एक तरफ अमेरिका ने भारत पर ईरान से तेल खरीदने को लेकर पाबंदी लगा रखी है और दूसरी तरफ खुद तेल आयात कर रहा है. भारत दुनिया के उन देशों में है जो अपनी ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए आयात पर निर्भर है जबकि अमेरिका इस मामले में आत्मनिर्भर है. इसके बावजूद अमेरिका ने ईरान के तेल निर्यात पर पाबंदी लगा रखी है और भारत जैसे जरूरतमंद देशों को उससे तेल खरीदने से रोक कर रखा है.
ईरान जबकि भारत को तेल भारतीय मुद्रा से ही देता है और अमेरिकी डॉलर की मांग नहीं करता है. भारत के लिए यह बड़ी राहत की बात थी लेकिन ट्रंप प्रशासन के वक्त से ही ये राहत बंद हो गई थी और बाइडन प्रशासन ने भी इसे जारी रखा है.
समाचार एजेंसी रॉयटर्स के अनुसार, 10 लाख बैरल से ज्यादा ईरानी तेल का एक कार्गो अमेरिका में मार्च महीने में पहुंचा था. रॉयटर्स ने अमेरिकी एनर्जी इन्फर्मेशन एडमिनिस्ट्रेशन यानी ईआईए के डेटा के जरिए यह पता लगाया है. 1991 के बाद अमेरिका ने दूसरी बार ईरान से तेल मंगवाया है. रॉयटर्स का कहना है कि ईआईए ने और कोई विस्तृत जानकारी नहीं दी है. अमेरिका की तरफ से भी इस पर कुछ नहीं कहा गया है. ईआईए डेटा के अनुसार, इससे पहले अक्टूबर 2020 में अमेरिका ने ईरान से तीन हजार बैरल प्रति दिन ईरान से तेल आयात किया था.
बाइडन के राष्ट्रपति बनने के बाद से कहा जा रहा है कि मध्य-पूर्व में ईरान को लेकर अमेरिका की नीति ट्रंप के शासन से अलग होगी और बराक ओबामा के काल में हुआ परमाणु समझौता बहाल किया जा सकता है. बाइडन प्रशासन की तरफ से कहा भी गया है कि ईरान यूरेनियम संवर्धन को लेकर अपनी प्रतिबद्धता जाहिर करता है तो परमाणु समझौता फिर पटरी पर आ सकता है. ट्रंप ने इस समझौते को एकतरफा फैसला लेते हुए तोड़ दिया था. हालांकि, इजरायल बाइडन के इस रुख का विरोध कर रहा है. इजरायल का कहना है कि ईरान ने अपने परमाणु कार्यक्रम पर कोई रोक नहीं लगाई है और पहले की तरह ही चल रहा है.
बाइडन प्रशासन अगर परमाणु समझौते को ईरान के साथ बहाल कर देता है तो ईरान पर कई तरह के अमेरिकी प्रतिबंध हट सकते हैं. ऐसे में भारत ईरान से तेल भी खरीद सकता है. विदेशी मुद्रा का बड़ा हिस्सा भारत तेल खरीदने में लगा देता है क्योंकि अपनी जरूरत का 80 फीसदी से ज्यादा पेट्रोलियम भारत आयात करता है.
ईरान की हमेशा से शिकायत रही है कि भारत अपनी आर्थिक और विदेशी नीति को अमेरिका की छाया से बाहर नहीं आने देता है. ईरान के विदेश मंत्री जवाद जरीफ ने नवंबर 2019 में कहा था कि भारत को अपनी रीढ़ और मजबूत करनी चाहिए ताकि प्रतिबंधों को लेकर अमेरिका के दबाव के सामने झुकने से इनकार कर सके.
जरीफ ने भारत और ईरान के बीच सूफी परंपरा के रिश्तों का भी जिक्र किया था. ईरानी विदेश मंत्री तेहरान में पत्रकारों से बातचीत में कहा था, ''अमेरिकी प्रतिबंधों से पहले उन्हें उम्मीद थी कि भारत ईरान का सबसे बड़ा तेल खरीदार देश बनेगा. अमेरिकी दबाव के सामने भारत को और प्रतिरोध दिखाना चाहिए.''
उन्होंने कहा था, ''ईरान इस बात को समझता है कि भारत हम पर प्रतिबंध नहीं चाहता है लेकिन इसी तरह वो अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को भी नाराज नहीं करना चाहता है. लोग चाहते कुछ और हैं और करना कुछ और पड़ रहा है. यह एक वैश्विक रणनीतिक गलती है और इसे दुनिया भर के देश कर रहे हैं. आप गलत चीजों को जिस हद तक स्वीकार करेंगे और इसका अंत नहीं होगा और इसी ओर बढ़ने पर मजबूर होते रहेंगे. भारत पहले से ही अमेरिका के दबाव में ईरान से तेल नहीं खरीद रहा है."
2018 में ट्रंप ईरान के साथ हुए अंतरराष्ट्रीय परमाणु समझौते से बाहर निकल गए थे. ट्रंप का कहना था कि ईरान परमाणु समझौते की आड़ में अपना परमाणु कार्यक्रम चला रहा है.
इसी समझौते के तहत ईरान से 2015 में अमेरिकी प्रतिबंध हटा था लेकिन ट्रंप ने फिर से इन प्रतिबंधों को लागू कर दिया था. अमेरिकी प्रतिबंधों के कारण ईरान की अर्थव्यवस्था बुरी तरह से ठहर गई है. भारत ने भी इन्हीं प्रतिबंधों के कारण ईरान से तेल खरीदना बंद कर दिया था.
ईरान ने भारत को ये सुविधा दे रखी दी थी कि तेल का भुगतान अपनी मुद्रा रुपया में करे. यह भारत के लिए फायदेमंद था क्योंकि इससे रुपए की मजबूती भी बनी रहती थी और विदेशी मुद्रा भंडार पर दबाव भी नहीं बढ़ता था. जवाद जरीफ ने भारत से ये भी कहा था, "अगर आप हमसे तेल नहीं खरीदेंगे तो ईरान आपका चावल नहीं खरीदेगा."