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विश्व

Myanmar Coup: आंग सान सू की को जेल में बंद कर तख्तापलट करने वाले कुख्यात सेना प्रमुख की कहानी

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म्यांमार में सत्तारूढ़ पार्टी नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी (एनएलडी) के प्रमुख नेताओं की गिरफ्तारी और तख्तापलट होने के बाद सबकी नजरें सेना प्रमुख सीनियर जनरल मिन आंग लाइंग पर आकर टिक गई हैं. म्यांमार में तख्तापलट के बाद मिन आंग लाइंग के हाथों में ही सत्ता की कमान सौंपी गई है. म्यांमार की सेना ने तख्तापलट करने के कुछ घंटे बाद एक बयान जारी कर बताया कि जनरल मिन आंग लाइंग ही अब विधायिका, प्रशासन और न्यायपालिका की जिम्मेदारी संभालेंगे.
 

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म्यांमार में कितनी ताकतवर है सेना?

म्यांमार की राजनीति में सेना का हमेशा से ही दबदबा रहा है. साल 1962 में तख्तापलट के बाद से सेना ने देश पर करीब 50 सालों तक प्रत्यक्ष रूप से शासन किया है. म्यांमार में लोकतांत्रिक व्यवस्था की मांग तेज होने पर साल 2008 में सेना नया संविधान लाई. इस नए संविधान में लोकतांत्रिक सरकार और विपक्षी दलों के नेता को जगह दी गई लेकिन सेना की स्वायत्तता और वर्चस्व को बनाए रखा गया. नए चार्टर के तहत, सेना प्रमुख को अपने लोगों की नियुक्ति करने और सैन्य मामलों में अंतिम फैसला करने का अधिकार दिया गया था. आसान शब्दों में कहें तो सेना प्रमुख को किसी के प्रति जवाबदेह नहीं बनाया गया था.
 

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म्यांमार की लोकतांत्रिक सरकार किसी कानून को ला सकती है लेकिन इसे लागू कराने की शक्ति सेना प्रमुख के पास ही है. पुलिस, सीमा सुरक्षा बल और प्रशासनिक विभाग सबका नियंत्रण सेना प्रमुख के पास ही रखा गया है. सेना के लिए संसद की एक-चौथाई सीटें आरक्षित हैं और सरकार में रक्षा मंत्री, गृह मंत्री और सीमा मामलों के मंत्री की भी नियुक्ति सेना प्रमुख ही करता है. सेना प्रमुख किसी भी संवैधानिक बदलाव पर वीटो करने का अधिकार रखता है. इसके अलावा, सेना प्रमुख किसी भी चुनी हुई सरकार का तख्तापलट करने की ताकत रखता है. यहां तक कि सेना के पास देश की दो बड़ी कंपनियों का स्वामित्व है. इन कंपनियों का शराब, तंबाकू, ईंधन और लकड़ी समेत कई अहम क्षेत्रों पर एकाधिकार है.

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64 साल के लाइंग ने की है कानून की पढ़ाई

संविधान में दी गई ताकत का ही इस्तेमाल करते हुए म्यांमार की सेना ने सोमवार को आंग सान सू समेत सत्ताधारी पार्टी एनएलडी के तमाम नेताओं की गिरफ्तारी की और तख्तापलट को अंजाम दिया. तख्तापलट को अंजाम देने वाले सेना प्रमुख जनरल मिन आंग लाइंग की उम्र 64 साल है और वह इसी साल जुलाई महीने में रिटायर होने वाले थे. लाइंग ने साल 1972-74 तक यंगून यूनिवर्सिटी में कानून की पढ़ाई की है. जब लाइंग कानून की पढ़ाई कर रहे थे, उस वक्त म्यांमार में राजनीति में सुधार की लड़ाई जोरों पर थी. हालांकि, जनरल लाइंग के एक क्लासमेट ने रॉयटर्स एजेंसी से बातचीत में बताया था कि लाइंग बहुत ज्यादा नहीं बोलते थे और बहुत ही लो प्रोफाइल रहते थे.

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तीसरी कोशिश में डिफेंस एकेडमी में मिला दाखिला

जब साथी छात्र प्रदर्शनों में बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रहे थे तो मिन आंग लाइंग मिलिट्री यूनिवर्सिटी डिफेंस सर्विसेज एकेडमी (डीएसए) में दाखिले के लिए प्रयास कर रहे थे. साल 1974 में तीसरे प्रयास में जाकर लाइंग को एकेडमी में दाखिला मिला. डीएसए एकेडमी में लाइंग के साथ पढ़े एक छात्र ने रॉयटर्स से बताया था कि लाइंग एक औसत दर्जे के कैडेट थे. लाइंग बेहद धीमी गति से लेकिन लगातार तरक्की कर रहे थे. लाइंग के साथी उनके मिडिल रैंक्स से म्यांमार के सेना प्रमुख बनने के सफर पर भी हैरानगी जाहिर करते हैं. 

