पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी के सऊदी की खुले आम आलोचना के बाद अब डैमेज कंट्रोल की कोशिश शुरू हो गई है. पाकिस्तानी अखबार डॉन के मुताबिक, पाकिस्तान आर्मी चीफ इस सप्ताह सऊदी के दौरे पर जाएंगे. कहा जा रहा है कि कश्मीर को लेकर उठे कूटनीतिक विवाद को शांत करने के लिए आर्मी चीफ का ये दौरा हो रहा है.
सऊदी अरब और पाकिस्तान के बीच दशकों से आर्थिक, रणनीतिक और सैन्य मोर्चे पर मजबूत साझेदारी रही है. साल 2018 में जब पाकिस्तान कर्ज ना चुका पाने और विदेशी मुद्रा भंडार खाली होने की वजह से डिफॉल्टर होने के कगार पर पहुंच गया था तो सऊदी ने ही उसकी मदद की थी. सऊदी ने पाकिस्तान को 3 अरब डॉलर का कर्ज और 3.2 अरब डॉलर की ऑयल क्रेडिट फैसिलिटी दी थी. इससे पाकिस्तान को भुगतान संकट से निकलने में मदद मिली थी.
हालांकि, जब से पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने कश्मीर मुद्दे पर सऊदी अरब की निष्क्रियता की आलोचना की है, तब से सऊदी अरब नाराज हो गया है. सऊदी अरब ने पाकिस्तान से कर्ज लौटाने के लिए कहा है. न्यूज एजेंसी रॉयटर्स को दो सैन्य अधिकारियों ने बताया कि जनरल कमर बाजवा का रविवार को होने वाला दौरा सऊदी को मनाने की कोशिश ही है.
पाकिस्तान के आर्मी प्रवक्ता मेजर जनरल बाबर इफ्तिकार ने रॉयटर्स से इस
दौरे की पुष्टि करते हुए कहा, "हां, आर्मी चीफ बाजवा सऊदी के दौरे पर जा
रहे हैं." हालांकि आधिकारिक रूप से कहा जा रहा है कि ये दौरा पूर्व नियोजित
था और मुख्यत: सैन्य मामलों से जुड़ा हुआ है.
सऊदी अरब ने दो हफ्ते पहले पाकिस्तान को 1 अरब डॉलर का कर्ज चुकाने के लिए मजबूर कर दिया. जबकि कर्ज चुकाने की अवधि पूरा होने में वक्त अभी बाकी था. पाकिस्तान ने इसके लिए अपने सहयोगी चीन से उधार लिया है. सऊदी ने अभी तक पाकिस्तान को दी गई ऑयल क्रेडिट फैसिलिटी को आगे बढ़ाने पर भी विचार नहीं किया है.
राजनयिक सूत्रों के मुताबिक, जनरल कमर बाजवा को सऊदी अरब काफी तवज्जो देता
है. वह इस दौरे में कश्मीर को लेकर भी चर्चा करेंगे. बाजवा इस दौरे में
सऊदी क्राउन प्रिंस के अलावा किंग सलमान बिन अब्दुल अजीज से भी मुलाकात कर
सकते हैं.
दरअसल, पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने एक टीवी चैनल से बातचीत में कहा था कि सऊदी अरब को कश्मीर के मुद्दे पर इस्लामिक सहयोग संगठन (ओआईसी) की बैठक बुलाने में बिल्कुल देरी नहीं करनी चाहिए. कुरैशी ने धमकी भरे अंदाज में ये भी कहा था कि अगर सऊदी ऐसा नहीं करता है तो वह उन मुस्लिम देशों के साथ बैठक बुलाएगा जो कश्मीर मुद्दे पर उसका साथ देने के लिए तैयार हैं. कुरैशी ने कहा था कि कश्मीर पर ओआईसी की विदेश मंत्रियों के स्तर की बैठक इसलिए नहीं बुलाई जा सकी क्योंकि सऊदी अरब पाकिस्तान के अनुरोध को स्वीकार करने को लेकर अनिच्छुक था.
