म्यांमार में तख्तापलट के दो दिन बाद नेता आंग सान सू के खिलाफ पुलिस ने आरोप तय किए हैं. न्यूज एजेंसी एसोसिएट प्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, म्यांमार की पुलिस ने आंग सान सू की पर अवैध तरीके से संचार उपकरण आयात करने का आरोप लगाया है. पुलिस ने कोर्ट से आंग सान सू की को 15 फरवरी तक के लिए कस्टडी में देने की मांग की है. कहा जा रहा है कि ये कदम आंग सान सू की गिरफ्तारी को कानूनी रूप से सही दिखाने की कोशिश भर है.
म्यांमार की सेना ने सोमवार को तख्तापलट करते हुए देश की सत्ता अपने हाथ में ले ली थी और आंग सान सू की समेत सत्ताधारी पार्टियों के तमाम नेताओं को गिरफ्तार कर लिया था. सेना ने चुनाव में धांधली का दावा करते हुए अपनी कार्रवाई को सही ठहराया और देश में एक साल के लिए इमरजेंसी लगा दी. दरअसल, पिछले साल 9 नवंबर को हुए चुनाव में आंग सान सू की पार्टी को बड़ी जीत हासिल हुई थी जबकि सेना के समर्थन वाली पार्टी को बहुत कम सीटों से संतोष करना पड़ा था.
पुलिस के एक दस्तावेज के मुताबिक, आंग सान सू की के घर से चार रेडियो बरामद हुए हैं जिन्हें अवैध तरीके से आयात किया गया है. पुलिस ने कहा है कि देश के आयात-निर्यात कानून के उल्लंघन के अलावा, आंग सान सू की के बॉडीगार्ड्स बिना इजाजत के इन रेडियो का इस्तेमाल कर रहे थे. म्यांमार की पुलिस ने कहा है कि आंग सान सू की को गवाहों और सबूत की पड़ताल करने के लिए गिरफ्तार किया गया है.
बर्मा कैंपेन यूके के डायरेक्टर मार्क फार्मनर ने कहा कि सू की के खिलाफ लगाए आरोप बिल्कुल फर्जी हैं और ये सेना के डर को दिखाता है. उन्होंने कहा, "पिछले कई सालों में सेना ने आंग सान सू की को मामूली सी बातों को लेकर लंबे समय तक जेल में रखा है. इससे पहले, एक अमेरिकी नागरिक जॉन येतॉ के आंग सान सू की घर के नजदीक एक झील में तैरने की वजह से उन्हें जेल में डाल दिया गया था. असलियत तो ये है कि वे आंग सान सू की को इसलिए जेल में डाल रहे हैं क्योंकि वे उनसे डरे हुए हैं."
अलजजीरा के पत्रकार अली फौले का कहना है कि म्यांमार का आयात-निर्यात कानून बहुत ही अस्पष्ट है. इसमें फैक्स मशीन से लेकर वॉकी-टॉकी कुछ भी हो सकता है. ये कुख्यात कानून है क्योंकि पूर्व की सैन्य सरकारें भी राजनीतिक कैदियों को जेल में रखने के लिए इसी कानून का इस्तेमाल करती थीं.
आसियान देशों की मानवाधिकार संसदीय समिति (एपीएचआर) ने कहा है कि म्यांमार का तख्तापलट उन लाखों लोगों के जख्मों पर नमक रगड़ने की तरह है जिन्होंने नवंबर महीने में आंग सान सू की पार्टी को वोट किया था. संगठन ने कहा कि म्यांमार एक बार फिर सैन्य तानाशाही के दौर में लौट सकता है. एपीएचआर के अध्यक्ष चार्ल्स सैंटिआगो ने कहा, ये आरोप फर्जी हैं. म्यांमार की सेना लोकतांत्रिक तरीके से चुनी गई सरकार का तख्तापलट करने के बाद सत्ता पर अपने अवैध कब्जे को वैधता प्रदान करने की कोशिश कर रही है.
आंग सान सू की की पार्टी नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी (एनएलडी) ने सेना से नवंबर महीने में हुए चुनाव के नतीजों का सम्मान करने और आंग सान सू की समेत गिरफ्तार नेताओं को तुरंत रिहा करने की अपील की है. पार्टी ने अपने फेसबुक पेज पर पोस्ट किए बयान में कहा, म्यांमार के कमांडर-इन-चीफ संविधान के खिलाफ जाकर सत्ता पर काबिज हो रहे हैं और जनता की शक्ति को नजरअंदाज कर रहे हैं.
म्यांमार में दशकों तक सैन्य शासन ही रहा है. सू की ने साल 1989 से लेकर साल 2010 तक करीब 15 साल जेल में ही बिताए हैं. साल 2011 में जनआंदोलन और अंतरराष्ट्रीय दबाव की वजह से आंग सान सू के नेतृत्व में लोगों द्वारा चुनी हुई सरकार आई लेकिन सत्ता में सेना का वर्चस्व बना रहा. संविधान में सेना के लिए 25 फीसदी सीटें आरक्षित की गई हैं और तीन सबसे अहम मंत्रालयों में नियुक्ति का अधिकार सेना के ही पास है.
लोकतंत्र की लड़ाई को लेकर नोबल पुरस्कार जीतने वाली सू की छवि को पिछले कुछ सालों में काफी नुकसान पहुंचा. आंग सान सू की आलोचना तब सबसे ज्यादा हुई जब उन्होंने रोहिंग्या मुसलमानों के खिलाफ सेना की कार्रवाई का बचाव किया. अमेरिका और अन्य संगठनों ने रोहिंग्याओं के खिलाफ म्यांमार की सेना की कार्रवाई को जनसंहार की संज्ञा दी थी.