इजरायल-फिलिस्तीन में चल रहे संघर्ष की वजह से पूरे मध्य-पूर्व में तनाव की स्थिति बनी हुई है. हर देश अपना-अपना पक्ष चुन रहा है लेकिन भारत के लिए कोई भी पक्ष चुनना इतना आसान नहीं है. ईरान लंबे समय से मध्य-पूर्व में भारत के साथ खड़ा रहा है लेकिन हाल के दिनों में बदली वैश्विक परिस्थिति में ईरान और भारत की भी दूरियां बढ़ी हैं. सोमवार को ईरान ने भारत ने एक और ऐसा फैसला लिया जिसे दोनों देशों के संबंधों के लिए झटके के तौर पर देखा जा रहा है.
ईरान की मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, ईरान ने विशाल गैस फील्ड फरजाद-बी के विकास की परियोजना अपने देश की एक कंपनी को दे दी है. भारत इस गैस फील्ड के विकास की परियोजना को हासिल करने के लिए लंबे समय से प्रयास कर रहा था. भारत की सरकारी कंपनी ओएनजीसी विदेश लिमिटेड ने ही फारस की खाड़ी में फरजाद-बी गैस फील्ड की खोज की थी. ये भारत और ईरान के ऊर्जा क्षेत्र में सहयोग के लिहाज से भी अच्छी खबर नहीं है.
ईरान के पेट्रोलियम मंत्रालय की आधिकारिक न्यूज एजेंसी शाना की रिपोर्ट के मुताबिक, नेशनल ईरानियन ऑयल कंपनी (NIOC) ने फारजाद बी गैस फील्ड का विकास करने के लिए पेट्रोपार्स ग्रुप के साथ 1.78 अरब डॉलर के समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं.
17 मई को ईरान के पेट्रोलियम मंत्री बिजान जांगेनेह की मौजूदगी में इस समझौते पर हस्ताक्षर किए गए हैं. सोमवार को गैस फील्ड को लेकर हुआ समझौता इस बात का भी संकेत है कि ईरान पर अमेरिकी प्रतिबंधों का असर भारत-ईरान के ऊर्जा सहयोग पर भी पड़ने लगा है. अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ईरान पर कड़े प्रतिबंध लगाए थे जिसकी वजह से भारत को भी उससे तेल आयात घटाना पड़ा था.
फरजाद बी गैस फील्ड काफी अहमियत रखता है क्योंकि इसमें करीब 23 ट्रिलियन क्यूबिक फीट गैस का भंडार है जिसमें से 60 फीसदी गैस इस्तेमाल के लायक है. फरजाद फील्ड में प्रति अरब क्यूबिक फीट गैस में 5000 बैरल गैस कंडेनसेट्स है. शाना की रिपोर्ट के मुताबिक, सोमवार को हुए इस समझौते के तहत पांच सालों में प्रतिदिन 28 मिलियन क्यूबिक मीटर प्राकृतिक गैस के उत्पादन का लक्ष्य रखा गया है.
ओएनजीसी विदेश लिमिटेड ने साल 2008 में फारस की खाड़ी में ईरान के हिस्से वाले इलाके में इस विशाल गैस भंडार की खोज की थी जिसका नाम बाद में फरजाद-बी रखा गया था. ओएनजीसी विदेश और इसके साझेदारों ने इस गैस भंडार के विकास के लिए 11 अरब डॉलर का निवेश करने का प्रस्ताव रखा था. पीटीआई की अक्टूबर 2020 में छपी रिपोर्ट के मुताबिक, नेशनल ईरानियन ऑयल कंपनी ने ओएनजीसी को बताया था कि वह एक ईरानी कंपनी के साथ फरजाद-बी पर समझौते को अंतिम रूप देना चाहती है. ओएनजीसी ने जो बोली लगाई थी, उसे ईरान ने खारिज कर दिया. इसके बाद ओनएनजीसी का प्रस्ताव कई सालों तक ठंडे बस्ते में रहा.
ONGC ने ईरान के समुद्री इलाके में 20-90 मीटर गहराई में 3500 वर्गकिमी के गैस फील्ड की खोज की थी. 25 दिसंबर 2002 को एक्सप्लोरेशन सर्विस कॉन्ट्रैक्ट (ESC) पर ओएनजीसी विदेश लिमिटेड ने हस्ताक्षर किए थे. उसकी गैसफील्ड की खोज से जुड़े कॉन्ट्रैक्ट में 40 फीसदी की हिस्सेदारी थी. इसके अलावा, इंडियन ऑयल कॉर्प्स (आईओसी) की 40 फीसदी की हिस्सेदारी और ऑयल इंडिया की 20 फीसदी की हिस्सेदारी थी.
ओएनजीसी विदेश ने फरजाद गैसफील्ड की खोज की जिसे ईरान की तेल कंपनी NIOC ने अगस्त 2018 में व्यावसायिक रूप से उपयोगी घोषित किया था. हालांकि, भंडार की खोज से जुड़ा अनुबंध 24 जून 2009 को खत्म हो गया. भारतीय फर्म ने अप्रैल 2011 में ईरानियन ऑफशोर ऑयल कंपनी को फरजाद गैसफील्ड के विकास को लेकर अपनी योजना सौंपी. उस वक्त NIOC ने फरजाह गैस फील्ड से जुड़ी योजना की देखरेख की जिम्मेदारी ईरानियन ऑफशोर ऑयल कंपनी को सौंपी हुई थी.
कई सालों से इस गैस फील्ड के विकास को लेकर भारत की तरफ से समझौता करने की कोशिश की जा रही थी लेकिन ईरान पर प्रतिबंध और कड़ी शर्तों के चलते ये योजना भारत के हाथ से निकल गई. भारतीय कंपनियां इस गैस ब्लॉक में अब तक 40 करोड़ डॉलर का निवेश कर चुकी हैं.