इजरायल और फिलिस्तीन में संघर्षविराम हो चुका है. लेकिन इससे पहले दोनों पक्षों में शांति बहाली के लिए गुरुवार को संयुक्त राष्ट्र महासभा की बैठक बुलाई गई. इसमें कई देशों ने हिस्सा लिया. बैठक में भारत ने भी मध्य पूर्व में हिंसा खत्म करने और शांति बहाल किए जाने की वकालत की. भारत हमेशा से फिलिस्तीन के लिए एक अलग राष्ट्र और पूर्वी यरुशलम को उसकी राजधानी बनाए जाने का पक्षधर रहा है मगर भारत ने इस बार इजरायल और फिलिस्तीन के बीच मसले को सुलझाने के लिए 'दो राष्ट्र समाधान' का जिक्र नहीं किया.
(फोटो-Getty Images)
संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि टीएस तिरुमूर्ति ने कहा कि इजरायल और फिलिस्तीन के बीच बातचीत बहाल करने लायक माहौल तैयार करने के लिए हर मुमकिन प्रयास किया जाना चाहिए. भारत ने जोर देकर कहा कि क्षेत्र में शांति और स्थिरता कायम करने के लिए सार्थक वार्ता का दौर लंबा चल सकता है.
(फोटो-Getty Images)
पश्चिम एशिया और फिलिस्तीन के हालात पर चर्चा के लिए संयुक्त राष्ट्र महासभा की बुलाई गई बैठक में बोलते हुए टीएस तिरुमूर्ति ने कहा, हम लगातार जोर दे रहे हैं कि तत्काल तनाव को कम करना इस वक्त की जरूरत है ताकि हिंसा को रोका जा सके. भारत के संयुक्त राष्ट्र में राजदूत और स्थायी प्रतिनिधि ने कहा, हम आह्वान करते हैं कि तनाव को बढ़ाने वाले किसी भी कदम से बचना चाहिए. एक तरफा तरीके से यथास्थिति बदलने की कोशिश से भी बचना चाहिए.
(फोटो-@IndiaUNNewYork)
PR @ambtstirumurti speaks at the UN General Assembly Plenary Meeting on Palestine.
— India at UN, NY (@IndiaUNNewYork) May 20, 2021
Text of remarks here⤵️https://t.co/3dx47NR6ad pic.twitter.com/qNXahyCNVH
तिरुमूर्ति की यह टिप्पणी इजरायल और हमास के बीच 11 दिन के संघर्ष के बाद गुरुवार को सीजफायर के ऐलान के बीच आई है. इस संघर्ष में गाजा पट्टी में सवा दो सौ लोगों की जान चली गई जबकि काफी संख्या में इमारतें मलबे में तब्दील हो चुकी हैं. संयुक्त राष्ट्र महासभा के अध्यक्ष वोल्कन बोजकिर ने पश्चिम एशिया के हालात पर चर्चा के लिए गुरुवार को यह मीटिंग बुलाई थी. पिछले साल शुरू हुई कोरोना महामारी के बाद पहली बार दर्जनों देशों के विदेश मंत्री आमने-सामने बैठकर इस बहस में शामिल हुए.
(फोटो-ट्विटर/@ambtstirumurti)
भारतीय प्रतिनिधि तिरुमूर्ति ने कहा कि गाजा पर जवाबी हमले में भी मौतें और विध्वंस हुआ है. उन्होंने कहा कि हिंसा की मौजूदा कड़ी में हम भारतीय नागरिक सहित निर्दोष लोगों की जान जाने से दुखी हैं. हम एक बार फिर उकसावे, हिंसा और विध्वंस की सभी कार्रवाई की निंदा करते हैं.
(फोटो-AP)
We condemn the indiscriminate rocket firings from Gaza into Israel, which have caused deaths of a number of civilians. India has also tragically lost one of its nationals during this rocket fire – a caregiver living in Ashkelon in Israel: @ambtstirumurti, PR/Amb. of India to UN, pic.twitter.com/D5Sv7748tk
— Prasar Bharati News Services पी.बी.एन.एस. (@PBNS_India) May 21, 2021
भारत ने जोर देकर कहा कि हाल की घटनाओं ने एक बार फिर तत्काल इजरायल और फिलिस्तीन के बीच संवाद को बहाल करने की जरूरत है. हालांकि टीएस त्रिमूर्ति ने इस दौरान एक बार भी दो राष्ट्र समाधान का जिक्र नहीं किया जबकि इससे पहले इजरायल और फिलिस्तीन के बीच मामले को सुलझाने के लिए इसका उल्लेख करता रहा है.
