में कोर्ट दोषी को जिंदगीभर तक की जेल की सजा भी सुना सकती हैं. फांसी की सजा और जुर्माने का प्रावधान भी है.
2. रेप के बाद मर्डर की सजा
- बीएनएस में क्या?: धारा 66 के तहत, अगर रेप के बाद पीड़िता की मौत हो जाती है या वो कोमा जैसी स्थिति में पहुंच जाती है तो कम से कम 20 साल की जेल की सजा का प्रावधान है, जिसे उम्रकैद तक बढ़ाया जा सकता है. मौत की सजा का भी प्रावधान है.
- बंगाल सरकार के बिल में क्या?: ऐसे मामलों में दोषी को मौत की सजा सुनाई जाएगी. जुर्माना भी लगाया जाएगा.
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3. गैंगरेप पर सजा
- बीएनएस में क्या?: धारा 70(1) कहती है कि अगर किसी महिला के साथ गैंगरेप होता है तो सभी दोषियों को कम से कम 20 साल की सजा होगी, जिसे आजीवन कारावास तक बढ़ाया जा सकता है. अगर पीड़िता की उम्र 18 साल से कम है तो सभी दोषियों को कम से कम उम्रकैद की सजा होगी. सभी दोषियों को फांसी की सजा भी हो सकती है.
- बंगाल सरकार के बिल में क्या?: गैंगरेप के मामलों में सभी दोषियों को कम से कम उम्रकैद की सजा होगी. इसमें भी उम्रकैद का मतलब होगा कि दोषी जिंदा रहते जेल से बाहर नहीं आ सकेंगे. मौत की सजा का प्रावधान भी है. जुर्माना भी लगाया जाएगा.
4. बार-बार अपराध करने वालों को सजा
- बीएनएस में क्या?: धारा 71 के मुताबिक, अगर कोई व्यक्ति बार-बार रेप का दोषी पाया जाता है तो उसे कम से कम उम्रकैद की सजा होगी. मौत की सजा भी सुनाई जा सकती है. जुर्माना भी लगाया जाएगा.
- बंगाल सरकार के बिल में क्या?: ऐसे मामले में दोषी व्यक्ति को ताउम्र जेल में ही गुजारने होंगे. उसे मौत की सजा भी सुनाई जा सकती है. जुर्माने का भी प्रावधान है.
5. पीड़ित की पहचान उजागर करने पर सजा
- बीएनएस में क्या?: अगर कोई भी व्यक्ति रेप या गैंगरेप की पीड़िता की पहचान उजागर करता है तो दोषी पाए जाने पर 2 साल की जेल और जुर्माने की सजा का प्रावधान धारा 72(1) में किया गया है.
- बंगाल सरकार के बिल में क्या?: ऐसे मामलों में दोषी पाए जाने पर 3 से 5 साल की सजा का प्रावधान किया गया है. साथ ही जुर्माना भी लगाया जाएगा.
6. कोर्ट से जुड़ी कार्यवाही छापने पर सजा
- बीएनएस में क्या?: ऐसे मामलों में मंजूरी के बगैर कोर्ट से जुड़ी कार्यवाही छापने पर 2 साल तक की जेल हो सकती है. साथ ही जुर्माना भी लगाया जा सकता है. धारा 73 में इसका प्रावधान है.
- बंगाल सरकार के बिल में क्या?: ऐसा करने पर 3 से 5 साल की जेल और जुर्माने की सजा का प्रावधान किया गया है.
7. एसिड अटैक पर
- बीएनएस में क्या?: धारा 124(1) के तहत अगर कोई व्यक्ति ये जानते हुए कि एसिड अटैक करने से दूसरे को गंभीर नुकसान हो सकता है, बावजूद हमला करता है तो दोषी पाए जाने पर कम से कम 10 साल की सजा का प्रावधान है, जिसे उम्रकैद तक बढ़ाया जा सकता है. वहीं, धारा 124 (2) के तहत, एसिड अटैक का दोषी पाए जाने पर 5 से 7 साल की जेल की सजा का प्रावधान है. दोनों ही मामलों में जुर्माना भी लगाया जाता है.
- बंगाल सरकार के बिल में क्या?: दोनों ही धाराओं में संशोधन का प्रस्ताव है, जिसके तहत दोषी व्यक्ति के लिए आजीवन कारावास की सजा का प्रावधान है. ऐसे मामलों में भी आजीवन कारावास का मतलब होगा कि दोषी को जिंदा रहने तक जेल में ही रहना होगा. जुर्माने की सजा का भी प्रावधान भी है.
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क्या 10 दिन में होगी फांसी की सजा?
बंगाल सरकार के बिल में कहीं भी 10 दिन के भीतर दोषी को फांसी की सुनाने का जिक्र नहीं है. हालांकि, ये बिल भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) में संशोधन का प्रस्ताव करता है, जिससे पुलिस की जांच और ट्रायल कम्प्लीट करने की डेडलाइन कम कर दी गई है.
बंगाल सरकार का बिल कहता है कि पहली जानकारी मिलने के बाद 21 दिन के भीतर पुलिस को अपनी जांच पूरी करनी होगी. अगर 21 दिन में जांच पूरी नहीं होती है तो कोर्ट 15 दिन का समय और दे सकती है, लेकिन इसके लिए पुलिस को लिखित में देरी की वजह बताना होगा. जबकि, BNSS पुलिस को दो महीने में जांच पूरी करने का समय देती है. दो महीने में जांच पूरी नहीं होने पर 21 दिन का समय और मिल सकता है.
इसके अलावा, बंगाल सरकार के बिल में इस बात का भी प्रावधान है कि महिलाओं और बच्चों से जुड़े अपराध के मामले में चार्जशीट दाखिल होने के एक महीने के भीतर ट्रायल पूरा करना होगा. जबकि, BNSS में दो महीने का समय है.
अब आगे क्या?
फिलहाल इस बिल को ममता सरकार ने विधानसभा से पास किया है. अब इसे राज्यपाल के पास भेजा जाएगा. राज्यपाल की मंजूरी के बाद इसे राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए भेजा जाएगा. राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद ही ये बिल कानून बनेगा.