काबुल पर तालिबान का कब्जा होने के बाद अमेरिका और उसके सहयोगी देशों में हलचल मची हुई है. हालांकि, चीन अफगानिस्तान में तालिबान की वापसी को लेकर बहुत ही सहज नजर आ रहा है. चीन ने पहले ही संकेत दे दिए थे कि वह अफगानिस्तान में तालिबान की सरकार को मान्यता देने के लिए तैयार है. सोमवार को अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे के बाद चीन के विदेश मंत्रालय ने स्पष्ट रूप से यही बात दोहराई. चीनी विदेश मंत्रालय की ओर से जारी किए गए बयान में कहा गया है कि चीन अफगानिस्तान में तालिबान के साथ दोस्ताना और सहयोगपूर्ण रिश्ते कायम करना चाहता है.
चीन की अफगानिस्तान के साथ 76 किलोमीटर की सीमा लगती है. चीन को हमेशा से ये डर सताता रहा है कि सीमाई इलाके शिनजियांग में वीगर अलगाववादियों को अफगानिस्तान में बढ़ावा मिल सकता है. हालांकि, जुलाई महीने में तालिबान के एक प्रतिनिधिमंडल ने चीनी विदेश मंत्री वांग यी से तियानजिन में मुलाकात की थी और आश्वस्त किया था कि अफगानिस्तान की जमीन का इस्तेमाल चीन विरोधी गतिविधियों में नहीं होगा. बदले में चीन ने भी अफगानिस्तान में निवेश और आर्थिक मदद का प्रस्ताव दिया. इस मुलाकात को राजनीतिक ताकत के रूप में तालिबान को मान्यता देने की चीन की कोशिश के रूप में देखा गया था.
चीन ने सोमवार को अफगानिस्तान के साथ गहरे रिश्तों कायम करने के अवसर का स्वागत किया. चीन के विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता हुआ चुनयिंग ने पत्रकारों से बातचीत में कहा, तालिबान ने कई बार चीन के साथ अच्छे संबंध की उम्मीद जाहिर की है. तालिबान अफगानिस्तान के विकास में चीन की भूमिका को अहम मान रहा है.
चीनी प्रवक्ता ने कहा, हम इसका स्वागत करते हैं. चीन अफगान लोगों के अपना भविष्य तय करने के अधिकार का सम्मान करता है और उसके साथ दोस्ताना और सहयोगपूर्ण संबंध का इच्छुक है. उन्होंने तालिबान से सत्ता के शांतिपूर्ण हस्तांतरण की भी मांग की और कहा कि वह एक समावेशी इस्लामिक सरकार के अपने वादे को निभाए. इसके साथ ही चीन ने तालिबान से अफगान और विदेशी नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने की भी मांग की.
काबुल स्थित चीनी दूतावास को अभी बंद नहीं किया गया है. हालांकि, हुआ चुनयिंग ने कहा कि चीन ने अफगानिस्तान के हालात को देखते हुए चीनी नागरिकों को महीनों पहले ही निकाल लिया था.
सोमवार को जारी बयान में चीनी दूतावास ने अपने नागरिकों को सुरक्षा हालात पर नजर बनाए रखने और घरों के अंदर रहने का निर्देश दिया है. अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने 11 सितंबर तक अमेरिकी सेना की अफगानिस्तान से पूरी तरह वापसी करने का वादा किया है. हालांकि, अमेरिका इस बात से हैरान है कि उसके अफगानिस्तान से निकलने के कुछ दिनों के भीतर ही अफगानिस्तान की सरकार तालिबान के सामने ढह गई. चीन इसे अमेरिकी की असफलता करार दे रहा है.
अफगानिस्तान में तालिबान की वापसी चीन के लिए मौका और जोखिम दोनों लेकर आया है. पाकिस्तान में चीन की महत्वाकांक्षी परियोजना सीपीईसी की सुरक्षा के लिहाज से भी तालिबान के साथ अच्छे संबंध जरूरी है. अगर तालिबान का साथ मिलता है तो चीन अपनी बेल्ट ऐंड रोड योजना का विस्तार अफगानिस्तान और फिर सेंट्रल एशिया तक कर सकता है. दूसरी तरफ, तालिबान को भी चीन से जरूरी निवेश और आर्थिक मदद मिलेगी.
हालांकि, चीन के लिए बस एक ही चिंता की बात है और वो है अपने शिनजियांग प्रांत में सक्रिय ईस्ट तुर्किस्तान इस्लामिक मूवमेंट (ETIM) के साथ तालिबान के संबंध. चीन ने पिछले महीने तालिबान के प्रतिनिधिमंडल से कहा था कि ईटीआईएम उसकी राष्ट्रीय सुरक्षा और क्षेत्रीय अखंडता के लिए सीधा खतरा है. चीनी विदेश मंत्री ने तालिबान से मुलाकात में साफ कर दिया था कि उसे चीन विरोधी आतंकवादी संगठन ईस्ट तुर्किस्तान इस्लामिक मूवमेंट से संबंध तोड़ने होंगे और वीगर मुसलमानों के मामले में उसका कोई हस्तक्षेप स्वीकार नहीं किया जाएगा.
चीन कहता रहा है कि तालिबान-नियंत्रित क्षेत्र का इस्तेमाल शिनजियांग की अलगाववादी ताकतों को शरण देने के लिए किया जाता है. लेकिन तालिबान ने जुलाई महीने में हुई बैठक में चीन को यह आश्वास्त किया है कि वह चीन के खिलाफ अपनी धरती का इस्तेमाल करने की इजाजत किसी संगठन को नहीं देगा.