चीन अब दुनिया में मौजूद अपने दुश्मन देशों को 'अंधा और बहरा' करना चाहता है. इसके लिए वह अंतरिक्ष से हमला करेगा. वह अपने रोबोट्स, सैटेलाइट जैमर और किलर मिसाइलों के जरिए दुश्मन देशों की संचार प्रणाली को ठप करने की तैयारी कर रहा है. ये खुलासा किया है अमेरिकी सरकार ने. अमेरिका ने इस बाबत 200 पेज की एक रिपोर्ट US कांग्रेस में जमा की है.
इस रिपोर्ट के मुताबिक चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) ऐसी तकनीक विकसित करने में लगी है, जिससे दुश्मन देश किसी भी तरह का हमला या संचार न कर सके. चीन काइनेटिक किल मिसाइल, ग्राउंड बेस्ड लेजर और स्पेस रोबोट्स बना रहा है. इनकी वजह से वह अंतरिक्ष में दुश्मन के सैटेलाइट्स मार गिरा सकता है. या फिर उनकी निगरानी कर सकता है.
चीन सैटेलाइट जैमर जैसी टेक्नोलॉजी विकसित करने में लगा है. ऐसे साइबर और इलेक्ट्रॉनिक वॉरफेयर तैयार करने में लगा है. वहीं, भारत की बात करें तो इन मामलों में भारत की तकनीक और सुविधाएं बेहद कम हैं. वह चीन से इस मामले में काफी ज्यादा पीछे चल रहा है. इसरो और डीआरडीओ दोनों ही इन मामलों में अपनी ताकत बढ़ाने में लगे हैं.
साल 2018 के अंत तक चीन ने निगरानी और जासूसी के लिए 120 सैटेलाइट्स स्पेस में छोड़े. इनमें से आधे सेना के हैं. ये नागरिक, व्यावसायिक और रक्षा से संबंधित डेटा जुटाने में मदद करते हैं. साथ ही दुश्मनों की निगरानी करने में भी चीन सरकार की मदद करते हैं. जबकि, भारत के पास चीन की तुलना में सिर्फ 10 फीसदी जासूसी और रिमोट सेंसिंग सैटेलाइट्स हैं.
फिलहाल, भारत के पास कार्टोसैट-3 के अलावा 19 ऐसे सैटेलाइट्स हैं जो जासूसी और रिमोट सेंसिंग में काम आते हैं. ये सैटेलाइट्स धरती के ऊपर अपना काम कर रहे हैं. पिछले साल भारत ने अपनी एंटी-सैटेलाइट मिसाइल का सफल परीक्षण किया था. जबकि, चीन यह परीक्षण साल 2007 में ही कर चुका है.
एक अंग्रेजी अखबार को दिए गए इंटरव्यू में इसरो चीफ के. सिवन ने बताया था कि मिलिट्री संबंधी सैटेलाइट्स या रॉकेट या फिर कोई अन्य टेक्नोलॉजी डिपार्टमेंट ऑफ स्पेस के तहत नहीं आता. देश में रक्षा संबंधी सभी जरूरतें इसरो की तरफ से पूरी की जाती हैं. लेकिन सबसे पहले नागरिक सेवाओं का ध्यान रखा जाता है.
सिवन ने कहा कि जब भी देश की रक्षा से संबंधित कोई काम आएगा, इसरो सबसे पहले उसे पूरा करके देगा. अब तो हमारे पास निजी कंपनियां भी आने को तैयार हैं, ये कंपनियां इसरो के साथ मिलकर देश की सुरक्षा, संचार और संपन्नता में मदद करेंगी. हम डीआरडीओ के साथ मिलकर मिसाइल तो बनाते ही हैं.
चीन अपने अंतरिक्ष कार्यक्रमों पर भारत से सात गुना ज्यादा पैसा खर्च करता है. चीन ने साल 2019-20 का अंतरिक्ष कार्यक्रमों का बजट कुल मिलाकर 80,633 करोड़ रुपये रखा है. जबकि, भारत के स्पेस प्रोग्राम्स का कुल बजट 10,995 करोड़ रुपये है. इस राशि और निवेश से ही स्पेस प्रोग्राम्स के भविष्य का पता चल जाता है.
चीन की PLA जिसके हाथ में ही उसका अंतरिक्ष कार्यक्रम है. वह उसे लगातार अत्याधुनिक कर रही है. वह जासूसी, निगरानी, नेविगेशन और संचार को तेजी से मजबूत कर रही है. पीएलए की स्ट्रैटेजिक सपोर्ट फोर्स लगातार साइबर, स्पेस और साइकोलॉजिकल युद्ध की क्षमताओं को विकसित करने में लगी है. इसके लिए ये कई बार अंतरराष्ट्रीय नियमों का उल्लंघन भी कर देते हैं. (सभी फोटोः गेटी)