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विश्व

कतर में गुमनाम मौत मर रहे भारतीय प्रवासी मजदूर

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खाड़ी के देशों में काम कर रहे प्रवासी भारतीयों के देश के विदेशी मुद्रा भंडार में बड़े योगदान को हर कोई स्वीकार करता है लेकिन वे किस हालत में काम कर रहे हैं, ये उनके सिवा शायद ही कोई जानता है. कतर में साल 2022 में फीफा वर्ल्ड कप का आयोजन होने वाला है, इस वजह से यहां भारत समेत पड़ोसी देशों के मजदूरों की तादाद बढ़ी है. कई मानवाधिकार संगठनों ने चिंता जताई है कि प्रवासी कामगारों से बेहद अमानवीय परिस्थितियों में काम कराया जा रहा है.

(Representational Image/Gettyimages)
 

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कतर में तमाम प्रवासी मजदूर मजबूरियों से भरी जिंदगी जी रहे हैं और गुमनाम मौत मर रहे हैं. 'द गार्डियन' की हालिया रिपोर्ट के मुताबिक, कतर में पिछले 10 सालों में भारत, पाकिस्तान, नेपाल, बांग्लादेश और श्रीलंका के 6500 से ज्यादा प्रवासी मजदूरों की मौत हुई है. 'द गार्डियन' की रिपोर्ट के मुताबिक, दिसंबर 2010 में फीफा वर्ल्ड कप की मेजबानी हासिल करने के बाद से भारत समेत पांचों एशियाई देशों से हर सप्ताह 12 प्रवासी मजदूरों की मौत हुईं.

(Representational Image/Gettyimages)

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भारत, बांग्लादेश, नेपाल और श्रीलंका के डेटा से पता चलता है कि साल 2011 से 2020 के बीच करीब 5927 प्रवासी मजदूरों की मौत हुईं. कतर में पाकिस्तान के दूतावास की ओर से जारी किए गए आंकड़ों के मुताबिक, पिछले 10 सालों में 824 पाकिस्तानी मजदूरों की मौत हुई है. कतर की सरकार इन मजदूरों की मौतों की पड़ताल करने में भी नाकाम रही है.

(Representational Image/Gettyimages)

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साल 2022 में होने वाले फीफा वर्ल्ड कप के मद्देनजर कतर में निर्माण कार्य जोरों पर है. सात नए स्टेडियम के अलावा, दर्जनों परियोजनाएं पर काम चल रहा है जिसमें एक नए एयरपोर्ट, होटल्स और एक नए शहर का निर्माण भी शामिल है. खाड़ी देशों में मजदूरों के अधिकारों की वकालत करने वाले संगठन फेयरस्क्वेयर प्रोजेक्ट्स के डायरेक्टर निक मैकगीहन ने 'द गार्डियन' से बताया, मजदूरों की मौत को उनके पेशे के तौर पर वर्गीकृत नहीं किया जाता है लेकिन इनमें से ज्यादातर मजदूर वर्ल्ड कप की परियोजनाओं में ही काम कर रहे थे. साल 2011 से लेकर अब तक जिन मजदूरों की मौत हुई हैं, उनमें से अधिकतर कतर के वर्ल्ड कप की मेजबानी हासिल करने के बाद ही यहां आए थे.

(Representational Image/Gettyimages)

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कतर में प्रवासी मजदूरों की बहुत बड़ी तादाद है. कतर की कुल आबादी करीब 30 लाख है जबकि यहां 20 लाख प्रवासी मजदूर काम करते हैं. यहां साढ़े छह लाख से ज्यादा भारतीय कामगार भी हैं. हालांकि, यहां के श्रम कानूनों की वजह से कामगारों पर मालिक का पूरा नियंत्रण रहता है. दुर्घटना में मजदूरों की मौत होने पर उन्हें पर्याप्त मुआवजा तक नहीं मिलता.

(Representational Image/Gettyimages)

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रिपोर्ट के मुताबिक, वर्ल्ड कप स्टेडियम के निर्माण कार्य से जुड़े 37 मजदूरों की मौत हुईं जिसमें से 34 लोगों की मौत को आयोजन समिति ने काम से इतर श्रेणी में रखा है. एक्सपर्ट्स ने इस टर्म के इस्तेमाल पर सवाल खड़े किए हैं क्योंकि इनमें उन लोगों की मौत को भी शामिल किया जाता है जिनकी मौत कंस्ट्रक्शन साइट पर हुई.

