लद्दाख में चीन से चल रहे तनाव के बीच भारतीय कंपनियों ने चीन के खिलाफ एक और फैसला किया है. समाचार एजेंसी रॉयटर्स की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत की सरकारी रिफाइनरी कंपनियों ने अब चीनी से जुड़ीं कंपनियों से कच्चा तेल खरीदना बंद कर दिया है. इससे पहले, भारत सरकार ने पड़ोसी देशों से आयात को लेकर नियम सख्त किए थे.
भारत और चीन के सीमा विवाद के बीच 23 जुलाई को मोदी सरकार ने नए नियमों का ऐलान किया था. सूत्रों ने रॉयटर्स से बताया कि नए आदेश के जारी होने के बाद से सरकारी रिफाइनरियां अपने इंपोर्ट टेंडर में इससे संबंधित एक क्लॉज जोड़ रही हैं.
सूत्र के मुताबिक, पिछले सप्ताह भारत की सरकारी रिफाइनरी ने चीनी ट्रेडिंग फर्म CNOOC Ltd, Unipec और PetroChina को कच्चे तेल के आयात का टेंडर रोकने का फैसला किया है. भारत की सरकारी रिफाइनरियां इंडियन ऑयल कॉर्प्स, भारत पेट्रोलियम कॉर्प, हिंदुस्तान पेट्रोलियम कॉर्प, मैंगलोर रिफाइनरी और पेट्रोकेमिकल की तरफ से अभी तक कोई बयान जारी नहीं किया गया है.
नए नियमों के तहत, भारतीय टेंडर में भागेदारी के लिए पड़ोसी देशों की कंपनियों को वाणिज्य विभाग के साथ रजिस्ट्रेशन कराना अनिवार्य कर दिया गया था. भारत की चीन, पाकिस्तान, बांग्लादेश, म्यांमार, नेपाल और भूटान के साथ सीमाएं लगती हैं लेकिन सरकार की ओर से जारी किए गए बयान में किसी देश का नाम अलग से नहीं लिया गया था. हालांकि, इसे साफ तौर पर चीनी निवेश पर लगाम लगाने के कदम के तौर पर देखा गया.
भारत दुनिया में तेल का तीसरी सबसे बड़ा उपभोक्ता है और अपनी तेल जरूरतों का 84 फीसदी आयात करता है. हालांकि, चीन भारत को बड़ी मात्रा में कच्चा तेल निर्यात नहीं करता है. विश्लेषकों का कहना है कि इस कदम से बहुत ज्यादा असर नहीं पड़ेगा.
एलएसी पर विवाद सुलझाने के लिए भारत और चीन के बीच कई दौर की सैन्य वार्ता हो चुकी है. दूसरी तरफ, राजनयिक स्तर पर भी बातचीत जारी है. हालांकि, बातचीत में अभी तक कोई समाधान नहीं निकल पाया है. चीन अभी भी पैगॉन्ग के इलाके में डटा हुआ है और फिंगर-5 से पीछे जाने के लिए तैयार नहीं है. भारत ने भी अपना रुख साफ कर दिया है कि यथास्थिति में किसी भी तरह का बदलाव स्वीकार नहीं होगा.
बुधवार को दिए रेडिफ को दिए एक इंटरव्यू में विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने लद्दाख की स्थिति को 1962 के बाद से सबसे गंभीर करार दिया है. जयशंकर ने अपनी बुक रिलीज होने से पहले रेडिफ को दिए इंटरव्यू में कहा, निश्चित रूप से ये 1962 के बाद की सबसे गंभीर स्थिति है. पिछले 45 सालों में सीमा पर पहली बार हमारे सैनिकों की मौत हुई है. एलएसी पर दोनों पक्षों की तरफ से बड़ी संख्या में सैनिकों की तैनाती है जोकि अप्रत्याशित है.
विदेश मंत्री ने कहा, अगर पिछले एक दशक को देखें तो चीन के साथ कई बार सीमा विवाद उभरा है- डेपसांग, चूमर और डोकलाम. कुछ हद तक हर सीमा विवाद अलग तरह का रहा. मौजूदा विवाद भी कई मायनों में अलग है. हालांकि, सभी सीमा विवादों में एक बात जो निकलकर आती है वो ये है कि समाधान कूटनीति के जरिए ही किया जाना चाहिए.
हालांकि, चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) जनरल बिपिन रावत ने कहा था कि चीन के साथ अगर बातचीत फेल हुई, तो भारत के पास सैन्य विकल्प मौजूद है. रावत ने कहा था कि पूर्वी लद्दाख में चीनी पीपल्स लिबरेशन आर्मी द्वारा किए गए अतिक्रमण से निपटने के लिए भारत के पास एक सैन्य विकल्प मौजूद है, लेकिन इसका इस्तेमाल तभी किया जाएगा जब दोनों देशों की सेनाओं के बीच बातचीत और राजनयिक विकल्प निष्फल साबित हो जाएगे.