बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना के बाद अब अफगानिस्तान के पूर्व
राष्ट्रपति हामिद करजई ने भी नागरिकता कानून को लेकर प्रतिक्रिया दी है.
अफगानिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति हामिद करजई ने कहा है कि नागरिकता कानून
के तहत बिना किसी भेदभाव के गैर-मुस्लिमों को भी नागरिकता का अधिकार दिया
जाए.
हामिद करजई ने 'द हिंदू' को दिए इंटरव्यू में कहा कि नागरिकता कानून के तहत हिंदू, सिखों, जैन, बौद्धों, ईसाई और पारसियों को शामिल किया गया है जबकि मुस्लिमों को बाहर रखा गया है. नागरिकता का अधिकार सभी को समान रूप से दिया जाना चाहिए.
करजई ने कहा, अफगानिस्तान में अल्पसंख्यक ही प्रताड़ित नहीं हैं, पूरा देश ही उत्पीड़ित है. हमने युद्ध झेला और लंबे वक्त से संघर्ष में शामिल रहे हैं. अफगानिस्तान में मुस्लिमों, हिंदुओं और सिखों- तीनों प्रमुख धर्मों के लोगों ने बहुत कुछ सहा है.
करजई ने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि अल्पसंख्यकों को सुरक्षा देने की भावना अफगानी मुस्लिमों के संबंध में भी देखने को मिलेगी.
करजई भारत के समर्थक रहे हैं और उन्होंने शिमला से पढ़ाई की है. दिसंबर महीने में विदेश मंत्रालय ने स्पष्ट किया था कि नागरिकता कानून में अफगानिस्तान के अल्पसंख्यकों के साथ उत्पीड़न की जो बात कही गई हैं, वह अतीत की सरकार को लेकर है. अफगानिस्तान की वर्तमान सरकार ने संवैधानिक प्रावधानों के तहत अल्पसंख्यक समुदाय की चिंताओं को कुछ हद तक दूर किया है.
बता दें कि नागरिकता कानून में पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आए प्रताड़ित अल्पसंख्यकों को भारत की नागरिकता दिए जाने का प्रावधान है.
इससे पहले अफगानिस्तान के राजदूत ने भी इस बिल को लेकर आपत्ति जताई थी. अफगानिस्तान के राजदूत
ने कहा था कि वह ऐसे देशों में शामिल नहीं है जहां पर सरकार अल्पसंख्यकों के
साथ भेदभाव करती हो.
उन्होंने कहा था, अफगानिस्तान को पाकिस्तान जैसे देशों के साथ नहीं रखा जा
सकता है. उन्होंने कहा, अल्पसंख्यकों की बात करें तो अफगानिस्तान चार दशकों
से गृहयुद्ध में जूझता रहा है और आप समझ सकते हैं कि युद्ध में क्या होता
है. अफगानिस्तान के सभी नागरिक युद्ध पीड़ित रहे हैं और इसमें उनकी धार्मिक
पहचान की कोई भूमिका नहीं थी.