तालिबान ने अफगानिस्तान में अपनी सरकार के शीर्ष नेतृत्व की घोषणा कर दी है. तालिबान की इस पूरी कैबिनेट में कई ऐसे चेहरे शामिल हैं, जिन्हें या तो संयुक्त राष्ट्र द्वारा ग्लोबल आतंकी घोषित किया गया है या फिर वे अमेरिका के मोस्ट वॉन्टेड आतंकी हैं. माना जा रहा है कि अफगानिस्तान की नई सरकार भारत के लिए कई स्तर पर चुनौतियां खड़ी कर सकती है. इस सरकार में कई ऐसे चेहरे शामिल हैं जिन्हें भारत विरोधी रुख वाला माना जाता है.
(प्रतीकात्मक तस्वीर/getty images)
मुल्ला मोहम्मद हसन अखुंद अफगानिस्तान के प्रधानमंत्री होंगे. वहीं मुल्ला अब्दुल गनी बरादर उप प्रधानमंत्री. हालांकि सबसे ज्यादा चर्चा गृहमंत्री सिराजुद्दीन हक्कानी की है. हक्कानी नेटवर्क के प्रमुख सिराजुद्दीन को ग्लोबल आतंकी बताते हुए अमेरिका ने उन पर 37 करोड़ रूपए का इनाम रखा है. ये नेटवर्क पिछले 20 सालों में अफगानिस्तान में कई हमलों को अंजाम दे चुका है. हक्कानी नेटवर्क भारत के लिए भी सिर दर्द रहा है. (प्रतीकात्मक तस्वीर/getty images)
अमेरिका की अगुवाई वाली नाटो की सेना पर सीमा पार से हमला करने के अलावा ये भी माना जाता है कि हक्कानी समूह ने ही 2008 में पूर्व राष्ट्रपति हामिद करजई पर आत्मघाती हमला कराया था. 2008 में काबुल के होटल पर हमला और 2011 में काबुल में अमेरिकी दूतावास पर हमले के अलावा हक्कानी नेटवर्क ने भारत के दूतावास पर भी अटैक किया था. इस हमले में 58 लोग मारे गए थे.
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रिपोर्ट्स के अनुसार, हक्कानी नेटवर्क के अल-कायदा और पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई से भी करीबी संबंध हैं. तालिबान में मुल्ला बरादर और हक्कानी नेटवर्क के बीच उठापटक के बीच आईएसआई चीफ जनरल अफगानिस्तान पहुंचे थे और उनके जाने के बाद ही तालिबान ने फौरन अपनी सरकार का ऐलान कर दिया है. इससे साफ है कि अफगानिस्तान की नई सरकार में पाकिस्तान का सीधा दखल होगा. (सिराजुद्दीन हक्कानी)
सिराजुद्दीन हक्कानी को कैबिनेट में जगह मिलने से आईएसआई का अफगानिस्तान की राजनीति में प्रभाव काफी बढ़ा है. तालिबान का सरकार पर नियंत्रण होने का मतलब है कि इस देश में अब पाकिस्तानी सेना और उसकी खुफिया एजेंसियों का दबदबा भी बढ़ेगा. तालिबान को जहां पाकिस्तान सरकार मान्यता देती आई है, वहीं हक्कानी नेटवर्क के आईएसआई के साथ करीबी संबंध हैं.
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अफगानिस्तान पर तालिबान के नियंत्रण से भारत की अन्य चिंताएं भी बढ़ गई हैं. माना जा रहा है कि लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद जैसे समूहों को भारत पर हमले के लिए अब पहले से अधिक मौके मिल जाएंगे. अमेरिका की खुफिया एजेंसी सीआईए के प्रमुख रह चुके डगलस लंदन ने भी कहा था कि अफगानिस्तान में तालिबान की वापसी के बाद एशिया में इस्लामिक जिहादी संगठनों में बढ़ोतरी देखने को मिल सकती है. (प्रतीकात्मक तस्वीर/getty images)
गौरतलब है कि तालिबान काबुल पर कब्जे के बाद से ही भारत के साथ बेहतर रिश्ते बनाने की बात करता रहा है और भारत के साथ व्यापार की उम्मीद जताई है. हक्कानी नेटवर्क के फाउंडर जलालुद्दीन हक्कानी ने कहा था कि कश्मीर का मसला उनके क्षेत्र से बाहर है. हालांकि, तालिबानी प्रवक्ता सुहैल शाहीन ने कहा था कि दुनिया के बाकी मुसलमानों की तरह कश्मीर के मुस्लिमों की आवाज उठाना उनका हक है. (प्रतीकात्मक तस्वीर/getty images)
तालिबान ने अपने शपथ ग्रहण समारोह में चीन, रूस और पाकिस्तान जैसे देशों को निमंत्रण दिया लेकिन भारत को नजरअंदाज किया. काबुल पर तालिबान के कब्जे के बाद भारत ने फौरन अपने दूतावास को बंद कर लिया था. अफगानिस्तान में पिछले दो दशकों से चलाई गई विकास और बुनियादी ढांचे की परियोजनाओं में भी भारत की भूमिका के सिमटने की संभावना है. (प्रतीकात्मक तस्वीर/getty images)