तालिबान भले ही अफगानिस्तान में सरकार बनाने की अंतिम तैयारियों में जुटा हो लेकिन इस संगठन ने उद्घाटन समारोह में भाग लेने के लिए अपने छह अंतरराष्ट्रीय सहयोगियों को पहले ही न्योता दे दिया है. रिपोर्ट्स के अनुसार, तालिबान ने रूस, चीन, तुर्की, पाकिस्तान और कतर जैसे देशों को इस इवेंट में निमंत्रण दिया है.
ताालिबान से भारत ने भी पिछले हफ्ते बातचीत शुरू की थी लेकिन भारत को आमंत्रित नहीं किया है. पहले से ही कहा जा रहा था कि तालिबान के आने के बाद अफगानिस्तान में भारत की मौजूदगी न के बराबर हो जाएगी. यह आशंका शुरुआत से ही सच मालूम पड़ती दिख रही है.
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90 के दशक में जब अफगानिस्तान का तालिबान पर कब्जा था उस दौर में केवल तीन ही देश ऐसे थे जिन्होंने तालिबान राज को मान्यता दी थी. ये देश थे पाकिस्तान, सऊदी अरब और यूएई. हालांकि, इस बार तालिबान को पूर्ण रूप से अलग-थलग करना मुश्किल होगा. तालिबान भी नए सहयोगी और नए संबंधों को बनाने में सफल रहा है. (प्रतीकात्मक तस्वीर/Getty images)
हालांकि इस बात में कोई दो राय नहीं कि ज्यादातर देश फिलहाल तालिबान को मान्यता देने से पहले उनकी गतिविधियों को मॉनीटर करते हुए 'वेट एंड वॉच' की नीति अपना रहे हैं. इनमें कई ऐसे भी हैं जो इससे पहले अफगानिस्तान का शांतिपूर्ण समाधान सुनिश्चित करने के लिए पिछली अफगान सरकार के साथ संवाद करते रहे हैं. (प्रतीकात्मक तस्वीर/Getty images)
तुर्की, ईरान, रूस और चीन जैसे ज्यादातर देशों को अमेरिका के दबदबे वाले अफगानिस्तान में रणनीतिक संतुलन स्थापित करना था. अमेरिकी सैनिकों के अफगानिस्तान से निकलने के बाद अब जो स्पेस पैदा हुआ है वो कई देशों के लिए पर्याप्त अवसर मुहैया करा सकता है और इस मामले में पाकिस्तान और चीन तालिबान के लिए महत्वपूर्ण साबित हो सकते हैं. (प्रतीकात्मक तस्वीर/Getty images)
पिछले बीस सालों से पाकिस्तान अफगानिस्तान का एकमात्र समर्थक रहा है. उस दौर में भी जब पश्चिमी ताकतें अफगानिस्तान की धरती पर तालिबान से संघर्ष कर रही थीं. अमेरिका अब स्वीकार करता है कि अगर पाकिस्तान में तालिबान का मुख्यालय नहीं होता तो उन्हें इस स्तर पर शिकस्त नहीं झेलनी पड़ती. तालिबान पाकिस्तान को अपना 'दूसरा घर' भी बताता रहा है. (प्रतीकात्मक तस्वीर/getty images)
तालिबान पाकिस्तान को अपना 'दूसरा घर' बता चुका है. तालिबान के प्रवक्ता सुहैल शाहीन ने इंडिया टुडे के साथ इंटरव्यू में इस बात पर जोर दिया था कि पाकिस्तान अफगानिस्तान में बनने जा रहे नए प्रशासन के लिए काफी मायने रखता है. उन्होंने ये भी कहा था कि कई तालिबानी सदस्यों के परिवार के बच्चे पाकिस्तान में पढ़ते आए हैं. (प्रतीकात्मक तस्वीर/getty images)
पाकिस्तानी मंत्री शेख रशीद ने एक टीवी शो में कहा था कि पाकिस्तानी सरकार हमेशा से ही तालिबानी नेताओं की संरक्षक रही है. उन्होंने ये भी कहा था कि तालिबानी इस्लामाबाद और रावलपिंडी के लिए अपनी निष्ठा रखते हैं. उन्होंने कहा था कि हमने उनकी कई सालों तक देखभाल की है. उन्हें पाकिस्तान में घर-बार और पढ़ने का इंतजाम कराया है. हमने उनके लिए सब किया है. माना जा रहा है कि पाकिस्तान सबसे पहले तालिबान को मान्यता देने जा रहा है. (प्रतीकात्मक तस्वीर/getty images)
चीन ने भले ही अफगानिस्तान से अमेरिकी सेना के निकलने की काफी तारीफ की हो लेकिन काबुल में तालिबान सरकार को मान्यता देने को लेकर चीन फूंक-फूंक कर कदम रख रहा है. चीन अपनी महत्वाकांक्षी पहल बेल्ट एंड रोड (बीआरआई) के विस्तार में अफगानिस्तान को एक महत्वपूर्ण कड़ी मान रहा है. (प्रतीकात्मक तस्वीर/getty images)
हालांकि अफगानिस्तान में सुरक्षा और स्थिरता अब भी चीन के लिए चिंता का विषय है. अमेरिका और बाकी देशों की भी इस पर नजर होगी कि चीन अफगानिस्तान के आंतरिक मामलों में किस स्तर पर शामिल होता है. गौरतलब है कि चीन के विदेश मंत्रालय ने सोमवार को उस मीडिया रिपोर्ट का जवाब नहीं दिया जिसमें दावा किया गया था कि तालिबान ने अफगानिस्तान में नए सरकार गठन समारोह में भाग लेने के लिए चीन, पाकिस्तान, रूस, तुर्की, ईरान और कतर को आमंत्रित किया है. (प्रतीकात्मक तस्वीर/getty images)
जब चीन के विदेश मंत्रालय प्रवक्ता वांग वेनबिन से इस रिपोर्ट के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि मेरे पास इस समय इस बारे में कोई जानकारी नहीं है. इसके अलावा कुछ चीनी बिजनेसमैन भी अफगानिस्तान में संभावनाओं को देखते हुए अपना बिजनेस वहां सेटअप करने की कोशिशों में हैं. (प्रतीकात्मक तस्वीर/Getty images)