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विश्व

मुस्लिम 'हितैषी' अमेरिका को चीन ने इजरायल-फिलिस्तीन पर दी ये नसीहत

Israel Palestinians
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इजरायल और फिलिस्तीनियों की टकराव पर चीन ने अमेरिका को आड़े हाथों लिया है. चीन ने अमेरिका पर मुसलमानों की "पीड़ा को नजरअंदाज" करने का आरोप लगाया है. चीन ने कहा कि अमेरिका ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) की एक निर्धारित बैठक को लेकर अड़चन डाली, जिसका मकसद इजरायल और फिलिस्तीनियों के बीच हिंसक संघर्ष पर चर्चा करना था. 

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चीन के विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता हुआ चुयिंग ने कहा कि अमेरिका ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में इस मुद्दे पर होने वाली चर्चा में अड़चन पैदा की, जबकि वह खुद को मुस्लिमों का शुभचिंतक होने का दावा करता रहता है. 

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चीनी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता ने कहा कि अमेरिका संयुक्त राष्ट्र में इजरायल के लिए कूटनीतिक ढाल बनकर सामने आ गया और जो बैठक 14 मई शुक्रवार को होनी थी, उसे अमेरिका के चलते आगे टाल दिया गया.  

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एक समाचार एजेंसी के मुताबिक चीन ने सुरक्षा परिषद में फिलिस्तीनी मुद्दे को उठाया है. चीनी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता हुआ चुनयिंग ने संवाददाताओं से कहा कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय की मांग के विपरीत जाते हुए अमेरिका ने अकेले ही सुरक्षा परिषद को इस संकट पर बोलने से रोक दिया. 

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हुआ चुनयिंग ने कहा, "हम क्या सोचें, अमेरिका कहता रहता है कि वह मुसलमानों के मानवाधिकारों का हितैषी और उनकी परवाह करता है...लेकिन उसने फिलिस्तीनी लोगों की पीड़ा को नजरअंदाज किया है."

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चीनी प्रवक्ता ने कहा कि अमेरिका, ब्रिटेन और जर्मनी अक्सर चीन को घेरने के लिए सुरक्षा परिषद में उइगर मुस्लिमों का सवाल उठाते हैं लेकिन जब फिलिस्तीनी मुसलमानों की बारी आई तो अमेरिका इजरायल के लिए ढाल बनकर खड़ा हो गया. हुआ चुनयिंग ने कहा, "अमेरिका को यह महसूस होना चाहिए कि फिलिस्तीनी मुसलमानों का जीवन भी उतना ही कीमती है." 

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चीनी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता ने कहा कि अमेरिका ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद को प्रेस वक्तव्य जारी करने से रोका. मतलब अमेरिका एक बार फिर अंतरराष्ट्रीय समुदाय की भावना के खिलाफ खड़ा है. अमेरिका ऐसा क्यों कर रहा है? इस सवाल का जवाब हम भी जानना चाहते हैं और शायद वही इसका सही जवाब दे सकता है.

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इजरायल-फिलिस्तीनी संघर्ष को लेकर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की 14 मई को बैठक होनी थी. लेकिन अमेरिका की तरफ से सवाल खड़ा किए जाने के बाद यह बैठक 16 मई तक के लिए टाल दी गई. ऐसी स्थिति में जब दोनों पक्षों में तनाव बहुत ज्यादा है, इस बैठक को कुछ दिन और टालने का क्या मतलब है. शुक्रवार को इसी मसले को लेकर चीन की विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता से सवाल किया गया था जिसका वो जवाब दे रही थीं. 

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चीन ने कहा कि इजरायल और फिलिस्तीन दोनों पक्षों में तनाव कम करने के लिए प्रयास किया जाना चाहिए ताकि हिंसक संघर्ष को खत्म किया जा सके. हुआ चुयिंग ने दोहराया कि चीन सुरक्षा परिषद पर जल्द कार्रवाई करने के लिए दबाव डालेगा. उन्होंने कहा कि चीन दो-राष्ट्र समाधान की प्रतिबद्धता को दोहराएगा. किसी मुद्दे पर सुरक्षा परिषद की बैठक बुलाने के लिए 15 सदस्य देशों के समर्थन की जरूरत होती है.

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असल में, अमेरिका इजरायल का प्रमुख सहयोगी है. अमेरिका फिलिस्तीनियों पर खुनी हमले के बावजूद इजरायल के बचाव की मुद्रा में खड़ा है. अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन भी यह बात बोल चुके कि इजरायल को अपनी आत्मरक्षा का हक है. हालांकि बाइडन प्रशासन नागरिकों के हताहत होने पर इजरायल को हिदायत भी दे चुका है. अमेरिका ने इससे पहले इजरायल को यरुशलम में फिलिस्तीनियों के निष्कासन पर रोक लगाने और हिंसा को फौरन रोकने की बात कही थी. 

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दरअसल, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने बीते सोमवार को पूर्वी यरुशलम में बढ़ती हिंसा पर आपातकालीन बैठक की और एक प्रस्तावित बयान पर विचार-विमर्श किया. इसमें इजरायल से आह्वान किया गया था कि वो मामले को लेकर संयम बरते और इस पवित्र स्थलों पर ऐतिहासिक यथास्थिति का सम्मान करे. संयुक्त राष्ट्र में आयरलैंड के राजदूत गेराल्डिन बायर्न नैसन ने कहा कि सुरक्षा परिषद को तत्काल बात करनी चाहिए, और हम आशा करते हैं कि वह ऐसा करने में सक्षम होगा. लेकिन अमेरिका ने कहा कि इसके लिए सिर्फ बयान जारी करना काफी नहीं होगा.

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