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मिन आंग लाइंग ने सेना में आने के बाद ज्यादातर समय म्यांमार की पूर्वी सीमा पर विद्रोहियों से लड़ाई में बिताया. ये इलाका म्यांमार के अल्पसंख्यकों के उत्पीड़न के लिए जाना जाता है. साल 2009 में लाइंग को ब्यूरो ऑफ स्पेशल ऑपरेशन्स-2 का कमांडर बनाया गया. इस दौरान मिन आंग लाइंग ने म्यांमार-चीन सीमा पर कोकांग विशेष क्षेत्र में सशस्त्र गुटों के खिलाफ जो ऑपरेशन चलाया, उससे वो सुर्खियों में आ गए. लाइंग ने सिर्फ एक हफ्ते के भीतर इस ऑपरेशन को सफलतापूर्वक अंजाम दिया और सीमाई इलाके से विद्रोहियों को खदेड़ दिया. इस ऑपरेशन के बाद करीब 30,000 लोगों ने चीन में भागकर शरण ली.  

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मिन की टुकड़ी के खिलाफ हत्या, रेप और लूट के आरोप लगने के बावजूद उनकी तरक्की होती रही. अगस्त 2010 में उन्हें जॉइंट चीफ ऑफ स्टाफ बना दिया गया. एक साल के भीतर ही मिन आंग लाइंग 30 मार्च 2011 को सेना प्रमुख बन गए. इस दौरान म्यांमार लोकतंत्र की तरफ कदम आगे बढ़ा रहा था.

 

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यंगून के राजनयिकों का कहना है कि साल 2016 में जब आंग सान सू की का पहला कार्यकाल शुरू हुआ, तब तक आंग लाइंग ने खुद को एक चुप्पी साधे रहने वाले सैनिक से एक राजनेता और एक लोकप्रिय शख्सियत में तब्दील कर लिया था. दुनिया भर के नेताओं को शुरू में उम्मीद बंधी थी कि लाइंग म्यांमार की राजनीति में सेना के दखल को पूरी तरह से खत्म करके देश में पूर्ण लोकतंत्र की स्थापना करेंगे लेकिन ऐसा नहीं हुआ. 

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साल 2015 में आम चुनाव से ठीक पहले बीबीसी को दिए एक इंटरव्यू में मिन आंग लाइंग ने म्यांमार की राजनीति में सेना की सक्रिय भूमिका की वकालत की थी. उन्होंने कहा था, पूरी तरह से लोगों द्वारा चुनी गई सरकार के लिए कोई टाइमलाइन नहीं है. इसमें पांच साल का वक्त भी लग सकता है और 10 सालों का भी. मैं निश्चित तौर पर कुछ नहीं कह सकता हूं. म्यांमार के सेना प्रमुख ने कभी इस बात के संकेत नहीं दिए कि वह संसद में सेना के 25 फीसदी के आरक्षित कोटे को छोड़ देंगे या फिर संविधान के उस अनुच्छेद में कोई बदलाव करेंगे जो सू की को राष्ट्रपति बनने से रोकता है.

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आंग लाइंग ने फरवरी 2016 में अपने कार्यकाल को पांच साल के लिए बढ़ा लिया था. लाइंग ने फेसबुक और सोशल मीडिया अकाउंट के जरिए धीरे-धीरे अपनी लोकप्रियता बढ़ाई. तमाम देशों के प्रतिनिधियों से मिलना हो या फिर बौद्ध मठों का दौरा, लाइंग ने हर चीज का प्रचार किया. लाइंग की फेसबुक प्रोफाइल पर लाखों की संख्या में फॉलोअर्स थे. हालांकि, साल 2017 में रोहिंग्या मुस्लिम अल्पसंख्यकों के खिलाफ कार्रवाई की वजह से उनका अकाउंट बैन कर दिया गया.

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लाइंग रोहिंग्या अल्पसंख्यकों के खिलाफ अपने अभियान की वजह से पूरी दुनिया में कुख्यात हो गए. म्यांमार में साल 2017 में लाइंग के नेतृत्व में हुए सैन्य अभियान की वजह से करीब सात लाख रोहिंग्या मुसलमान पड़ोसी देश बांग्लादेश भागने के लिए मजबूर हुए. संयुक्त राष्ट्र के जांचकर्ताओं ने पाया कि म्यांमार की सेना ने नस्लीय नरसंहार के इरादे से अपना ऑपरेशन किया और सामूहिक हत्याएं और गैंगरेप की घटनाओं की अंजाम दिया. हालांकि, लाइंग ने कहा कि म्यांमार की 'अंतिम समस्या' के उनके समाधान का मूल्यांकन दुनिया ने गलत तरीके से किया.

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अमेरिका ने इसके जवाब में साल 2019 में मिन आंग लाइंग और सेना के तीन अन्य नेताओं पर प्रतिबंध लगा दिए थे. अमेरिका के अलावा, ब्रिटेन ने भी मिन लाइंग पर प्रतिबंध लगाया था. जनरल मिन आंग लाइंग के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय अदालत में  मुकदमा चल रहा है. साल 2019 में ही संयुक्त राष्ट्र के जांचकर्ताओं ने दुनिया भर के नेताओं से म्यांमार की सेना से संबंधित कंपनियों पर आर्थिक प्रतिबंध लगाने की अपील भी की थी.

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