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विश्व

आर्मीनिया के खिलाफ अजरबैजान के साथ पाकिस्तान-टर्की, भारत का क्या है रुख?

Azerbaijan-Armenia Conflict
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आर्मीनिया-अजरबैजान की लड़ाई में पाकिस्तान भी टर्की की राह पर चल रहा है. पाकिस्तान ने मंगलवार को अजरबैजान का खुलकर समर्थन किया है. हालांकि, पाकिस्तान और टर्की दोनों ही अजरबैजान की सैन्य मदद की बात को खारिज कर चुके हैं.

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बता दें कि अजरबैजान और आर्मीनिया के बीच सीजफायर को लेकर बनी सहमति के बावजूद संघर्ष जारी है. अजरबैजान और आर्मीनिया के बीच नागोर्नो-काराबाख इलाके को लेकर जंग छिड़ी हुई है. नागोर्नो-काराबाख आधिकारिक तौर पर अजरबैजान का हिस्सा है लेकिन यहां कब्जा आर्मीनिया का है. इस इलाके में आर्मीनियाई मूल के लोग ज्यादा हैं. अजरबैजान जहां मुस्लिम बहुल देश है तो वहीं आर्मीनिया ईसाई बहुल.

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पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने मंगलवार को कहा कि उनका देश अजरबैजान की क्षेत्रीय संप्रुभता बनाए रखने के पक्ष में है. टर्की ने भी कहा है कि जब तक आर्मीनिया अजरबैजान का कब्जा वाला इलाका नहीं लौटा देता, तब तक शांति वार्ता का कोई मतलब नहीं है. रिपोर्ट्स में कहा जा रहा है कि टर्की सीरियाई लड़ाकों को अजरबैजान की मदद के लिए भेज रहा है.

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पाकिस्तान के विदेश मंत्री कुरैशी ने मंगलवार को अजरबैजान के विदेश मंत्री जेहुन ब्यारामोव से फोन पर बातचीत की. दोनों के बीच द्विपक्षीय रिश्तों और मौजूदा संघर्ष को लेकर चर्चा हुई. 27 सितंबर से ही अजरबैजान-आर्मीनिया के बीच जंग छिड़ी हुई है. पाकिस्तान के विदेश मंत्री ने नागोर्नो-काराबाख इलाके में गंभीर हालात को लेकर चिंता जाहिर की और अजरबैजान के लोगों के साथ एकजुटता का संदेश दिया.
 

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कुरैशी ने आर्मीनियाई सेना के नागरिकों को निशाना बनाए जाने को लेकर भी चिंता जताई और संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों के जरिए संकट के समाधान को लेकर उम्मीद जताई. अजरबैजान इस्लामिक सहयोग संगठन (ओआईसी) समेत कई अंतरराष्ट्रीय मंचों से कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान को अपना समर्थन देता रहा है. कुरैशी ने इसका भी जिक्र किया और अजरबैजान को शुक्रिया अदा किया. अजरबैजान के विदेश मंत्री के साथ बातचीत में कुरैशी ने कश्मीर को लेकर चर्चा भी की.

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इससे पहले, रविवार को पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने अजरबैजान के स्वतंत्रता दिवस पर अजेरी सेना को वीरतापूर्वक अपनी क्षेत्रीय संप्रुभता की सुरक्षा करने के लिए ट्रिब्यूट दी थी. इमरान खान ने कहा था, पाकिस्तान अजरबैजान की नागोर्नो-काराबाख समस्या का यूएन के प्रस्तावों के जरिए समाधान करने की मांग का मजबूती से समर्थन करता है.

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जहां पाकिस्तान अजरबैजान के साथ मजबूती से खड़ा है, वहीं भारत ने अब तक इस मामले में तटस्थ रुख अपनाया है. भारत के विदेश मंत्रालय ने अपने बयान में कहा, भारत अजरबैजान-आर्मीनिया के बीच बने हालात को लेकर चिंतित है. इससे क्षेत्रीय शांति और सुरक्षा को खतरा पैदा होता है. हम दोनों पक्षों से एक-दूसरे के प्रति शत्रुता खत्म करने और संयम बरतने की अपील करते हैं. दोनों देश सीमा पर शांति स्थापित करने के लिए हर संभव कदम उठाएं.

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भारत सरकार के तटस्थ रुख के बावजूद भारतीय सोशल मीडिया पर आर्मीनिया के समर्थन में हैं. पाकिस्तान और टर्की का अजरबैजान को समर्थन देना भी भारतीयों के इस रुख की एक वजह है. पाकिस्तान तो लंबे वक्त से भारत के लिए मुश्किलें खड़ी करता रहा है. टर्की भी कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान का साथ दे रहा है इसलिए भारत के साथ उसके भी रिश्तों में दरार आई है. कश्मीर मुद्दे पर अजरबैजान का रुख भी भारत विरोधी रहा है.

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एक यूजर ने लिखा, भारत के आर्मीनिया और अजरबैजान दोनों के साथ अच्छे संबंध हैं हालांकि, आर्मीनिया भारत को कश्मीर मुद्दे पर भी समर्थन देता रहा है और आर्मीनिया के पाकिस्तान के साथ भी कूटनीतिक संबंध नहीं हैं. अगर पाकिस्तान और टर्की किसी देश के खिलाफ हैं तो वो देश अपनी जगह पर सही ही होगा. भारत को आर्मीनिया का बेशर्त समर्थन करना चाहिए.

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स्पुतनिक के साथ बातचीत में भारत के पूर्व राजदूत अचल मल्होत्रा ने बताया, आर्मीनिया को समर्थन करने का मतलब है कि भारत आत्म-निर्णय के अधिकार का समर्थन कर रहा है. इस संघर्ष में क्षेत्रीय संप्रुभता का मामला है और भारत अगर आर्मीनिया का समर्थन करता है तो कश्मीर को लेकर कूटनीतिक नुकसान झेलने होंगे. हालांकि, पूर्व राजदूत ने कहा कि कश्मीर विवाद आर्मीनिया-अजरबैजान के मामले से काफी अलग भी है. भारत ने कश्मीर के पूर्व राजा हरि सिंह की सहमति से 1948 में इसका विलय किया था जबकि पाकिस्तान ने अवैध तरीके से कश्मीर पर कब्जा कर रखा है. इसके बावजूद, पाकिस्तान और टर्की इस्लामिक सहयोग संगठन में भारत के खिलाफ तमाम मुस्लिम देशों की राय बदलने में इसका इस्तेमाल कर सकते हैं.

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भारत के पूर्व राजदूत ने कहा कि इसमें कोई शक नहीं है कि भारत अजरबैजान की तुलना में आर्मीनिया के ज्यादा करीब रहा है. दोनों देशों के बीच 1992 से ही कूटनीतिक संबंध रहे हैं. 1992 के बाद से भारत की तरफ से राष्ट्रपति स्तर के तीन दौरे हुए. एक 1995 में, दूसरा 2003 में और तीसरा 2017 में. विदेश मंत्री के स्तर पर भी भारत की तरफ से (2000, 2006, 2010) तीन दौरे हुए हैं. दूसरी तरफ, भारत और अजरबैजान के बीच कभी भी शीर्ष स्तर के नेता का कोई दौरा नहीं हुआ. लेकिन कूटनीतिक रूप से आर्मीनिया के करीब होने के बावजूद भारत किसी एक का पक्ष लेने की स्थिति में नहीं है.

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