1962 में भारत और चीन के बीच युद्ध हुआ तो दोनों देश परमाणुशक्ति संपन्न नहीं थे. आज की तारीख में भारत और चीन दोनों परमाणु हथियारों से लैस हैं. 58 सालों बाद भारत और चीन सैन्य शक्ति के मामले बहुत आगे निकल चुके हैं. दोनों देशों की सेना दुनिया की बड़ी और मजबूत सेनाओं में एक मानी जाती है. डोकलाम विवाद के वक़्त तत्कालीन रक्षा मंत्री अरुण जेटली ने दो टूक कहा था कि भारत 1962 से बहुत आगे निकल चुका है इसलिए चीन को कोई मुगालते में नहीं रहना चाहिए.
पिछले तीन महीने से भारत और चीन के बीच पूर्वी लद्दाख में सरहद पर तनाव है. 15 जून को 45 सालों बाद दोनों देशों के सैनिकों की बीच हिंसक झड़प हुई और इसमें 20 भारतीय सैनिक शहीद हो गए. उसके बाद से तनाव कायम है और पिछले हफ्ते भी दोनों देशों के सैनिकों के बीच झड़प हुई. भारत से चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ और पूर्व सेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत ने दो टूक कहा है कि अगर चीन के साथ मसला बातचीत से नहीं सुलझता है तो सैन्य विकल्प मौजूद है. ऐसे में अगर दोनों देश युद्ध की तरफ़ बढ़ते हैं तो यह जंग 1962 से बिल्कुल अलग होगी और भयावह भी.
अगर दोनों देश भिड़ते हैं तो आशंका इस बात की भी है कि चीन के साथ पाकिस्तान भी न आ जाए. चीन के साथ तनाव जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 के हटाने के बाद से बढ़ा है. इसे लेकर चीन और पाकिस्तान दोनों को एतराज है. ऐसे में भारत के खिलाफ लद्दाख में चीन के हालिया कदम के साथ पाकिस्तान भी जुड़ा है. पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने भी कह दिया है कि उनके मुल्क का भविष्य अब चीन के साथ ही है. भारत को भी इस बात का अंदाजा है कि चीन के साथ जंग होने की स्थिति में पाकिस्तान के लिए भी तैयार रहना होगा.
सीडीएस बिपिन रावत जब सेना प्रमुख थे तभी उन्होंने कहा था कि भारत ढाई मोर्चे से जंग के लिए तैयार. जाहिर है कि ढाई मोर्च में पाकिस्तान भी शामिल है. 1962 की जंग में पाकिस्तान तटस्थ था. हालांकि यह भी कहा जाता है कि उसे अमेरिका ने रोक लिया था. लेकिन तीन साल बाद ने पाकिसतान ने ये सोचकर भारत पर 1965 में हमला कर दिया था कि चीन से भारत की हार के बाद वहां की सेना का मनोबल गिरा हुआ है. हालांकि पाकिस्तान का यह आकलन गलत साबित हुआ था और उसे मुंह की खानी पड़ी थी.
भारत और चीन की सीमा रेखा का निर्धारण स्पष्ट नहीं है और इसीलिए दोनों देशों के बीच समय-समय पर सीमा विवाद उभरते रहते हैं. भारत और चीन के बीच मौजूदा सीमा विवाद पैंगोंग झील के पास हुआ है. इंटरनेशनल इंस्टिट्यूट फॉर स्ट्रैटिजिक स्टडीज में दक्षिण एशिया मामलों के जानकार एंटोनी लेवेक्स ने सीएनएन से कहा, पैंगोंग झील की दोनों पक्षों के लिए सैन्य नजरिए से बहुत अहमियत नहीं है लेकिन इसके बावजूद दोनों देशों की सेना यहां गश्ती और विकास कार्य में लगी हुई हैं.''
