बांग्लादेश के संस्थापक शेख मुजीबउर रहमान की राजधानी ढाका में मूर्ति को लेकर सियासी हंगामा मचा हुआ है. कट्टरपंथी इस्लामिक समूह इसका विरोध कर रहे हैं. बुधवार को शेख हसीना ने भी बांग्लादेश के विजय दिवस पर एक वर्चुअल मीटिंग को संबोधित करते हुए इसका जिक्र किया था. शेख हसीना बांग्लादेश के राष्ट्रपिता शेख मुजीबउर रहमान की ही बेटी हैं. शेख हसीना ने बुधवार को कहा कि बंगबंधु शेख मुजीबउर रहमान की मूर्ति को लेकर जानबूझकर विवाद खड़ा करने की कोशिश की गई.
प्रधानमंत्री हसीना ने कहा कि बांग्लादेश बनाने में सभी धर्मों के लोगों ने अपने खून का बलिदान दिया है और किसी के साथ भेदभाव नहीं होने दिया जाएगा. शेख हसीना का इशारा हिन्दुओं की तरफ था, जिन पर हाल के दिनों कट्टरपंथी इस्लामिक धड़ों का हमला बढ़ा है.
शेख मुजीबउर रहमान की मूर्ति को लेकर विवाद तब शुरू हुआ, जब बांग्लादेश के कट्टरपंथी इस्लामिक समूह हिफाजत-ए-इस्लाम के नेता ममुनुल हक ने शेख हसीना से कहा कि वो मुजीबउर रहमान की मूर्ति लगाने की योजना को रोक दें. हसीना मुजीबउर रहमान की बड़ी बेटी हैं. मुजीबउर रहमान की 1975 में परिवार के कई सदस्यों के साथ हत्या कर दी गई थी.
रहमान की मूर्ति लगाने की आलोचना करते हुए ममुनुल हक ने कहा कि मूर्ति लगाना बांग्लादेश के राष्ट्रपिता का अपमान है क्योंकि वो मुसलमान थे और इस्लाम में किसी भी तरह की मूर्ति लगाने की मनाही है. बात यहीं तक नहीं थमी. हक के बाद हिफाजत-ए-इस्लाम के प्रमुख जुनैद अहमद बाबूनगरी ने धमकी दी कि बांग्लादेश में कोई भी पार्टी मूर्ति खड़ी करेगी तो उसे तोड़ दिया जाएगा.
जाहिर है कि बांग्लादेश में हिन्दू भी बड़ी संख्या में हैं और हिन्दुओं के मंदिरों में मूर्तियां होती हैं. हिफाजत-ए-इस्लाम की इस मांग से हिन्दुओं के मन में भी डर पैदा होना स्वाभाविक है. इन दोनों नेताओं के उकसाऊ भाषण के बाद देश भर में विरोध-प्रदर्शन शुरू हुए. पूरे विरोध-प्रदर्शन का नेतृत्व शेख हसीना की सत्ताधारी पार्टी अवामी लीग ने किया. इनके समर्थन में आम लोग और सामाजिक कार्यकर्ता भी सामने आए.
अवामी लीग ने कहा कि बंगबंधु की मूर्ति लगाने का विरोध करना देशद्रोह है. इस विरोध-प्रदर्शन में सिविल सोसाइटी के लोग भी शामिल हुए और इन्होंने कहा कि धार्मिक कट्टरता के लिए बांग्लादेश में कोई जगह नहीं है. हिफाजत-ए-इस्लाम को लेकर बांग्लादेश में एक डर बना कि कहीं ऐसे धड़ों की सक्रियता से मुल्क की धर्मनिरपेक्षता न प्रभावित हो. प्रदर्शनकारियों ने ऐसे संगठनों पर प्रतिबंध लगाने की भी मांग की.
बांग्लादेश के इस्लामिक समूहों को अक्सर वहां की विपक्षी बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी यानी बीएनपी से समर्थन मिलता रहा है. लेकिन 2018 के चुनाव के बाद बीएनपी बहुत कमजोर हुई और ज्यादातर नेताओं ने वहां की धर्मनिरपेक्ष पार्टी अवामी लीग का दामन थाम लिया. हिफाजत-ए-इस्लाम बांग्लादेश का दूसरा सबसे बड़ा कट्टरपंथी समूह है. पहले नंबर पर जमात-ए-इस्लामी है. ये संगठन बिना रजिस्ट्रेशन के चल रहे हैं और ये खुद को गैर-सियासी धड़ा कहते हैं.
हिफाजत-ए-इस्लाम को बने एक दशक से भी कम वक्त हुआ है. यह 2013 में अस्तित्व में आया. इसका मुख्यालय ढाका के बदले तटीय शहर चटग्राम में है. यहां सैकड़ों की संख्या मदरसा हैं और हजारों की तादाद में मुस्लिम बच्चे यहां पढ़ाई करते हैं.
पांच मई, 2013 को हिफाजत-ए-इस्लाम ने ढाका के मोतीझील जिले को 12 घंटों तक अपने नियंत्रण में ले लिया था. मोतीझील को बांग्लादेश का वित्तीय जिला भी कहा जाता है. हिफाजत-ए-इस्लाम के लोग एक ब्लॉगर को फांसी देने की मांग कर रहे थे. उस ब्लॉगर पर ईशनिंदा का आरोप था. पुलिस पूरे इलाके को देर रात हिफाजत-ए-इस्लाम से मुक्त करा पाई थी. जमकर हिंसा हुई थी और इसमें इस इस्लामिक धड़े के 39 कार्यकर्ताओं की मौत हुई थी.
हालांकि, बांग्लादेश में हिफाजत-ए-इस्लाम के कट्टरपंथियों की प्रासंगिकता आज भी बनी हुई है. बांग्लादेश के सुप्रीम कोर्ट कैंपस में ग्रीक गॉडेस ऑफ जस्टिस यानी न्याय की मूर्ति को लेकर भी लंबे समय तक विरोध किया था. इनकी मांग थी कि इस्लाम में मूर्ति वर्जित है और कहीं भी कोई मूर्ति नहीं होनी चाहिए. पांच महीनों के विरोध-प्रदर्शन के बाद बांग्लादेश की सरकार को झुकना पड़ा और सुप्रीम कोर्ट के कैंपस से 25 मई 2017 को मूर्ति हटवानी पड़ी थी. लेकिन इस बार बांग्लादेश की सरकार को लग रहा है कि हिफाजत-ए-इस्लाम अपनी हदें पार कर रहा है क्योंकि वो बांग्लादेश के संस्थापक की मूर्ति पर सवाल खड़ा कर रहा है.
बांग्लादेश के राजनीतिक विश्लेषक अफसान चौधरी ने टीआरटी वर्ल्ड से कहा है कि जब हिफाजत-ए-इस्लाम ने 2017 में सुप्रीम कोर्ट से मूर्ति हटाने के लिए कहा तो सरकार ने उनकी मांग मान ली थी लेकिन इस बार ऐसा नहीं होगा. उन्होंने कहा, ''हिफाजत-ए-इस्लाम को पता होना चाहिए कि मुजीबउर रहमान की मूर्ति पार्टी-पॉलिटिक्स से ऊपर है. यह बंग्लादेश के बनने के संघर्ष की कहानी है. इस मांग को लोगों के बीच से भी मान्यता नहीं मिलनी थी और वे इस चीज को समझ नहीं पाया. यह गेम हिफाजत-ए-इस्लाम के लिए बैकफायर करेगा.''