इजरायल के नए प्रधानमंत्री नेफ्टाली बेनेट को भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बधाई दी है. प्रधानमंत्री मोदी ने ट्वीट कर नेफ्टाली बेनेट को दिए बधाई संदेश में लिखा है, ''नेफ्टाली बेनेट को इजरायल का प्रधानमंत्री बनने के लिए बधाई. अगले साल भारत और इजरायल के राजनयिक संबंध कायम होने के 30 साल होने जा रहे हैं. मैं आपसे जल्द ही मिलने की कामना करता हूं और साथ ही दोनों देशों की रणनीतिक साझेदारी में और गहराई आने की उम्मीद है.''
כבוד ראש הממשלה,
— Narendra Modi (@narendramodi) June 14, 2021
ברכותי לכבוד קבלת תפקידך החדש כראש ממשלת ישראל. לקראת ציון 30 שנה לשדרוג היחסים הדיפלומטים בשנה הבאה, אני מצפה להיפגש איתך ולהעמקת היחסים האסטרטגיים
בין המדינות שלנו.@naftalibennett @IsraeliPM
प्रधानमंत्री मोदी के आधिकारिक ट्विटर अकाउंट से ये ट्वीट अंग्रेजी और हिब्रू दोनों भाषा में किए गए हैं. हिब्रू इजरायल की भाषा है. नेफ्टाली को बधाई देने के साथ ही पीएम मोदी ने सत्ता से बेदखल होने के बाद बेंजामिन नेतन्याहू को भी शुक्रिया कहा है.
As you complete your successful tenure as the Prime Minister of the State of Israel, I convey my profound gratitude for your leadership and personal attention to India-Israel strategic partnership @netanyahu.
— Narendra Modi (@narendramodi) June 14, 2021
नेतन्याहू के सम्मान में पीएम मोदी ने लिखा है, ''आपके कार्यकाल और नेतृत्व में भारत-इजरायल के रणनीतिक संबंध काफी मजबूत हुए हैं और मैं इसके लिए आभार व्यक्त करता हूं.''
बेंजामिन नेतन्याहू के शासनकाल में भारत और इजरायल के रिश्ते और मजबूत हुए थे. 2014 में जब नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बीजेपी की सरकार बनी तो इजरायल को लेकर भारत में अलग किस्म का उत्साह दिखा. 2017 में इजरायल का दौरा करने वाले नरेंद्र मोदी भारत के पहले प्रधानमंत्री बने. इसके बाद जनवरी 2018 इजरायली पीएम नेतन्याहू भी भारत के दौरे पर आए. दोनों नेताओं के दौरे में कई अहम द्विपक्षीय समझौते हुए. नेतन्याहू के आने से पहले 2003 में इजरायली पीएम एरियल शरोन भारत आए थे. शरोन भी जब भारत के दौरे पर आए तो अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में बीजेपी की ही सरकार थी.
1992 में पीवी नरसिम्हा राव की सरकार ने इजरायल के साथ भारत के राजनयिक रिश्ते कायम किए थे. उसके बाद से दोनों देशों में कई मोर्चों पर करीबी बढ़ती गई लेकिन किसी भारतीय प्रधानमंत्री ने इजरायल जाने का जोखिम नहीं उठाया था. पीएम मोदी के इजरायल दौरे से पहले एक धारणा यह थी कि अगर कोई भारतीय प्रधानमंत्री इजरायल के दौरे पर जाएगा तो अरब के इस्लामिक देशों में इसका गलत संदेश जाएगा. हालांकि, पीएम मोदी ने इसकी परवाह नहीं की और उन्होंने इजरायल का दौरा किया.
2017 से पहले भारत सरकार का कोई भी मंत्री इजरायल जाता था तो फिलीस्तीन जाने की भी रस्मअदायगी करता था लेकिन पीएम मोदी ने अपने दौरे में इस परंपरा को भी तोड़ दिया था. हालांकि, साल 2018 में वे फिलीस्तीन भी गए थे.
नेतन्याहू और मोदी एक दूसरे को दोस्त कहते रहे हैं. कहा जाता है कि दोनों नेताओं के बीच निजी तौर पर अच्छे संबंध हैं. इसकी एक वजह वैचारिक भी बताई जाती है. नेतन्याहू की लिकुड पार्टी यहूदी राष्ट्रवाद की बात करती है और पीएम मोदी की बीजेपी हिन्दू राष्ट्रवाद की.
नेफ्टाली बेनेट को नेतन्याहू से भी ज्यादा दक्षिणपंथी और आक्रामक यहूदी राष्ट्रवादी माना जाता है. इससे पहले नेफ्टाली इजरायल के रक्षा और शिक्षा मंत्री रह चुके हैं. इन दोनों भूमिका से पहले नेफ्टाली सेना में कमांडर और सफल कारोबारी रहे हैं. नेफ्टाली के आने के बाद भारत और इजरायल के संबंध किस करवट बैठते हैं, ये अभी देखना होगा.