लेवेक्स कहते हैं, चीन के लिए भले ही इसका सैन्य महत्व ना हो लेकिन इस इलाके पर नियंत्रण से चीन को रणनीतिक फायदा जरूर होगा. साल 1962 में भी पैंगोंग झील में जंग हुई थी और चूंकि भारत 62 की जंग हारा था इसलिए चीन के लिए इस जगह का सांकेतिक महत्व है. भारत और चीन के बीच मौजूदा सीमा विवाद में आक्रामक विदेश नीति भी एक वजह है. चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के शासन में चीन ना केवल हिमालय में बल्कि दक्षिण चीन सागर में भी अपने दावे को लेकर आक्रामक है. ताइवान और हॉन्ग कॉन्ग को लेकर भी चीन का रुख बेहद सख्त है.
दूसरी तरफ, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ना सिर्फ पाकिस्तान बल्कि चीन को लेकर भी आक्रामक रुख अपनाया है. मोदी सरकार ने कश्मीर से जब अनुच्छेद 370 हटाया और इसे दो केंद्र शासित प्रदेशों लद्दाख और जम्मू-कश्मीर में बांटा तो पाकिस्तान के साथ-साथ चीन ने भी कड़ी प्रतिक्रिया दी. चीन ने संयुक्त राष्ट्र में भी पाकिस्तान की तरफ से कश्मीर का मुद्दा उठाने की भी कोशिश की. संसद में भारतीय गृह मंत्री अमित शाह ने स्पष्ट रूप से कहा था कि अक्साई चिन भी भारत का हिस्सा है. अभी अक्साई चिन चीन के नियंत्रण में है.
विश्लेषकों का कहना है कि इस इलाके में भारत का विस्तार या मजबूत होना चीन के पश्चिम एशिया में रणनीतिक लक्ष्य को खतरे में डाल सकता है. चीन ने पाकिस्तान में सीपीईसी में 60 अरब डॉलर से ज्यादा का निवेश किया है जो कश्मीर के विवादित क्षेत्र से होकर गुजरता है. ये शी जिनपिंग के बेल्ट ऐंड रोड परियोजना की बेहद अहम कड़ी है. ये सारे घटनाक्रम जून में हुए संघर्ष की नींव रख रहे थे. भारत में कोरोना को लेकर पहले से ही चीन के प्रति आक्रोश था जो लद्दाख में हिंसक संघर्ष के बाद और बढ़ गया. इसके बाद भारत अमेरिका की करीबी और बढ़ी है जो चीन को परेशान कर रही है.
रणनीतिक मामलों के जानकार माइकेल कुगलमन कहते हैं, अमेरिका चीन के रिश्ते बिना किसी जंग में हुए जितने खराब हो सकते हैं, उतने हैं जबकि भारत-अमेरिका के रिश्ते मजबूत हुए हैं. लद्दाख संघर्ष को देखते हुए चीन अमेरिका और भारत दोनों को कड़ा संदेश देना चाह रहा है- अगर आप साथ हैं तो दोनों को पीछे जाना होगा.
भारत और चीन के बीच अगर कोई भी जंग होती है तो उस पर परमाणु खतरा भी मंडराएगा. भारत और चीन के बीच विवादित सीमाई इलाके में हथियार नहीं ले जाने को लेकर सहमति बनी है इसलिए जून महीने में हुई झड़प में हाथापाई और कंटीले तार बंधे डंडों से हुई. हालांकि, संघर्ष के बाद भारत और चीन दोनों ही इलाके में अपने सैनिकों की तैनाती बढ़ा रहे हैं और मिसाइल व अन्य हथियार इकठ्ठा कर रहे हैं.
स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टिट्यूट (SIPRI) के मुताबिक, भारत और चीन दोनों देशों ने पिछले एक साल में अपनी परमाणु हथियारों की संख्या तेजी से बढ़ाई है. सिपरी की 2020 की रिपोर्ट के मुताबिक, चीन और पाकिस्तान की तुलना में भारत के पास कम परमाणु बम हैं. भारत के पास 150 परमाणु बम हैं जबकि चीन के पास 320 और पाकिस्तान के पास 160 परमाणु बम हैं. चीन के 240 परमाणु बम चीन की बैलेस्टिक मिसाइलों और न्यूक्लियर एयरक्राफ्ट के लिए दिए गए हैं. इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती कि अगर जंग में इन परमाणु हथियारों का इस्तेमाल हुआ तो विनाश का पैमान क्या होगा.