(फोटो-ट्विटर/@ambtstirumurti)
टीएस तिरुमूर्ति ने 12 मई को दो राष्ट्र समाधान की चर्चा की थी. लेकिन इस बार दो राष्ट्र समाधान का जिक्र न किए जाने से भारत के बदलते रुख का संकेत मिलता है. भारत इजरायल और फिलिस्तीन पर बड़ी सावधानी से अपनी प्रतिक्रिया दे रहा है. टीएस तिरुमूर्ति के बयान को फिलिस्तीन के साथ भारत के ऐतिहासिक संबंधों और इसरायल के साथ इसके फलते-फूलते संबंधों के बीच संतुलन बनाए रखने के प्रयास के रूप में देखा जा रहा है.
(फोटो- रॉयटर्स)
आजादी के बाद शुरू के चार दशकों तक भारत की नीति फिलिस्तीन समर्थक की रही है. भारत ने शुरुआत में इजरायल को मान्यता देने से भी इनकार कर दिया था लेकिन बाद में भारत ने इजरायल से भी संतुलन साधने की कोशिश की. अब धीरे-धीरे भारत का रुख इजरायल समर्थक के रूप में देखा जाने लगा है.
(फोटो-Getty Images)
भारत का फिलिस्तीन के साथ इतिहास में संबंध काफी गहरा रहा है. सत्तर के दशक में फिलिस्तीनी मुक्ति संगठन (PLO) के प्रमुख यासिर अराफात के रहते हुए फिलिस्तीन और भारत के रिश्ते काफी बेहतर थे. इंदिरा गांधी, अटल बिहारी वाजपेयी के पीएम रहने के दौरान यासिर अराफात ने भारत का दौरा भी किया. 1974 में भारत अकेला गैर मुस्लिम देश था जिसने फिलिस्तीन मुक्ति संगठन को मान्यता दी थी. 1988 में फिलिस्तीन को बतौर राष्ट्र मान्यता देने वाला भारत पहला गैर अरब देश था.
(फोटो-Getty Images)
भारत ने 1950 में इजरायल को एक देश के तौर पर मान्यता दी थी. इस दौरान भी प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू का झुकाव अरब देशों की तरफ था और फिलिस्तीन को लेकर वह इजरायल के साथ रिश्ते मजबूत करने के खिलाफ रहे. नेहरू ने चीन से 1962 में युद्ध के दौरान इजरायल से मदद मांगी लेकिन फिलिस्तीन को लेकर भारत के रुख में कोई बदलाव नहीं आया. लेकिन 1992 के बाद इस स्थिति में बदलाव आना शुरू हुआ. भारत ने फिलिस्तीन और इजरायल के बीच संतुलन साधा. इजरायल का भारत में दूतावास खुला.
(फोटो-Getty Images)
मगर 2014 में जब मोदी पीएम बने तो भारत और इजरायल के रिश्तों ने नई करवट ली. इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू और भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच ये रिश्ते और आगे बढ़े हैं. मोदी 70 साल में पहले भारतीय प्रधानमंत्री थे जिन्होंने इजरायल का दौरा किया. इजरायल भी कश्मीर और आतंकवाद सहित कई मसलों पर भारत के साथ खड़ा दिखा.
(फोटो-AP)
बीते कुछ वर्षों में इजरायल ने भारत को बेहतरीन डिफेंस डील भी दी है. भारत का इजरायल के साथ संबंध सुरक्षा और इंटेलिजेंस के मामले में बेशक शानदार है और दोनों देश एक दूसरे के साथ खड़े हैं.
(फाइल फोटो-Getty Images)
इजरायल को लेकर भारत का ही नहीं बल्कि अरब के देशों का रुख भी बदला है. पिछले साल यूएई और बहरीन ने इजरायल से रिश्ते सामान्य किए तो यह सबके लिए हैरान करने वाला था. लेकिन भारत ने इजरायल को धीरे-धीरे अपनाया है और बदली वैश्विक परिस्थिति में दोनों का साथ पारस्परिक हितों से जुड़ा है.
(फाइल फोटो-Getty Images)