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विश्व

सऊदी ने पाकिस्तान से कहा- या तो हमें चुनो या मलेशिया को

सऊदी ने पाकिस्तान से कहा- या तो हमें चुनो या मलेशिया को
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सऊदी अरब के विरोध के बाद पाकिस्तान अपने दोस्त मलेशिया के नेतृत्व में होने वाली शिखर वार्ता से दूरी बना सकता है. पाकिस्तान की सूचना एवं प्रसारण मंत्री डॉ. फिरदौस आशिक अवान ने सोमवार को कहा कि प्रधानमंत्री इमरान खान के बहरीन और स्विटजरलैंड के दौरे से लौटने के बाद कुआलाम्पुर समिट पर फैसला किया जाएगा.
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पिछले कुछ दिनों से पाकिस्तान, मलेशिया और तुर्की की दोस्ती सुर्खियों में रही है, चाहे वह कश्मीर मुद्दे पर समर्थन हो या फिर संयुक्त राष्ट्र महासभा के मंच से मुस्लिम दुनिया के नए नेतृत्व की तरफ इशारा.
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18 दिसंबर को हो रही इस समिट में 52 देशों के 400 से ज्यादा मुस्लिम नेता, बुद्धिजीवी और स्कॉलर्स हिस्सा लेंगे. इसके बाद 19 दिसंबर को तमाम देशों के नेता मुस्लिम दुनिया की समस्याओं को सुलझाने के लिए एक मुलाकात करेंगे.
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समिट में पीएम इमरान खान के शामिल होने पर बने संशय पर डॉ. अवान ने कहा, देश की प्राथमिकताएं देश के हितों से जुड़ी हैं. पीएम इमरान खान इस मामले पर फैसला लेने से पहले सभी पक्षकारों से बातचीत करेंगे. सरकार के भीतर भी इसे लेकर चर्चा चल रही है.
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पाकिस्तानी मीडिया की रिपोर्ट्स के मुताबिक, इमरान खान की सरकार के भीतर मलेशिया के आयोजन में हो रहे कुआलाम्पुर समिट में भागेदारी को लेकर पुनर्विचार चल रहा है. इसकी सबसे बड़ी वजह सऊदी अरब है जो पाकिस्तान की मलेशिया-तुर्की के साथ इस्लामिक गठजोड़ की कोशिश से खफा है.
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हालांकि, समिट पर फैसले लेने में ये हिचकिचाहट थोड़ा हैरान करने वाली है. पाकिस्तानी पीएम इमरान खान ने 29 नवंबर को खुद इस बात की पुष्टि की थी कि वह समिट में हिस्सा लेंगे. यह भी कहा जा रहा था कि इमरान खान ने ही न्यू यॉर्क में यूएन की महासभा के बैठक के दौरान मलेशिया, तुर्की के साथ मिलकर समिट की रूपरेखा तैयार की थी.
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मलेशिया के प्रधानमंत्री महातिर बिन मोहम्मद और तुर्की राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप एर्दोगान के साथ मुस्लिम दुनिया की समस्याएं और इस्लामोफोबिया को लेकर चर्चा की थी तो उस दौरान भी इस तिकड़ी को लेकर सऊदी अरब की नाराजगी की खबरें आई थीं.
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सूत्रों का कहना है कि समिट में हिस्सेदारी को लेकर विचार की जरूरत इसलिए पड़ रही है क्योंकि सऊदी अरब ने इसे लेकर अपनी आपत्ति दर्ज कराई है. इमरान खान ने शनिवार को रियाद की यात्रा की थी और इसी दौरान उन्होंने सऊदी क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान (एमबीएस) को आश्वस्त किया कि सऊदी के हितों के खिलाफ वह किसी भी बैठक में हिस्सा नहीं लेंगे.
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पाकिस्तान सऊदी की नाराजगी मोल नहीं लेना चाहता है क्योंकि उसने सऊदी से भारी-भरकम कर्ज ले रखा है. रियाद ने पीटीआई सरकार के आने के बाद 6 अरब डॉलर की वित्तीय मदद पहुंचाई. सऊदी में 27 लाख पाकिस्तानी भी रहते हैं जो कमाई का अहम हिस्सा अपने देश भेजते हैं.
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सऊदी अरब और उसके सहयोगियों के बीच समिट को लेकर विवाद इसलिए भी है क्योंकि इसे सऊदी नीत इस्लामिक सहयोग संगठन के विकल्प के तौर पर भी देखा जा रहा है. वहीं, तुर्की और मलेशिया के साथ सऊदी अरब के संबंध बहुत मधुर नहीं हैं.
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हालांकि, बैठक में शामिल होने को लेकर फैसले में बदलाव करना इमरान खान के लिए इतना आसान नहीं होगा क्योंकि मलेशिया और तुर्की कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान का मजबूती से समर्थन कर रहे हैं. यहीं नहीं, चीन के अलावा तुर्की पाकिस्तान की एनएसजी की सदस्यता का मजबूती से समर्थन करता रहा है.
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