भारत के पास तीनों मोर्चों से परमाणु हमला करने की क्षमता है यानी भारत जमीन, आसमान और समुद्र तीनों में परमाणु युद्ध लड़ने में सक्षम है. 2018 में भारत की परमाणु शक्ति संपन्न पनडुब्बी आईएनएस अरिहंत के सेना में शामिल होने के बाद से भारत की ताकत बढ़ी है. भारत की परमाणु पनडुब्बी आईएनएस के लिए 12 परमाणु बम रिजर्व हैं.
SIPRI की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत भी अपने परमाणु हथियारों का जखीरा बढ़ाने के साथ-साथ इन्फ्रास्ट्रक्चर के विकास कर रहा है. भारत की परमाणु शक्ति का सबसे अहम हिस्सा एयरक्राफ्ट हैं. सिपरी के मुताबिक, एयरक्राफ्ट के लिए 48 परमाणु बम रिजर्व किए गए हैं. थिंक टैंक सिपरी ने अपनी रिपोर्ट में बताया था कि चीन पहली बार न्यूक्लियर ट्रायड यानी जमीन, समुद्र और हवा से मार करने वाली मिसाइलों का विकास कर रहा है. चीन अपने परमाणु हथियारों के आधुनिकीकरण की प्रक्रिया में जुटा हुआ है. चीन अब पहले की तुलना में अपनी परमाणु शक्ति का भी ज्यादा प्रदर्शन करता है.
चीन का रक्षा बजट साल 2020 में 179 अरब डॉलर है जबकि भारत का रक्षा बजट सिर्फ 70 अरब डॉलर का है. भारतीय सेना में ऐक्टिव जवानों की संख्या 14.44 लाख और 21 लाख रिजर्व में हैं. वहीं, चीन के पास 21.83 लाख ऐक्टिव और 5.10 लाख रिजर्व जवान हैं. भारत के पास 4292 लड़ाकू टैंक, 8686 बख्तरबंद लड़ाकू वाहन, स्वचालित आर्टिलरी 235, फील्ड आर्टिलरी 4060 और रॉकेट लॉन्चर्स 266 हैं. जबकि, चीन के पास 3500 लड़ाकू टैंक, 33 हजार बख्तरबंद लड़ाकू वाहन, 3800 स्वचालित आर्टिलरी, 3600 फील्ड आर्टिलरी और 2650 रॉकेट लॉन्चर्स हैं. कुल मिलाकर, भारत और चीन के पास पर्याप्त ऐसे हथियार हैं जो इस जंग को खतरनाक बना सकते हैं.
कार्नीज एंडोमेंट फॉर इंटरनेशनल पीस के विश्लेषक टोबी दाल्टन और तोंग झाओ का कहना है कि भारत और चीन के बीच पिछले 50 सालों का ये सबसे गंभीर सैन्य संघर्ष है. उन्होंने लिखा, अगर दो ताकतवर पड़ोसी देश एक बहुत ही प्रतिस्पर्धी युग में प्रवेश कर रहे हैं तो एक सवाल उठता है कि क्या परमाणु हथियार इसमें अहम भूमिका निभाएंगे क्योंकि हर देश दूसरे देश के बर्ताव को सुधारना चाहता है.
भारत और पाकिस्तान के बीच जब भी टकराव बढ़ता है तो परमाणु हथियारों का जिक्र होता है लेकिन भारत-चीन के मामले में ऐसा नहीं है. सार्वजनिक रूप से तो दोनों देशों के विवाद में कभी भी परमाणु हथियारों का जिक्र नहीं होता है. दाल्टन और झाओ के मुताबिक, 2020 के सीमा विवाद समेत तमाम टकराव में परमाणु हथियार पृष्ठभूमि में ही रहे हैं हालांकि दोनों देशों के नेता आक्रामक और राष्ट्रवादी रुख रखते हैं. चीन और भारत दोनों ही अपने परमाणु हथियारों को बेहतर करने में लगे हैं और अपनी पारंपरिक सैन्य क्षमता भी बढ़ा रहे हैं. ऐसे में ये एक गंभीर सवाल है कि क्या दोनों देश परमाणु हथियारों को इस्तेमाल ना करने की अपनी नीति पर कायम रह पाएंगे.