नेफ्टाली फिलीस्तीन को लेकर जो सोच रखते हैं, उससे मोदी सरकार सहमत नहीं होगी. भारत का अब भी वही पुराना रुख है कि इजरायल फिलीस्तीन समस्या का समाधान दो राष्ट्र में है. यानी कि फिलीस्तीन भी एक स्वतंत्र और संप्रभु राष्ट्र बने. दूसरी तरफ नेफ्टाली इसे खारिज करते हैं. नेफ्टाली का कहना है कि इजरायल से लगा कोई और नया देश नहीं बन सकता है.
भारत पूर्वी यरुशलम और वेस्ट बैंक को लेकर भी नेफ्टाली की सरकार से अलग राय रखता है जबकि नेफ्टाली इसे इजरायल का हिस्सा मानते हैं और आक्रामक रूप से इन इलाकों में यहूदी बस्तियां बसाने का समर्थन करते हैं. इसके बावजूद कहा जा रहा है कि दोनों देश इन विवादों को किनारे रख द्विपक्षीय संबंधों को मजबूती से आगे बढ़ाते रहेंगे.
लेकिन कई विशेषज्ञों का मानना है कि इजरायल में चाहे जो भी सरकार आए, वो भारत से अच्छा संबंध ही चाहेगी क्योंकि भारत रूस के बाद सबसे ज्यादा सैन्य उपकरणों का आयात वहीं से करता है. इजरायल के लिए भारत एक बड़ा बाजार तो ही है, साथ ही दक्षिण एशिया में भारत जैसा कोई भरोसेमंद और ताकतवर साझेदार भी नहीं है.
भारत के लिए भी इजरायल अब कोई वर्जित देश नहीं रहा है. पिछले साल जब अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप थे तब तीन इस्लामिक देश- यूएई, मोरक्को और सूडान ने इजरायल से रिश्ते सामान्य करने की घोषणा की थी. ऐसे में भारत के लिए इजरायल से परहेज करने का अब कोई बड़ा कारण नहीं है. यहां तक कि सऊदी अरब ने इजरायल से राजनयिक संबंध कायम किए बगैर कई स्तरों पर करीबी बढ़ाई है. सऊदी अरब ने इजरायल के लिए अपने हवाई क्षेत्र के इस्तेमाल पर रोक हटा दी है.
बेंजामिन नेतन्याहू पिछले 12 सालों से इजरायल के प्रधानमंत्री थे लेकिन रविवार को संसद में बहुमत साबित नहीं कर पाने के कारण उन्हें पीएम की कुर्सी छोड़नी पड़ी. इजरायल में अब नेफ्टाली बेनेट के नेतृत्व में नई गठबंधन सरकार बनी है. हालांकि, 120 सदस्यों वाली इजरायली संसद नेसेट में नेफ्टाली बेनेट की यामिना पार्टी के महज सात सांसद हैं. केवल सात सांसदों के दम पर नेफ्टाली पीएम बन रहे हैं. इस गठबंधन में येर लेपिड की पार्टी येश एटिड 17 सांसदों के साथ सबसे बड़ी पार्टी है. 2019 के बाद से इजरायल में चार बार चुनाव हो चुके हैं लेकिन किसी भी पार्टी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला है. नेफ्टाली और येर लेपिड दोनों आधे-आधे कार्यकाल तक प्रधानमंत्री रहेंगे. इसी समझौते के तहत नेफ्टाली को पीएम की कुर्सी पहले मिली है.
हालांकि, कई विशेषज्ञों का मानना है कि नेफ्टाली की सरकार बहुत दिनों तक नहीं टिक पाएगी. नेफ्टाली घोर यहूदी दक्षिणपंथी हैं जबकि येर लेपिड मध्यमार्गी हैं. इसके साथ ही इस गठबंधन सरकार में मंसूर अब्बास की अरब पार्टी रा'म भी शामिल है. मंसूर अब्बास के चार सांसद हैं. यह एक ऐसी गठबंधन सरकार है, जिसमें सबकी सोच अलग-अलग दिशा में है और समन्वय को लेकर संदेह किया जा रहा है. नेतन्याहू ने भी सत्ता से हटने के बाद कहा है कि ये सरकार नहीं टिकेगी और वे जल्दी ही सत्ता में वापसी करेंगे. नेतन्याहू की लिकुड पार्टी के कुल 30 सांसद हैं. यानी संसद में सबसे बड़ी पार्टी लिकुड पार्टी ही है.
नेतन्याहू फिर से सत्ता में लौटेंगे, ये कहना अभी मुश्किल है. नेफ्टाली के नेतृत्व वाली नई गठबंधन सरकार संसद से एक कानून लाने पर विचार कर रही है जिसके तहत कोई भी व्यक्ति दो कार्यकाल यानी आठ साल से ज्यादा पीएम नहीं बन सकता है. यही नियम अमेरिका में भी है. इसका मतलब यह हुआ कि अगर कानून बना तो नेतन्याहू के लिए पीएम बनना मुश्किल होगा क्योंकि वे 12 सालों तक पीएम रह चुके हैं.