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पश्चिम बंगाल: गांव के इस मंदिर की 300 साल पुराना रिवाज बदला, दलितों को मिली एंट्री

बंगाल के गांव कटवा में सामाजिक विषमता को तोड़ते हुए प्रशासन के हस्तक्षेप से 300 साल पुराने 'रीति-रिवाज' को बदल दिया गया है. गांव के दलितों ने गिद्धेश्वर शिव मंदिर में प्रवेश करते हुए पूजा की है. सबसे पहले सौ से अधिक निचली जाति के लोगों के एक वर्ग ने गांव के शिव मंदिर में प्रवेश किया.

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गांव के इस मंदिर की 300 साल पुराना रिवाज बदला, दलितों को मिली एंट्री
गांव के इस मंदिर की 300 साल पुराना रिवाज बदला, दलितों को मिली एंट्री

पश्चिम बंगाल के एक गांव कटवा में सामाजिक विषमता को तोड़ते हुए प्रशासन के हस्तक्षेप से 300 साल पुराने 'रीति-रिवाज' को बदल दिया गया है. गांव के दलितों ने गिद्धेश्वर शिव मंदिर में प्रवेश करते हुए पूजा की है. सबसे पहले सौ से अधिक निचली जाति के लोगों के एक वर्ग ने गांव के शिव मंदिर में प्रवेश किया. प्रशासन की मौजूदगी में निचली जाति के लोगों ने उपासकों की मौजूदगी में मंदिर में घंटी बजाकर और फूल-फल सजाकर शिवजी की पूजा की. ये सभी लोग अपनी लंबे समय से चली आ रही इच्छाएं पूरी होने से खुश हैं.

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गिधेश्वर की पूजा लगभग साढ़े तीन सौ साल पहले पश्चिम बंगाल के पूर्वी बर्दवान जिले के कटवा में जमींदारों के हाथों शुरू हुई थी.लेकिन तब से गांव के निचली जाति के दलित समुदाय दास को उस मंदिर में पूजा करने से रोक दिया गया था. लंबी बैठकों और चर्चाओं के बाद आखिरकार समस्या का हल निकला. अब दास समुदाय के सदस्य अन्य लोगों की तरह पूजा करने के लिए पूर्व बर्दवान जिला के कटवा में गिधेश्वर मंदिर में जा सकते हैं.

तीन सदी पुराने गिधेश्वर शिव मंदिर में पूजा को लेकर कई दिनों तक इलाके में तनाव की स्थिति बनी रही. विवाद की शुरुआत इस साल 26 फरवरी को शिवरात्रि के दिन हुई. दास समाज के 130 घरों के निवासियों ने महादेव की पूजा करने का निर्णय लिया. लेकिन बाधाएं मिली. दोनों पक्षों के बीच अक्सर अशांति होती रहती थी. गांव में उत्तेजना फैल गई. 

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 कुछ दिन पहले गीधग्राम के दासपाड़ा के कुछ निवासियों ने प्रशासन को शिकायत सौंपी थी. उनकी शिकायत थी कि दास पारा के परिवारों को गिधेश्वर के मंदिर में पूजा करने से वंचित किया जा रहा है. प्रवेश करते समय हमारे साथ अभद्रता की जा रही है. निचली जाति होने के कारण गांव के ऊंची जाति के लोग बाधा डाल रहे हैं.

पिछले 24 फरवरी को ही गिधग्राम के दासपाड़ा के 130 परिवारों ने कटवा एसडीओ, कटवा ब्लॉक नंबर एक के बीडीओ और कटवा थाने में आवेदन पत्र जमा किया था. दासपारा के निवासियों ने मांग की कि वे शिवरात्रि पर गांव के मंदिर में शिव के सिर पर जल चढ़ाना चाहते हैं. लेकिन फिर प्रशासन ने उनको माना किया. प्रशासन के मुताबिक, दासपारा के निवासी शिवरात्रि के दिन मंदिर में जल चढ़ाने नहीं गए. फिर एसडीओ ने बैठक की. निर्णय लिया गया कि गांव के सभी लोगों को समान रूप से पूजा करने का अधिकार मिलेगा.