कुरैशी ने कहा था, "पाकिस्तान पिछले साल दिसंबर में सऊदी के कहने पर ही कुआलालंपुर समिट में शामिल नहीं हुआ था. अब पाकिस्तान के मुसलमान सऊदी को कश्मीर मुद्दे पर नेतृत्व करते देखना चाहते हैं. हमारी अपनी संवेदनाएं हैं और खाड़ी देशों को इस बात को समझना होगा." कुरैशी ने कहा कि वह भावुक होकर ऐसा नहीं कह रहे हैं बल्कि वे अपने बयान के मायने को अच्छी तरह समझते हैं. कुरैशी ने कहा कि ये सही है कि मैं सऊदी अरब के साथ अच्छे संबंधों के बावजूद अपना पक्ष स्पष्ट कर रहा हूं क्योंकि हम कश्मीरियों की प्रताड़ना पर और खामोश नहीं रह सकते हैं.
कुरैशी से पहले पाकिस्तान में कभी किसी ने सऊदी की सार्वजनिक तौर पर इस तरह से आलोचना नहीं की थी. हालांकि, कुरैशी ने स्पष्ट किया था कि सऊदी के खिलाफ ये उनके निजी विचार हैं लेकिन पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने भी उनके रुख का समर्थन किया. पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय ने कहा कि लोग इस्लामिक सहयोग संगठन से उम्मीद करते हैं कि वो जम्मू-कश्मीर विवाद को अंतरराष्ट्रीय मंच पर ले जाएगा और कुरैशी के विचार जनभावना को ही प्रदर्शित करते हैं.
हालांकि, पाकिस्तान को कुरैशी का ये बयान काफी भारी पड़ सकता है. सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मुहम्मद बिन सलमान ने फरवरी 2019 में जब पाकिस्तान का दौरा किया था तो करीब 20 अरब डॉलर के समझौतों के एओयू (मेमोरेंडम ऑफ अंडरस्टैंडिंग) पर हस्ताक्षर किए थे. विश्लेषकों का कहना है कि पाकिस्तान ने सऊदी के खिलाफ अपना विरोध जारी रखा तो सारा निवेश खतरे में पड़ जाएगा.
सऊदी पर भड़ास निकालने के एक दिन बाद ही कुरैशी के तेवर भी नरम पड़ गए थे. इसके बाद दिए गए एक इंटरव्यू में कुरैशी ने पाकिस्तान की मदद करने के लिए सऊदी के प्रति आभार जताया और कहा कि पाकिस्तान सऊदी को अपना भाई मानता है इसलिए उसके सामने अपना गुस्सा जाहिर कर सकता है लेकिन दूसरे देशों के साथ ऐसा नहीं है.
इसके बाद, पाकिस्तान के आर्मी चीफ जनरल कमर जावेद बाजवा ने सऊदी के राजदूत से भी मुलाकात की और उसके बाद आनन-फानन में सऊदी के दौरे की भी योजना बन गई. बाजवा चाहेंगे कि वो सऊदी को ना सिर्फ कश्मीर मुद्दे पर इस्लामिक सहयोग संगठन की बैठक के लिए मना लें बल्कि आर्थिक मदद जारी रखने पर भी राजी कर लें. सऊदी अपना 3 अरब डॉलर का कर्ज भी वापस करने के लिए कह रहा है जो पाकिस्तान के लिए किसी आफत से कम नहीं है. विश्लेषकों का कहना है कि सऊदी अपने आर्थिक संकट की वजह से पाकिस्तान को दी जा रही मदद नहीं रोक रहा है बल्कि दोनों देशों के संबंधों में दरार पड़ने की वजह से ऐसा हो रहा है.
पाकिस्तान के विदेश मंत्री के इस बयान की आलोचना उनके देश में ही हो रही है. विपक्षी दल पाकिस्तान मुस्लिम लीग (नवाज) ने कहा कि एक दोस्त देश के बारे में कुरैशी का बयान बेहद गैर-जिम्मेदाराना है और अब तक की सबसे खराब कूटनीति है. पाकिस्तान और सऊदी अरब के ऐतिहासिक और रणनीतिक संबंध रहे हैं और पाकिस्तान के हर मुश्किल वक्त में सऊदी उसके साथ खड़ा रहा है. इकबाल ने कहा कि सरकार देश के अहम हितों के साथ खिलवाड़ कर रही है. पाकिस्तानी पत्रकार आमिर मतीन ने कहा, ऐसी उम्मीद नहीं की जानी चाहिए कि सऊदी पाकिस्तान का दोस्त है तो कश्मीर पर उसका रुख अपने आप भारत के खिलाफ ही होगा. ये कोई कॉलेज नहीं है बल्कि वैश्विक परिदृश्य है.