उन्होंने इस बात को लेकर चिंता जताई कि चीन की परमाणु रणनीति अमेरिका को काउंटर करने पर केंद्रित है और भारत में अपनी गतिविधियों को लेकर हो रही प्रतिक्रिया की अनदेखी करती है. भारत चीन की परमाणु शक्ति से अच्छी तरह परिचित है और इसे एक खतरे के तौर पर देखता है लेकिन चीन ना तो भारत की सुरक्षा चिंताओं पर ध्यान दे रहा है और ना ही ये समझ पा रहा है कि उसका धीरे-धीरे परमाणु क्षमता बढ़ाना भारत को अपनी रणनीतिक क्षमता और परमाणु जखीरे को मजबूत करने के लिए प्रेरित कर रहा है. परमाणु हथियारों की ये रेस भारत-चीन के बीच संघर्ष को भारत-पाकिस्तान के बीच छिड़ती आई जंग का रूप दे सकती है जिसमें परमाणु युद्ध का खतरा बना रहेगा.
चीन भारत से किसी भी तरह का खतरा महसूस नहीं करता है और उसका ये रुख चीन की सरकारी मीडिया की कवरेज से भी जाहिर होता है. चाइना डेली ने मंगलवार को लिखा, चीन की सीमा पर भारत के उकसावे वाली गतिविधि और दोनों देशों के खराब होते द्विपक्षीय संबंधों से उन देशों को खुशी मिली होगी जो चीन को काउंटर करने की अपनी रणनीति में भारत को मोहरा बना रहे हैं. लेकिन अगर भारत की उकसावे वाली गतिविधि से जंग छिड़ती है तो भारत को इन देशों से किसी भी तरह की मदद की उम्मीद नहीं रखनी चाहिए.
ग्लोबल टाइम्स के एक संपादकीय लेख में भारत की आर्थिक परेशानियों और कोरोना वायरस के हालात को लेकर विस्तार से चर्चा की गई है. इसमें ये भी कहा गया है कि भारत का चीन के साथ सीमा विवाद इस बात का सबूत है कि राष्ट्रवाद उसके लिए कितना घातक साबित हो रहा है. ग्लोबल टाइम्स ने लिखा, चीन भारत का ताकतवर पड़ोसी देश है और वहां उससे भाग नहीं सकता है. दोनों देश साथ मिलकर विकास कर सकते हैं लेकिन अगर भारत चीन को अपना रणनीतिक दुश्मन बनाना चाहता है तो फिर उसे भारी कीमत चुकाने के लिए तैयार रहना चाहिए. ये भी बात साफ है कि भारत कभी भी एक इंच जमीन पर कब्जा नहीं कर पाएगा.
एक अन्य लेख में ग्लोबल टाइम्स ने शंघाई इंस्टिट्यूट फॉर इंटरनेशनल स्टडीज के साउथ एशिया स्टडीज के प्रमुख वांग देहुओ को कोट करते हुए लिखा है, चीन के साथ टकराव बढ़ाकर भारत आंख मूंदकर अमेरिका की बताई राह पर आगे बढ़ रहा है. चीन को लगता है कि अगर भारत-चीन के बीच ऐसा कोई संघर्ष होता है तो 1962 की तरह जीत उसी की होगी. हालांकि, 1962 का युद्ध दो बिल्कुल अलग देशों के बीच लड़ा गया था और उस वक्त कोई भी देश परमाणुशक्ति संपन्न नहीं था. अब स्थितियां बहुत बदल चुकी हैं और किसी भी नए संघर्ष के नतीजे 1962 से बहुत ज्यादा घातक होंगे.