क्या चीन के साथ भारत की जंग हुई तो पाकिस्तान भी उसके साथ आ जाएगा? पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने बुधवार को इंडियन एक्सप्रेस को दिए इंटरव्यू में कहा कि हां, ऐसा ही होगा. अमरिंदर सिंह ने कहा कि इसलिए भारत की सेना को और मजबूत करने की जरूरत है.
अमरिंदर सिंह ने कहा, ''मैं जो कह रहा हूं, उसे याद रखिएगा. अगर चीन से जंग होती है तो वो केवल भारत और चीन के बीच नहीं होगी. यह जंग बहुत कपटपूर्ण होगी. चीन के साथ पाकिस्तान भी आएगा. लद्दाख में चीन अपनी ताकत दिखा रहा है लेकिन भारत भी ठोस जवाब दे सकता है. गलवान में चीन ने कोई पहली बार ऐसा नहीं किया है. 1962 की जंग में भी गलवान में चीन आया था. लेकिन हम भी अब 1962 से आगे निकल चुके हैं. हमारी स्थिति पहले से मजबूत है. वहां हमारी 10 ब्रिग्रेड्स मौजूद है. चीन अगर सोचता है कि हम पर वो भारी पड़ सकते हैं तो ये उनका बेवकूफी होगी. उन्हें 1967 में करारा जवाब मिला था और मुझे लगता है उन्हें एक बार फिर से ठोस जवाब मिलेगा.''
अमरिंदर सिंह ने कहा कि चीन तिब्बत से लेकर हिन्द महासागर तक अपनी मौजूदगी बढ़ा रहा है इसलिए भारत को भी अपनी सेना को और मजबूत करने की ज़रूरत है. पंजाब के मुख्यमंत्री ने कहा कि चीन अक्सर हमारे कई इलाकों पर दावा करता रहता है लेकिन अब इसे रुकना चाहिए. अमरिंदर सिंह ने कहा कि अब चीन से सैन्य तरीके से निपटने की जरूरत है.
यह कोई पहली बार नहीं है जब भारत के खिलाफ चीन के साथ पाकिस्तान के आने की बात कही जा रही है. इससे पहले वर्तमान सीडीएस और भारत के पूर्व सेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत ने भी कहा था कि भारत को ढाई मोर्चे से जंग के लिए तैयार है. जनरल रावत ने का इशारा चीन, पाकिस्तान और भारत के भीतर के विद्रोही गुटों की तरफ था. जाहिर है कि कैप्टन अमरिंदर सिंह भी सेना में अधिकारी रहे हैं और उन्हें भी जटिल स्थितियों का अंदाजा है. लेकिन क्या वाकई किसी एक देश के लिए ढाई मोर्चे या दो मोर्चे से जंग जीतना आसान होता है?
कई रक्षा विश्लेषक मानते हैं कि यह बहुत ही मुश्किल है. दुनिया में ऐसी बहुत कम मिसालें हैं कि किसी देश पर दो तरफा हमला हुआ हो तो उसने जीत दर्ज की हो. चीन की तुलना में भारत को सैन्य स्तर पर अभी बहुत कुछ करना बाकी है. चीन ने अपनी सेना का आधुनिकीकरण पहले ही कर दिया था जबकि भारत में अभी ये प्रक्रिया जारी है. चीन की सेना तकनीक से लैस है और वो इसी के दम पर सैनिकों की तादाद घटा रहा है. सैनिकों की संख्या कम करने का मतलब यह होता है कि उनका काम ज्यादा बेहतर तरीके से तकनीक के जरिए लिया जा रहा है और सैनिकों की सैलरी पर खर्च होने वाली रकम टेक्नॉलजी और रिसर्च पर खर्च होगी.
हालांकि, चीन और पाकिस्तान दोनों से भारत की जंग हो चुकी है. 1962 में चीन से जंग हुई तो पाकिस्तान ने खुद को अलग रखा था और 1965-71 में पाकिस्तान से युद्ध हुआ तो चीन ने पूरे मामले से खुद को अलग रखा था और किसी का पक्ष नहीं लिया था. लेकिन अब स्थिति बदल चुकी है. तब अमेरिका का दबाव था इसलिए चीन और पाकिस्तान ने खुद को तटस्थ रखा था. अब कई विश्लेषक इस बात को मानते हैं कि अमेरिका की बात मौजूदा हालात में न पाकिस्तान सुनेगा और न चीन.
1962 की जंग के वक्त पाकिस्तान पर मोहम्मद अयूब खान का शासन था. पाकिस्तान अमेरिका के काफी दबाव में था. अमेरिका ने पाकिस्तान पर काफी दबाव डाला था कि वह भारत-चीन के फ्रंट पर कुछ ना करे. 1962 में शीत युद्ध की धमक दक्षिण एशिया आ चुकी थी. पाकिस्तान और अमेरिका में सुरक्षा समझौता हो चुका था और वह वेस्टर्न अलायंस सिस्टम का भी हिस्सा बन गया था. अमेरिका ने 1962 की लड़ाई में भारत की मदद की थी इसलिए पाकिस्तान भारत के खिलाफ नहीं गया था.
लेकिन अब स्थिति बदल चुकी है. अब पाकिस्तान ना तो अमेरिका का साझेदार और न ही चीन. दोनों देशों में बेजोड़ साझेदारी है और दोनों देशों के हित एक दूसरे से जुड़े हैं. चीन के लिए पाकिस्तान एक रणनीतिक लोकेशन है जबकि पाकिस्तान के लिए चीन भारत के खिलाफ एक मोहरा. भारत ने पिछले साल कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाया तो चीन ने पाकिस्तान का खुलकर समर्थन किया.
भारत ने 1962 में चीन के बाद 1965 में पाकिस्तान से युद्ध का सामना किया. मात्र तीन साल बाद पाकिस्तान ने भारत पर हमला किया था. पाकिस्तान ने ये सोचा था कि भारतीय सेना का मनोबल नीचे है और ऐसे वक्त में हमला किया तो भारत को फिर हार का सामना करना होगा. हालांकि, पाकिस्तान का यह आकलन औंधे मुंह गिरा था और उसे हार का सामना करना पड़ा था.