(Representational Image/Gettyimages)

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इन आंकड़ों के पीछे तमाम भारतीय परिवारों की तबाही की कहानी भी छिपी है. कई परिवार अपने इकलौते रोजी-रोटी कमाने वाले सदस्य को खो चुके हैं. उन्हें ना तो कोई मुआवजा मिला और अब ना ही उनका कोई सहारा बचा है. भारत के मधु बोल्लापली की भी कतर में काम करने के दौरान मौत हो गई थी. लेकिन आज तक उनके परिवार वाले नहीं समझ पाए कि 43 साल के स्वस्थ मधु की मौत कैसे हो गई. उनका शव कमरे के फर्श पर पड़ा मिला था.

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मधु साल 2013 में अपनी बीवी लता और 13 साल के बेटे राजेश को छोड़कर नौकरी की तलाश में कतर पहुंचे थे. लेकिन उसके परिवार वाले फिर कभी उसे नहीं देख पाए. साल 2019 की एक रात जब मधु के रूममेट डॉर्म लौटे तो उसकी लाश फर्श पर पड़ी हुई थी. रिकॉर्ड में मधु की मौत की वजह हार्ट अटैक बताई गई.

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एंप्लायर के लिए तकरीबन छह सालों तक काम करने के बावजूद मधु की पत्नी और बेटे को बकाया वेतन और मुआवजे के तौर पर सिर्फ 1,14000 रुपये ही मिले. राजेश ने बताया कि उसके पिता को कोई स्वास्थ्य समस्या नहीं थी और उनके साथ किसी भी तरह की कोई दिक्कत नहीं थी. राजेश को आज तक समझ नहीं आया कि उनके पिता की मौत की असली वजह क्या थी.

(Representational Image/Reuters)

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नेपाल के घाल सिंह राय ने एजुकेशन सिटी वर्ल्ड कप स्टेडियम के एक कैंप में क्लीनर की नौकरी पाने के लिए करीब एक लाख रुपये की रिक्रूटमेंट फीस भरी. एक सप्ताह के भीतर ही उसने आत्महत्या कर ली. वहीं, बांग्लादेश के मोहम्मद शाहिद मिया को  रहने की जो जगह दी गई थी, वहां पानी में करेंट का प्रवाह होने से उसकी मौत हो गई.

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कतर में आधिकारिक आंकड़े में प्रवासी मजदूरों के मौत के कारणों में घायल होना, इमारत से गिरना एस्फिक्सिया समेत तमाम बातें शामिल हैं लेकिन अधिकतर मौतों को प्राकृतिक मौत बताया जाता है. भारतीय मजदूरों की मौत में से 80 फीसदी को प्राकृतिक मौत की श्रेणी में रखा गया है. जबकि साल 2019 में एक रिपोर्ट में बताया गया था कि कई मजदूरों की मौत में अत्यधिक गर्मी एक अहम फैक्टर है. 

(Representational Image/Gettyimages)

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कतर की सरकार के वकीलों ने ही साल 2014 में एक रिपोर्ट में सिफारिश की थी कि कार्डियक अरेस्ट से मरने वाले प्रवासी मजदूरों के मामलों की जांच की जाए और कानून में सुधार करके अचानक या अप्रत्याशित मौत के मामले में आटोप्सी की अनुमति भी दी जाए लेकिन सरकार ने ऐसा कुछ नहीं किया.

(Representational Image)

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कतर की सरकार अपने बचाव में कहती है कि प्रवासी मजदूरों की बड़ी तादाद के अनुपात में मौत का आंकड़ा ज्यादा नहीं है और इनमें कई ऐसे हैं जिनके पास अच्छी नौकरियां थीं और उनकी मौत प्राकृतिक रूप से हुई. छह महीने पहले कतर ने अपने श्रम कानूनों में बदलावों का ऐलान किया था जिससे प्रवासी मजदूरों की उम्मीदें जगी थीं. हालांकि, साल 2021 में कतर की शूरा काउंसिल की पहली बैठक के बाद फिर से ऐसी सिफारिशें की गई हैं जिनसे लगता है कि वहां मजदूरों की हालत में असल में शायद ही कोई सुधार आने वाला है. कतर की शूरा काउंसिल की सिफारिशें अगर मान ली गईं तो प्रवासी मजदूरों के लिए नौकरी बदलना और मुश्किल हो जाएगा. शूरा काउंसिल ने कहा है कि पूरे प्रवास के दौरान कामगार तीन बार से ज्यादा नौकरी नहीं बदल सकेंगे. 

(Representational Image/Reuters)

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