सऊदी अरब कश्मीर मुद्दे पर मुस्लिम देशों के सबसे बड़े संगठन इस्लामिक सहयोग संगठन (OIC) के सदस्यों की बैठक बुलाने जा रहा है. पाकिस्तानी मीडिया रिपोर्ट्स में कूटनीतिक सूत्रों के हवाले से दावा किया गया है कि सऊदी अरब कश्मीर मुद्दे पर चर्चा के लिए ओआईसी देशों के विदेश मंत्रियों की एक बैठक बुला सकता है. हालांकि, इंडिया टुडे को सूत्रों से जानकारी मिली है कि इस बैठक में सिर्फ सदस्य देशों के सांसद ही हिस्सा लेंगे, विदेश मंत्री इस बैठक का हिस्सा नहीं होंगे.
अखबार डॉन की रिपोर्ट के मुताबिक, पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी के साथ मुलाकात के दौरान सऊदी विदेश मंत्री प्रिंस फैसल बिन फरहान अल सउद ने कश्मीर मुद्दे पर चर्चा कराने का आश्वासन दिया है.
प्रिंस फैसल ने गुरुवार को पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान के साथ भी मुलाकात की. इस बैठक में पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी, विदेश सचिव सोहेल महमूद, आईएसआई डायरेक्टर जनरल लेफ्टिनेंट फैज हमीद व अन्य वरिष्ठ अधिकारी भी शामिल हुए. सऊदी के विदेश मंत्री ने मुलाकात के बाद पाकिस्तान के साथ रिश्तों को रणनीतिक और भाईचारे वाला बताया.
विदेश मंत्रालय ने बयान में कहा, सऊदी और पाक के विदेश मंत्रियों ने कश्मीर के मुद्दे पर ओआईसी की भूमिका को लेकर गहन चर्चा की. विदेश मंत्री कुरैशी ने सऊदी के विदेश मंत्री सउद से नागरिकता कानून और एनआरसी को लेकर भी बातचीत की.
सऊदी के विदेश मंत्री ने इस बात को दोहराया कि पाकिस्तान के अहम हितों से
जुड़े मुद्दों पर सऊदी समर्थन करेगा और पाकिस्तान के साथ हर क्षेत्र में
साझेदारी को मजबूत करेगा.
सऊदी के प्रिंस फैसल कुआलालंपुर समिट में शामिल नहीं होने के लिए पाकिस्तान का आभार जताने के लिए एकदिवसीय दौरे पर पहुंचे थे. बता दें कि कुछ दिनों पहले ही मुस्लिम देशों की अगुवाई को लेकर सऊदी अरब और मलेशिया-तुर्की-पाकिस्तान के बीच खींचतान देखने को मिली थी.
मलेशिया के कुआलालंपुर में मुस्लिमों की समस्याओं पर चर्चा को लेकर एक समिट
का आयोजन किया गया था जिसमें पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान भी शरीक
होने वाले थे. हालांकि, सऊदी ने इसका विरोध किया और पाकिस्तान के पीएम
इमरान खान को इस समिट में जाने से रोक दिया.
पाकिस्तान के लिए मलेशिया समिट में हिस्सा नहीं लेना एक बड़ी कूटनीतिक असफलता थी. रिपोर्ट्स के मुताबिक, मलेशिया और तुर्की के साथ मिलकर पाकिस्तान के पीएम इमरान खान ने खुद ही इस समिट की रूपरेखा तैयार की थी ताकि दुनिया भर के मुस्लिमों की समस्याओं को उठाया जा सके. हालांकि, सऊदी ने इस समिट को अपनी अगुवाई वाले इस्लामिक सहयोग संगठन के विकल्प बनाने की कोशिश के तौर पर देखा और आमंत्रण मिलने के बावजूद इसमें हिस्सा नहीं लिया.
मलेशिया की मेजबानी वाले कुआलालंपुर समिट को पाकिस्तान में मजबूत समर्थन मिला था क्योंकि पिछले कुछ सालों में सऊदी अरब के भारत से संबंध मजबूत हुए हैं. सऊदी अरब व यूएई ने कश्मीर मुद्दे पर भारत का समर्थन किया था जबकि मलेशिया और तुर्की मजबूती से पाकिस्तान के साथ खड़े नजर आए थे.
सऊदी अरब और यूएई के साथ भारत के आर्थिक संबंध काफी मजबूत हैं. सऊदी की सरकारी तेल कंपनी अरामको ने हाल ही में भारत में अरबों डॉलर के निवेश का ऐलान किया था.
कश्मीर मुद्दे पर सऊदी समेत कई मुस्लिम देशों से कूटनीतिक समर्थन नहीं मिलने पर पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने कहा था कि हम कितना ही इस्लाम की बात कर लें लेकिन इन देशों के भारत से आर्थिक हित जुड़े हुए हैं इसलिए भारत के लिए समर्थन जुटाना आसान नहीं है.
विश्लेषकों का कहना है कि पाकिस्तान में अपना प्रभाव कम होने के डर से सऊदी ने अपने विदेश मंत्री को इस्लामाबाद के दौरे पर भेजा है. ये भी गौर करने वाली बात है कि कुछ ही दिनों पहले सऊदी की अगुवाई वाले इस्लामिक सहयोग संगठन (ओआईसी) ने भी नागरिकता कानून को लेकर बयान जारी किया था. ओआईसी ने भारत को आगाह किया था कि नागरिकता कानून और बाबरी मस्जिद जैसी घटनाओं से क्षेत्रीय स्थिरता को खतरा पैदा हो सकता है.