पाकिस्तान की सरकार पीओके के गिलगित-बाल्टिस्तान को अपना पांचवा प्रांत बनाने जा रही है. गिलगित-बाल्टिस्तान को प्रांत का दर्जा देने का फैसला पिछले सप्ताह पाकिस्तान के केंद्रीय मंत्री, विपक्षी नेताओं और सेना के बीच हुई एक बैठक में लिया गया है. पाकिस्तान के इस कदम से भारत-पाकिस्तान के बीच तनाव बढ़ने की पूरी आशंका है. कुछ विश्लेषकों का ये भी कहना है कि पाकिस्तान के इस कदम के पीछे चीन का हाथ हो सकता है.
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने पिछले साल अक्टूबर महीने में बीजिंग का दौरा किया था और उसके बाद से चीन ने उसकी तरफ से संयुक्त राष्ट्र में कश्मीर का मुद्दा उठाने की कई कोशिशें कीं. मई महीने में चीन और भारत की सेना के बीच लद्दाख में हिंसक झड़प भी हुई जिसमें 40 भारतीय जवान शहीद हो गए.
लद्दाख गिलगित-बाल्टिस्तान से सटा हुआ है और सियाचिन ग्लेशियर ही दोनों को अलग करता है. दुनिया की 20 सबसे ऊंची चोटियां इसी इलाके में हैं. यहां पर हिमालय, कराकोरम और हिंदूकुश की पर्वत श्रृंखलाएं मिलती हैं. ये इलाका रणनीतिक रूप से भी काफी अहमियत रखता है.
भारत के सीडीएस बिपिन रावत कई मौकों पर दो मोर्चे की लड़ाई की बात कह चुके हैं, हालांकि, विश्लेषकों का कहना है कि अगर पाकिस्तान गिलगित-बाल्टिस्तान को पांचवां प्रांत बना लेता है तो भारत को काफी ऊंचाई पर दो मोर्चे की जंग लड़नी पड़ सकती है.
चीन के लिए गिलगित-बाल्टिस्तान रणनीतिक रूप से काफी अहम है. 1962 के युद्ध के बाद चीन ने पाकिस्तान के साथ सीमा समझौता किया और इसके बाद दोनों देशों की घनिष्ठता और बढ़ गई. गिलगित-बाल्टिस्तान चीन के स्वायत्त क्षेत्र शिनजियांग की सीमा से सटा हुआ है और अरब सागर तक पहुंच के लिए चीन का एकमात्र भूमिगत मार्ग है. साल 1978 में चीन ने गिलगित-बाल्टिस्तान को जोड़ने के लिए कराकोरम हाईवे बनाया और इसके जरिए ही तेल समृद्ध खाड़ी के मुहाने तक पहुंचा.
साल 2015 में चीन की सरकारी कंपनियों ने पाकिस्तान के आर्थिक ढांचे में करीब 30 अरब डॉलर का निवेश किया है. चाइना-पाकिस्तान इकनॉमिक कॉरिडोर (सीपीईसी) को पांच साल पहले ल़ॉन्च किया गया था जो बेल्ट ऐंड रोड की सबसे बड़ी परियोजना है. इसकी कई योजनाएं गिलतिगत-बाल्टिस्तान में भी प्रस्तावित हैं. हालांकि, भारत ने गिलगित-बाल्टिस्तान में सीपीईसी प्रोजेक्ट का विरोध किया है. भारत ने कई बार दोहराया है कि गिलगित-बाल्टिस्तान भारत का हिस्सा है और पाकिस्तान-चीन यहां कोई परियोजनाएं शुरू नहीं कर सकते हैं.
