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विश्व

यूरोपीय यूनियन से अलग होगा ब्रिटेन! जानिए क्यों हो रहा ब्रेग्जिट

यूरोपीय यूनियन से अलग होगा ब्रिटेन! जानिए क्यों हो रहा ब्रेग्जिट
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ब्रिटेन की कंजरवेटिव पार्टी को भारी बहुमत मिलने के बाद ही प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने कहा है कि इस जनादेश के सहारे वे ब्रिटेन को यूरोपीय यूनियन से अलग करने वाली ब्रेग्जिट डील को लागू कर सकेंगे. इसके बाद यूरोपीय यूनियन और ब्रेग्जिट को लेकर पूरी दुनिया में चर्चा शुरू हो गई है. (@BorisJohnson)
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दरअसल, ब्रेग्जिट के मुद्दे पर 2016 में हुए जनमत संग्रह के बाद से ही ब्रिटेन की राजनीति में उथल-पुथल मच गई. पांच साल से कम समय में तीसरी बार आम चुनाव हुए हैं. हालांकि, इस बार बोरिस जॉनसन की अगुवाई में कंजरवेटिव पार्टी को स्पष्ट बहुमत मिल गया है. अब ऐसी उम्मीद जताई जा रही है कि ब्रेग्जिट के मुद्दे पर ब्रिटेन में असमंजस की स्थिति खत्म होगी.
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क्या है ब्रेग्जिट: 

ब्रेग्जिट यानी ब्रिटेन+एग्जिट. ब्रेग्जिट का मतलब है ब्रिटेन का यूरोपियन यूनियन से बाहर जाना. अब इस बात को लेकर चर्चा है कि ब्रिटेन यूरोपीय यूनियन से कब अलग होगा. बोरिस जॉनसन की पार्टी को मिले बहुमत से जाहिर हो रहा है कि वह ब्रिटेन को यूरोपियन यूनियन से अलग कर देंगे.
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क्यों उठी ब्रेक्जिट की मांग: 

इसकी शुरुआत 2008 में हुई जब ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था मंदी की चपेट में आ गई थी. देश में महंगाई बढ़ गई थी, बेरोजगारी बढ़ गई थी, जिसका समाधान निकालने और अर्थव्यवस्था को ठीक करने के प्रयास चल रहे थे.

इसी बीच यूनाइटेड किंगडम इंडिपेंडेंस पार्टी (यूकेआईपी) ने 2015 में हो रहे चुनावों के दौरान यह मुद्दा उठाया कि यूरोपीय यूनियन ब्रिटेन की आर्थिक मंदी को कम करने के लिए कुछ नहीं कर रहा है.
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गिनाई गईं वजहें: 

यूकेआईपी का तर्क था कि इसकी वजह से ही ब्रिटेन की स्थिति लगातार खराब हो रही है. उस दौरान आर्थिक मंदी को कारण मानते हुए वजह बताई गई कि ब्रिटेन को हर साल यूरोपियन यूनियन के बजट के लिए 9 अरब डॉलर देने होते हैं. इसकी वजह से ब्रिटेन में बिना रोक-टोक के लोग बसते हैं. फ्री वीजा पॉलिसी से ब्रिटेन को भारी नुकसान हो रहा है.
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ब्रेग्जिट का विरोध भी हुआ:

वहीं, ब्रिटेन के काफी लोग ब्रेग्जिट के फैसले को गलत मानते हैं और यूरोपीय यूनियन से हो रहे फायदों की दलील देते हैं. ब्रेग्जिट का विरोध करने वाले लोगों की दलील है कि इससे दूसरे यूरोपीय देशों से कारोबार पर बुरा असर होगा. ब्रिटेन का सिंगल मार्केट सिस्टम खत्म हो जाएगा और ब्रिटेन की जीडीपी को भारी नुकसान होगा.
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ब्रेग्जिट पर जनमत संग्रह: 

ब्रेग्जिट को लेकर 2016 में ब्रिटेन में जनमत संग्रह हुआ, जिसमें बहुमत ब्रिटेन का यूरोपीय यूनियन से अलग होने के पक्ष में था. ब्रेग्जिट पर जनमत संग्रह के रुझान के बाद तत्कालीन कैमरन सरकार को इस्तीफा देना पड़ा.
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टेरेसा मे को भी देना पड़ा इस्तीफा: 

इसके बाद कंजरवेटिव पार्टी ने टेरेसा मे की अगुवाई में सरकार बनाई. पीएम टेरेसा मे ने ब्रेग्जिट को अपना मुद्दा बनाया और इसे लागू करने की शर्त पर प्रधानमंत्री का पद्भार संभाला. लेकिन ब्रेग्जिट के लिए वह भी आवश्यक समर्थन नहीं जुटा सकीं और इस्तीफा दे दिया था.
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इसके बाद जुलाई 2019 में बोरिस जॉनसन प्रधानमंत्री पद की शपथ ली थी. 31 अक्टूबर की अंतिम समयसीमा तक ब्रेग्जिट लागू करने में नाकाम रहने के बाद जॉनसन ने 12 दिसंबर को चुनाव कराने की घोषणा कर दी थी.
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पार करनी होगी चुनौती: 

अब कंजरवेटिव पार्टी को बहुमत मिलने से ब्रिटेन यूरोपियन यूनियन (EU) से बाहर निकलने यानी ब्रेग्जिट की राह पर बढ़ता दिख रहा है. हालांकि, ब्रेग्जिट के स्वरूप और कंजरवेटिव पार्टी के आंतरिक मतभेद को पाटने की चुनौती भी प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन को पार करनी होगी.
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