विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने गुरुवार को चीन के सबसे करीबी दोस्त रूस के घर में उसे खरी-खरी सुनाई. एस. जयशंकर ने कहा कि पिछले एक साल से भारत-चीन संबंधों को लेकर चिंता काफी बढ़ी है क्योंकि बीजिंग ने सीमा मुद्दे पर समझौतों पर ध्यान नहीं दिया है, जिससे द्विपक्षीय संबंधों की नींव हिल गई है. मॉस्को में प्रिमाकोव इंस्टीट्यूट ऑफ वर्ल्ड इकोनॉमी एंड इंटरनेशनल रिलेशंस में चीन-भारत संबंधों पर एक सवाल के जवाब में विदेश मंत्री ने यह बात कही.
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एस. जयशंकर ने कहा, 'पिछले चालीस वर्षों में चीन के साथ भारत के रिश्ते लगभग स्थिर रहे हैं. दोनों के बीच थोड़ा बहुत तनाव जरूर रहा है लेकिन आम तौर पर संबंध बेहतर ही रहे हैं. मगर पिछले एक साल से सीमा विवाद के कारण दोनों के रिश्तों को लेकर चिंता बढ़ी है क्योंकि चीन ने अपनी तरफ से सीमा को लेकर समझौतों का सम्मान नहीं किया है. इससे दोनों के बीच भरोसे पर असर पड़ा है.'
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दरअसल, पिछले साल मई में पूर्वी लद्दाख में भारत और चीन के बीच हुए खूनी संघर्ष के बाद दोनों देशों के रिश्तों में गतिरोध बना हुआ है. हालांकि, सैन्य और राजनयिक वार्ता के बाद दोनों पक्षों ने फरवरी में पैंगोंग लेक के उत्तर और दक्षिण तट से सैनिकों और हथियारों की तैनाती वापस ली है.
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दोनों पक्ष अब भी उन बिन्दुओं पर डिसएंग्जमेंट प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के लिए बातचीत कर रहे हैं, जिन्हें लेकर मतभेद बना हुआ है. भारत विशेष रूप से चीन पर हॉट स्प्रिंग्स, गोगरा और देपसांग में सैनिकों को हटाने के लिए दबाव बना रहा है. सैन्य अधिकारियों के अनुसार, एलएसी पर संवेदनशील ऊंचाई वाले इलाकों में अब भी दोनों तरफ लगभग 50,000 से 60,000 सैनिक तैनात हैं.
कुछ फ्रिक्शन प्वाइंट्स से सैनिकों को हटाने को लेकर कोई प्रगति दिखाई नहीं दे रही थी क्योंकि चीनी पक्ष ने सैन्य वार्ता के 11वें दौर में इस मुद्दे पर अपने रवैये में लचीलापन नहीं दिखाया था.
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बहरहाल, एस जयशंकर ने कहा, 'वास्तव में 45 वर्ष बाद सीमा पर झड़प हुई और इसमें जवान शहीद हुए. किसी भी देश के लिए सीमा का तनाव रहित होना, वहां पर शांति होना ही पड़ोसी के साथ संबंधों की बुनियाद होती है. इसलिए बुनियाद गड़बड़ा गई है और रिश्ते भी.'
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दोनों देशों के बीच परमाणु हथियारों की होड़ की संभावना के सवाल को जयशंकर ने खारिज कर दिया. उन्होंने कहा कि चीन के परमाणु कार्यक्रम का विकास भारत की तुलना में कहीं अधिक गतिशील है. विदेश मंत्री ने कहा, "मैं नहीं मानता कि भारत और चीन के बीच परमाणु हथियारों की होड़ है. चीन 1964 में और भारत 1998 में परमाणु शक्ति बना." भारतीय विदेश मंत्री के इस बयान को इसलिए अहम माना जा रहा है क्योंकि रूस और चीन आर्थिक और वैचारिक स्तर पर काफी करीब हैं.
