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विश्व

म्यांमार में तख्तापलट की निंदा करने से क्यों झिझक रहा है भारत?

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भारत उन आठ देशों में शामिल है जिन्होंने 27 मार्च को नेपिडाव में म्यांमार सशस्त्र सेना दिवस सैन्य परेड में शिरकत की. भारत के अलावा चीन, रूस, पाकिस्तान, बांग्लादेश, वियतनाम, लाओस और थाइलैंड इस परेड में शामिल होने वाले देशों में शामिल थे. भारत म्यांमार सेना के परेड में उस वक्त शामिल हुआ, जब वहां लोकतांत्रिक तरीके से चुनी गई सरकार को बेदखल कर सेना सत्ता पर काबिज हो गई. म्यांमार में नवंबर 2020 में हुए चुनाव नतीजों को खारिज करते हुए सेना ने तख्तापलट को अंजाम दिया. आंग सान सू की और म्यांमार के राष्ट्रपति विन माइंट को हिरासत में ले लिया गया. (फोटो-Getty Images)

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म्यांमार में सशस्त्र सेना दिवस सैन्य परेड यह आयोजन उस दिन हुआ था, जब सैनिकों की गोलियों से 100 से ज्यादा नागरिकों की मौत हो गई. इसमें हिस्सा लेने वालों में भारत के प्रतिनिधि के अलावा पाकिस्तान, चीन और रूस के नुमाइंदे भी शामिल थे. पिछले महीने सशस्त्र सेना दिवस सैन्य परेड में बांग्लादेश के साथ भारत की मौजूदगी इस लिहाज से महत्वपूर्ण थी कि म्यांमार में सैन्य तख्तापलट को कुछ हद तक वैधता प्रदान करने वाला यह एकमात्र प्रमुख लोकतंत्रिक देश था. हालांकि चीन, वियतनाम, लाओस और थाईलैंड में लोकतंत्र नहीं है. रूस और पाकिस्तान में सरकारें लोकतंत्र पर एक अलग तरह का मुलम्मा लगाकर शासन चलाती हैं. (फाइल फोटो)

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असल में, म्यांमार में 2008 से लोकतंत्र संक्रमण के दौर से गुजर रहा है, उस दौरान जम्हूरियत के समर्थन में प्रदर्शनकारी सड़क पर उतरे तो सेना को मजबूरी में संविधान का मसौदा तैयार करना पड़ा. सेना ने अपने हिसाब से लोकतंत्र का रोडमैप तैयार किया. बाद में, जुंटा के माध्यम से शासन करने वाली सेना ने 2011 में नोबेल पुरस्कार विजेता औल लोकतंत्र समर्थक आंग सान सू की को जेल से रिहा कर दिया. (फोटो-रॉयटर्स)
 

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नब्बे के दशक से हिरासत में रहीं आंग सान सू की की पार्टी नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी (NLD) को 2012 के चुनावों भारी जीत हासिल हुई. 2015 के राष्ट्रीय चुनावों में नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी को जबरदस्त जीत मिली. लेकिन सेना द्वारा बनाया गया संविधान उन्हें सरकार की बागडोर संभालने से रोकता रहा. उनके लिए काउंसलर के तौर पर विशष पद सृजित किया गया. बहरहाल, NLD ने 2020 में राष्ट्रीय चुनाव में जीत हासिल की. (फाइल फोटो)

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चुनाव नतीजों को सेना के लिए झटका माना गया. लेकिन सेना ने यह कहते हुए चुनाव नतीजों को खारिज कर दिया कि धांधली हुई है. हालांकि म्यांमार चुनाव आयोग ने सेना के आरोपों को खारिज कर दिया. सेना संसद में अपनी पकड़ मजबूत करना चाहती थी जबकि आंग सान सू की ने लोगों से वादा किया था कि वो संविधान में सुधार करेंगी और म्यांमार में लोकतंत्र को अमली जामा पहनाएंगी. लेकिन सेना यह सब रास नहीं आया और 1 फरवरी 2021 को म्यांमार में तख्तापलट हो गया.  

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दुनिया के अधिकांश विकसित लोकतांत्रिक देशों ने म्यांमार में सैन्य तख्तापलट की निंदा की. कई देशों ने म्यांमार की सेना की आलोचना करते हुए एक पत्र पर हस्ताक्षर किए और लोकतंत्र की बहाली का आह्वान किया. लेकिन भारत और चीन ने उस पत्र पर सिग्नेचर नहीं किए. भारत ने म्यांमार में सैन्य तख्तापलट की निंदा भी नहीं की है. बड़ी सावधानी के साथ भारत ने कहा कि म्यांमार में होने वाले घटना पर हमारी बारीक नजर है. म्यांमार में लोकतांत्रिक परिवर्तन की प्रक्रिया को भारत हमेशा अपना समर्थन देता रहा है. 

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क्या वजह है कि दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश होने का दावा करने वाला भारत म्यांमार पर बोलने को लेकर संभल कर चल रहा है. असल में, भारत म्यांमार के साथ 1,600 किलोमीटर लंबी सीमा साझा करता है. मिजोरम की म्यांमार के साथ सीमा लगती है जिसकी लंबाई लगभग 500 किमी तक तियाउ नदी के साथ-साथ चलती है. मिजोरम के लोगों के म्यांमार में सामुदायिक और पारिवारिक संबंध हैं. दूसरे, भारतीय सेना और म्यांमार की सेना का एक साथ विद्रोह से लड़ने का एक लंबा इतिहास है. उत्तर-पूर्वी राज्यों में शांति लाने में म्यांमार की सेना के सहयोग से भारत को अत्यधिक लाभ हुआ है.

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तख्तापलट के बाद म्यांमार के लोगों ने भारत में शरण लेना शुरू कर दिया है. लेकिन शरणार्थी समस्या बढ़ने के चलते केंद्र सरकार ने मिजोरम, नगालैंड, अरुणाचल प्रदेश और मणिपुर सरकार को पत्र लिखकर कहा कि वे सीमा पर शरणार्थियों को भारत में आने से रोकने का पुख्ता प्रबंध करें. वहीं मिजोरम के मुख्यमंत्री ज़ोरमथांगा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर शरणार्थियों के मदद की मांग की है. ज़ोरमथांगा मिज़ो नेशनल फ्रंट (MNF) के नेता हैं, बीजेपी के नेतृत्व वाले पूर्वोत्तर विकास गठबंधन (NEDA) का हिस्सा है. मिजोरम सरकार ने सुरक्षा बलों से म्यांमार से निकलने वाले लोगों की मदद करने का अनुरोध किया है. (फोटो-रॉयटर्स)

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भारत म्यांमार से आने वाले शरणार्थियों को लेकर भी चिंतित है. संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक 16,000 रोहिंग्या पहले से ही भारत में हैं. लेकिन भारत सरकार का दावा है कि देश में इनकी तादाद 40 हजार से ज्यादा है. भारत-म्यांमार के रिश्तों में कई परतें हैं, लिहाजा तख्तापलट पर सीधा रुख अख्तियार करना मुश्किल काम है. (फाइल फोटो)

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