विल्सन सेंटर में दक्षिण एशिया मामलों के सीनियर एसोसिएट माइकल कुगलमैन कहते हैं, मोदी प्रशासन पाकिस्तान के गिलगित-बाल्टिस्तान में इस कदम को कश्मीर में अनुच्छेद 370 के बदले से कहीं ज्यादा बड़े परिदृश्य में देखेगा. मोदी सरकार ने गिलगित-बाल्टिस्तान को लेकर लगातार मजबूत दावा पेश किया है. मुझे नहीं लगता है कि भारत सरकार इसे सिर्फ जम्मू-कश्मीर में अपने फैसले पर पलटवार मानेगी. भारत इसे सीधे तौर पर, उकसावे वाली कार्रवाई के तौर पर ही देखेगा.
किंग्स कॉलेज लंदन में इंटरनेशनल रिलेशन्स के प्रोफेसर हर्ष वी पंत ने एक लेख में कहा है, गिलगित-बाल्टिस्तान में अपने कब्जे को कानूनी रूप देकर पाकिस्तान ना केवल सीपीईसी में चीनी निवेशकों के रास्ते की बाधाएं हटा रहा है बल्कि चीन को रणनीतिक इलाके तक पहुंच भी दे रहा है.
पंत ने कहा, इससे भारत के लिए दो मोर्चे की लड़ाई की आशंका और प्रबल हो गई है. भारत निश्चित तौर पर यही मानकर चलेगा कि ये सब कुछ चीन के इशारे पर किया जा रहा है और पाकिस्तान के पास चीन-भारत तनाव में बलि का बकरा बनने के अलावा कोई विकल्प नहीं है
कुगैलमैन ने कहा, भारत और अमेरिका दोनों के लिए ये समझना ज्यादा मुश्किल नहीं है कि गिलगित-बाल्टिस्तान में पाकिस्तान के कदम के पीछे चीन का ही हाथ है. भारत और चीन के बीच तनावपूर्ण संबंधों की वजह से पाकिस्तान और चीन को भारत और उसके हितों को सामूहिक रूप से नुकसान पहुंचाने का मौका मिल गया है. चीन के पास भारत को कड़ा संदेश देने का इससे बढ़िया तरीका क्या हो सकता है कि गिलगित-बाल्टिस्तान को पाकिस्तान का प्रांत बनाकर भारत के दावे को कमजोर कर दिया जाए जो सीपीईसी के लिए भी काफी अहम इलाका है.
पाकिस्तान खुद पिछले 20 सालों से गिलगित-बाल्टिस्तान को प्रांत बनाना चाह रहा है. हालांकि, चीन की मदद से अब उसे ऐसा फैसला लेने में आसानी हो गई है. कुगैलमैन कहते हैं, पाकिस्तान को तो इस कदम के लिए चीन के उकसावे की जरूरत ही नहीं है क्योंकि पाकिस्तान की लंबे समय से ऐसी इच्छा रही है. हालांकि, पहले पाकिस्तान की सेना अनिच्छुक थी लेकिन अब सीपीईसी की बागडोर भी सेना के हाथों में है और भारत ने भी पिछले साल जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटा दिया जिसके बाद शायद पाकिस्तानी सेना ने अपना मन बदल लिया.
पाकिस्तान के गिलगित-बाल्टिस्तान को प्रांत में तब्दील करने की योजना के तहत, इसके 15 लाख लोगों को पाकिस्तान के संविधान के तहत पहली बार मूल अधिकार दिए जाएंगे जिसमें सुप्रीम कोर्ट में अपील करना भी शामिल है. गिलगित-बाल्टिस्तान का प्रतिनिधित्व सीधे पाकिस्तान की नेशनल एसेंबली के चुने हुए सदस्य करेंगे. कुल मिलाकर, इस इलाके पर पाकिस्तान का सीधा नियंत्रण हो जाएगा. 16 सितंबर को हुई बैठक में सभी पार्टियों के प्रतिनिधियों और पाकिस्तानी सेना ने हिस्सा लिया और इस फैसले का समर्थन किया. हालांकि, विपक्ष ने मांग की कि संविधान में बदलाव की प्रक्रिया गिलगित-बाल्टिस्तान में चुनाव के बाद हो ताकि इमरान खान की पार्टी इसका चुनावी फायदा ना उठा सके.