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भारत-रूस संबंध: अपने रूसी समकक्ष सर्गेई लावरोव के साथ अपनी द्विपक्षीय बैठक से पहले अपने संबोधन में जयशंकर ने इस बात पर भी जोर दिया कि राजनीतिक मोर्चे पर भारत और रूस के लिए दुनिया की स्थिरता और विविधता सुनिश्चित करने के लिए दोनों का मिलकर काम करना आवश्यक है. विदेश मंत्री ने भारत-प्रशांत क्षेत्र में आक्रामक चीन का जिक्र करते हुए कहा, "इसमें समझौतों का सम्मान करने और कानूनों का पालन करने पर जोर देना शामिल है."
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Russia has been a dependable defence partner. Experience of past cooperation being applied to a more contemporary requirement, including Make in India.
— Dr. S. Jaishankar (@DrSJaishankar) July 8, 2021
Energy, in particular, holds enormous promise as we engage in long-term planning & cooperation.
रूस की तीन दिन की यात्रा पर मॉस्को पहुंचे विदेश मंत्री ने कहा, आर्थिक मोर्चे पर लचीलापन और भरोसमंद सप्लाई चेन के महत्व का अहसास बढ़ रहा है. जयशंकर ने कहा, "हमारा सहयोग निश्चित रूप से दुनिया के सामने विकल्पों को जोड़ सकता है, जैसा कि हम पहले ही (कोरोना वैक्सीन) टीकों के मामले में देख चुके हैं."
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जयशंकर ने कहा, मौजूदा कूटनीति की दुनिया में भारत-रूस संबंध विशेष रूप से परिपक्व हैं. रूस के साथ रिश्तों पर विदेश मंत्री ने कहा कि अपने समकालीनों से अधिक यह समय की कसौटी पर खरा उतरा है. बदलती परिस्थितियों के साथ यह नया आयाम ढूंढ रहा है. भू-राजनीतिक अनुकूलता, नेतृत्व में विश्वास और लोकप्रिय भावना इसके प्रमुख चालक बने हुए हैं.
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जयशंकर ने कहा कि इतिहास हमारे पक्ष में रहा है. कुछ ऐसा जो हमेशा सभी रिश्तों के लिए नहीं कहा जा सकता है. उन्होंने कहा कि अतीत से प्रेरणा और वर्तमान का आकलन करते हुए और भविष्य के लिए प्रतिबद्ध होकर मुझे पूरा भरोसा है कि दोनों देश अपने विशेष और विशेषाधिकार प्राप्त सामरिक संबंधों का पूरा लाभ लेते रहेंगे.
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भारतीय विदेश मंत्री ने कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि दूसरे विश्व युद्ध के बाद रूस और भारत के बीच संबंध दुनिया के सबसे प्रमुख संबंधों में से एक रहे हैं. जयशंकर ने कहा कि इसमें कोई शक नहीं है कि दूसरे विश्व युद्ध के बाद से भारत और रूस के बीच रिश्ते हमेशा बेहतर रहे हैं. अमेरिका साथ रूस के रिश्तों में उतार-चढ़ाव जरूर आया है लेकिन भारत के साथ उसके रिश्ते हमेशा स्थिर रहे हैं.
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भारत के विदेश मंत्री ने कहा कि पिछले 5 दशकों में भारत परमाणु शक्ति बना है, उसकी अर्थव्यवस्था बढ़ी है और विश्व स्तर पर उसकी भूमिका भी बढ़ी है. अब भारत को संकट में मदद के लिए सबसे पहले आगे आने वाले देश के तौर पर देखा जा रहा है. एस जयशंकर ने कहा कि यूरेशिया की एक महत्वपूर्ण ताकत के तौर पर और बदलते वैश्विक व्यवस्था में रूस की अहमियत बढ़ी है. ये काफी नहीं है कि हम बदलावों को पहचानें बल्कि हमें उसकी वजहों को भी समझना होगा. भारत और रूस दोनों समझते हैं कि अब दुनिया एकध्रुवीय नहीं, बल्कि अनेक ध्रुवों की हो चुकी है. इस समझ के साथ दोनों के बीच रिश्तों में मजबूती आई है.
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