फिर शुक्रवार 7 मार्च को कटवा ब्लॉक 1 के बीडीओ और कटवा के sdpo पुलिस बल लेकर दासपारा के निवासियों में से कुछ महिला और पुरुष को मंदिर में जल चढ़ाने के लिए ले गए. लेकिन घोष पड़ा सहित बाकी ग्रामीणों ने दासपारा परिवारों के महिला और लोगों को मंदिर में प्रवेश करने से रोक दिया और पुलिस प्रशासन के सामने ही भगा दिया. क्षेत्र में झड़प और व्यापक तनाव शुरू हो गया. इसके बाद पुलिस ने एसडीपीओ के आदेश पर भारी संख्या में पुलिस तैनात कर स्थिति को नियंत्रण में करने की कोशिश की. दलित उस दिन की तरह पूजा नहीं कर सके.

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उस दिन मंदिर के सेवायत माधव घोष ने कहा था कि ,'300 साल पुरानी परंपरा जारी है. परंपराएं अचानक नहीं तोड़ी जा सकतीं. दास पारा के लोगों ने हमारी मंदिर समिति को सूचित नहीं किया कि वे पूजा करना चाहते हैं. फिर हम सोचते, लेकिन वे प्रशासन के पास क्यों गये? हम लोगों ने भी प्रशासन को अर्जी डाली है. अब जो होगा देखा जाएगा.'

मंदिर समिति ने प्रशासन को पत्र भेजकर कहा कि गर्भगृह में ब्राह्मणों के अलावा कोई भी प्रवेश नहीं कर सकता है. और ग्रामीणों के एक वर्ग ने प्रशासन से अपील की है कि तीन सदियों से चली आ रही प्रथा नहीं टूटनी चाहिए.

उस विवाद में मंदिर के सेवक बंकिम चट्टोपाध्याय ने कहा था, 'भले ही दास को छोड़कर बाकी सभी लोग पूजा करते हों, लेकिन किसी को भी इस मंदिर में खुद ही अपनी पूजा करने का अधिकार नहीं है. पूजा करने वाले लोग प्रसाद लाते हैं और उसे मंदिर में रखते हैं. ब्राह्मण ही इसे महादेव को अर्पित करते हैं. यह इसी तरह चल रहा है.' उन्होंने यह भी कहा कि 'केवल मंदिर के सेवारत ब्राह्मण, यानी तत्कालीन जमींदार, जिन्होंने ब्राह्मण परिवार को 'बाबा' की पूजा का जिम्मा सौंपा था, वही शिवलिंग पर दूध और पानी चढ़ा सकते हैं. किसी भी बाहरी ब्राह्मण को वहां पूजा करने का अधिकार नहीं है.'

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मंगलवार 11 मार्च को कटवा उपमंडलीय आयुक्त ने एक बैठक बुलाई. बैठक में कटवा के टीएमसी विधायक रवींद्रनाथ चट्टोपाध्याय, मंगलकोट के टीएमसी विधायक अपूर्बा चौधरी, गिधेश्वर मंदिर समिति के प्रतिनिधि और दासपारा के प्रतिनिधि उपस्थित थे. फिर मामले का निपटारा हुआ. कटवा उप-विभागीय मजिस्ट्रेट अहिंसा जैन के सूचना के अनुसार ,'गीधग्राम में मंदिर में पूजा करने की समस्या का समाधान हो गया है. उस गांव के दासपारा के निवासी भी अन्य लोगों की तरह पूजा कर सकते हैं. वे बुधवार से पूजा करेंगे. सभी ने इसे स्वीकार कर लिया है.'

पूर्व बर्दवान जिला परिषद के सवाधिपति/अध्यक्ष श्यामप्रसन्ना लोहार ने कहा, यह बहुत बुरा हो रहा था . ऊंची जाति के ग्रामीण दलित परिवार को मंदिर में पूजा करने से रोक रहे थे.यह स्थिति कई वर्षों से चली आ रही थी. लेकिन प्रशासन ने स्थिति पर काबू पा लिया. अब दलित भी वहां पूजा कर रहे हैं.  

प्रशासन और पुलिस की मदद से गांव के दलित दासों को मंदिर में आकर पूजा करने का अधिकार मिल गया. नियमों के अनुसार, आज 12 मार्च के दिन, पांच निचली जाति के लोग मंदिर में उपासकों की उपस्थिति में, घंटियां बजाईं और फूल और फल से गिधेश्वर शिवजी का पूजा अर्चना की.

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