पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी बार-बार इनकार कर रहे हैं कि अफगानिस्तान में तालिबान आतंकियों से निपटने के लिए पाकिस्तान अपना एयरबेस अमेरिका को दे रहा है. लेकिन पाकिस्तान के शीर्ष अधिकारियों ने दबी जुबान में इस संबंध में बात करना शुरू कर दिया है.
पाकिस्तान के प्रमुख अखबार डॉन की रिपोर्ट के मुताबिक, पाकिस्तान के सरकारी अधिकारियों ने निजी तौर पर पुष्टि की है कि अमेरिका खुफिया विभाग सीआईए के प्रमुख विलियम बर्न्स ने हाल ही में इस्लामाबाद का गुप्त दौरा किया है. उनके इस दौरे का मकसद पाकिस्तान को अपने एयरबेस से अमेरिकी ड्रोन संचालित करने के लिए राजी करना था. हालांकि, अधिकारियों ने बताया कि सीआईए प्रमुख को पाकिस्तान ने अपना सैन्य हवाई अड्डा देने से मना कर दिया है. यही नहीं, सीआईए चीफ को पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने मिलने का वक्त भी नहीं दिया.
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हालांकि, सीआईए निदेशक की पाकिस्तान यात्रा की सही तारीख का खुलासा नहीं हो पाया है, लेकिन बताया जा रहा है कि यह दौरा अप्रैल के अंत में हुआ था. पाकिस्तान अखबार डॉन ने सूत्रों के हवाले से बताया कि विलियम बर्न्स ने 'गुप्त रूप से' आतंकवाद के खिलाफ सहयोग की संभावना तलाशने के लिए इस्लामाबाद का दौरा किया था. पाकिस्तानी अधिकारियों ने चुनिंदा पत्रकारों को बताया कि दोनों पक्षों में सैन्य ठिकानों को लेकर वार्ता हुई थी.
पाकिस्तानी अधिकारियों ने बताया कि सीआईए प्रमुख प्रधानमंत्री इमरान खान से मिलना चाहते थे, लेकिन स्पष्ट रूप से कहा गया कि दोनों देशों के सरकार के प्रमुखों के बीच ही बैठक केवल संभव है. हालांकि कई अन्य रिपोर्ट्स में पहले ही दावा किया जा चुका है कि पाकिस्तान सरकार अपने सैन्य अड्डों के इस्तेमाल की पाकिस्तान को इजाजत दे चुकी है. लेकिन आधिकारिक तौर पर इस संबंधी में अभी कोई पुष्टि नहीं की गई है.
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न्यूयॉर्क टाइम्स की 6 जून को प्रकाशित एक रिपोर्ट के बाद सीआईए प्रमुख की पाकिस्तान यात्रा के बारे में इमरान खान सरकार के अधिकारियों ने यह बात कही है. लेख में दावा किया गया था कि विलियम बर्न्स ने दोनों देशों के बीच आतंकवाद के खिलाफ सहयोग को लेकर सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा और आईएसआई के महानिदेशक लेफ्टिनेंट जनरल फैज हामिद के साथ बैठक के लिए पाकिस्तान की यात्रा की थी.
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बताया जा रहा है कि सेंट्रल इंटेलिजेंस एजेंसी (CIA) अफगानिस्तान के आसपास ऐसे ठिकानों की तलाश कर रही है, जहां से वह अफगानिस्तान के बारे में खुफिया जानकारी जुटा सके और वहां से सेना की वापसी पूरी होने के बाद आतंकवाद के खिलाफ कार्रवाई को अंजाम दे सके.
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विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने मंगलवार को कहा था कि अफगानिस्तान से विदेशी सैनिकों की वापसी के बीच पाकिस्तान ने अमेरिका को अपने सैन्य अड्डे देने से इनकार कर दिया है. जियो न्यूज के साथ बातचीत में कुरैशी ने कहा कि पाकिस्तान एक स्थिर अफगानिस्तान चाहता है, लेकिन कुछ ऐसे तत्व हैं जो इस क्षेत्र में शांति नहीं चाहते हैं.
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कुरैशी ने कहा, "हम सैनिकों की वापसी के साथ शांति प्रक्रिया को आगे बढ़ते हुए देखना चाहते हैं. दुनिया पाकिस्तान को समस्या का हिस्सा नहीं मानती है." विदेश मंत्री ने स्पष्ट रूप से कहा कि पाकिस्तान ने अमेरिका को सैन्य ठिकाने देने से इनकार कर दिया है और कहा कि उन्होंने सभी राजनीतिक दलों को एक ब्रीफिंग में बताया है कि उनका ऐसा कोई इरादा नहीं है.
कुरैशी न्यूयॉर्क टाइम्स की उसी रिपोर्ट पर जवाब दे रहे थे जिसमें कहा गया है कि अमेरिका और पाकिस्तान के बीच सैन्य अड्डों को लेकर गतिरोध बना हुआ है. रिपोर्ट में अमेरिकी अधिकारियों के हवाले से कहा गया है कि, पाकिस्तान के साथ गतिरोध बना हुआ है जबकि कुछ दूसरे अफसरों का कहना है कि वार्ता जारी है. दोनों पक्षों के बीच डील फाइनल होने की पूरी गुंजाइश है.
इस बीच, सोमवार को व्हाइट हाउस में एक प्रेस वार्ता में अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जेक सुलिवन ने कहा कि उन्होंने पाकिस्तान के साथ सैन्य, खुफिया और राजनयिक चैनलों के माध्यम से चर्चा की है. यह बातचीत इसलिए की जा रही थी ताकि अमेरिका यह सुनिश्चित कर सके कि अफगानिस्तान अलकायदा और तालिबान जैसे आतंकी संगठनों के लिए पनाहगाह न बन सके. अमेरिका नहीं चाहता कि अल कायदा या आईएसआईएस या कोई अन्य आतंकवादी गुट उस पर हमला करें.
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न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट में कहा गया है कि अमेरिकी अधिकारियों का मानना था कि पाकिस्तान अमेरिका को सैन्य अड्डा मुहैया कराने की अनुमति देना चाहता है. लेकिन, पाकिस्तानी अधिकारी इसके लिए बहुत सख्त शर्तें रख रहे हैं.
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पिछले कुछ हफ्तों में इस मुद्दे पर पाकिस्तान और अमेरिका के बीच कई स्तरों पर चर्चा हुई है. पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी और अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन, एनएसए मोईद यूसुफ और उनके अमेरिकी समकक्ष जेक सुलिवन, जनरल बाजवा और अमेरिकी रक्षा मंत्री ऑस्टिन लॉयड के बीच वार्ता हुई है.
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