रूस के प्रधानमंत्री दिमित्री मेदवेदेव और उनकी सरकार के सभी मंत्रियों ने बुधवार को एक साथ इस्तीफा देकर हर किसी को चौंका दिया. इस बड़े उलटफेर वाले घटनाक्रम ने एक सवाल खड़ा कर दिया है कि आखिर रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के दिमाग में क्या चल रहा है और क्या वह रूस की राजनीति में कोई बड़ा उलटफेर करना चाह रहे हैं.
अपनी फिटनेस के लिए मशहूर 67 वर्षीय रूसी राष्ट्रपति राजनीति में भी खुद को प्रासंगिक बनाए रखने की पूरी कोशिश कर रहे हैं. इस्तीफों की खबर से कुछ घंटे पहले ही पुतिन ने संविधान को बदलने की योजना का ऐलान किया था.
पुतिन के ये प्रस्ताव लागू होने पर प्रधानमंत्री और संसद की ताकत में इजाफा
होगा जबकि राष्ट्रपति शक्तिविहीन हो जाएगा. यानी अगर संवैधानिक मजबूरी के तहत पुतिन 2024 में
इस्तीफा देते हैं तो उनके उत्तराधिकारी के पास वो शक्तियां नहीं रह
जाएंगी, जो वर्तमान में उनके पास हैं.
रूसी एजेंसी तास के मुताबिक, मेदेवदेव ने कहा है कि इन प्रस्तावों को
अपनाने के बाद ना केवल संविधान के अनुच्छेदों में परिवर्तन होगा बल्कि
कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका के बीच शक्तियों का बंटवारा भी नए
सिरे से होगा.
एक बात तो तय है कि पुतिन भावी राष्ट्रपति की ताकत को घटा देना चाहते हैं लेकिन वह उसी पद की ताकत को क्यों कम करना चाहते हैं जिस पर वह खुद आसीन हैं? इसका जवाब है कि वह इस पद पर ज्यादा लंबे समय तक नहीं रह पाएंगे.
रूस के संविधान के मुताबिक, कोई भी शख्स लगातार दो बार ही राष्ट्रपति बन
सकता है. जब 2008 में पुतिन इस समयसीमा को पार कर चुके थे तो उन्होंने बड़ी
आसानी से मेदेवदेव के साथ पदों की अदला-बदली कर ली. 2008-12 के बीच पुतिन रूस
के प्रधानमंत्री बने रहे. उसके बाद वह फिर से 6 साल के लिए राष्ट्रपति
बनकर आए और 2018 में दोबारा राष्ट्रपति पद का चुनाव जीता. मुश्किल ये है कि दो कार्यकाल पूरा होने के बाद 2024 में उन्हें फिर से अपना पद छोड़ने के लिए मजबूर होना
पड़ेगा.
बुधवार को केंद्रीय एसेंबली को संबोधित करते हुए पुतिन ने कहा कि वह इस बात से सहमत हैं कि किसी को भी लगातार दो कार्यकाल से ज्यादा राष्ट्रपति पद नहीं संभालना चाहिए और इसके बाद उन्होंने संविधान में बदलावों का प्रस्ताव रख दिया. पुतिन का सबसे प्रमुख प्रस्ताव है कि प्रधानमंत्री और कैबिनेट के चुनाव की शक्ति राष्ट्रपति से छीनकर संसद को दे दी जाए.
पुतिन ने कहा कि मुझे लगता है कि हमारे समाज में संविधान के इस प्रस्ताव को लेकर चर्चा हो रही है कि एक ही व्यक्ति को लगातार दो बार से ज्यादा राष्ट्रपति नहीं होना चाहिए. पुतिन ने कहा कि मुझे नहीं लगता है कि ये मूल मुद्दा है हालांकि फिर भी मैं इससे सहमत हूं.
पुतिन ने कहा, 'मैं ये प्रस्ताव देता हूं कि रूस की संसद पर भरोसा करते हुए उसे प्रधानमंत्री के उम्मीदवार को मंजूरी देने की शक्ति दी जाए और फिर प्रधानमंत्री के प्रस्ताव के मुताबिक उप-प्रधानमंत्रियों और केंद्रीय मंत्रियों की नियुक्ति की जाए. ऐसी स्थिति में राष्ट्रपति (प्रधानमंत्री और मंत्रियों की) नियुक्तियां करने के लिए बाध्य होगा और उसे संसद से स्वीकृत उम्मीदवारों को खारिज करने का अधिकार नहीं होगा.
अगर पुतिन राष्ट्रपति पद की समयसीमा को खत्म नहीं करते हैं तो संभवत: वह फिर से रूस के प्रधानमंत्री बन सकते हैं. इसी योजना के तहत वह पहले से ही भावी राष्ट्रपति की शक्तियां घटाकर प्रधानमंत्री के पद को ज्यादा ताकतवर बनाने की जमीन तैयार कर रहे हैं.
पुतिन की 2024 की समस्या का एक अन्य समाधान रूस और बेलारूस के विलय से हो सकता था क्योंकि तब पुतिन एक नए देश के राष्ट्रपति के तौर पर समयसीमा में उलटफेर कर सकते थे. लेकिन बेलारूस के साथ विलय को लेकर बातचीत आगे नहीं बढ़ सकी.
पुतिन की असली समस्या ये है कि अब वह पहले की तरह लोकप्रिय नहीं रह गए हैं. उनकी लोकप्रियता में कमी के लिए रूस की धीमी आर्थिक वृद्धि भी जिम्मेदार है. क्रीमिया पर कब्जे के बाद रूस को तमाम प्रतिबंधों का सामना करना पड़ा जिससे रूस की अर्थव्यवस्था कमजोर हो गई. पुतिन का नया ऐलान ना केवल 2024 की समस्या का समाधान करता है बल्कि इसके जरिए पुतिन सरकार के भीतर और बाहर भी कई तरह के बदलाव कर सकेंगे.
दूसरी तरफ, ओपिनियन पोल्स ने भी पुतिन की चिंता बढ़ाई है. पोल के नतीजों में पुतिन की सरकार के खिलाफ लोगों में असंतोष बढ़ता दिख रहा है. विश्लेषकों का कहना है कि पुतिन नए प्रधानमंत्री और नई सरकार के साथ सिस्टम को रिफ्रेश करना चाह रहे हैं. इसके बाद पुतिन आर्थिक व प्रशासनिक सुधारों पर जोर दे सकते हैं.
पुतिन साल 2000 से ही रूस की सत्ता में बने रहे हैं. स्टालिन के बाद पुतिन के नाम पर ही सबसे लंबे कार्यकाल का रिकॉर्ड दर्ज है. विपक्ष के नेता एलेक्सी नवलनी ने एक इंटरव्यू में कहा कि सभी बदलाव बस एक ही संदेश दे रहे हैं कि पुतिन किसी भी सूरत में सत्ता नहीं छोड़ने वाले हैं. पुतिन का भाषण सुनने के बाद कुछ संपादकीय लेखों में यह भी कहा जा रहा है कि वे लोग कितने बेवकूफ थे जो 2024 में पुतिन की विदाई की बात कर रहे थे!