बांग्लादेश में भी तालिबान को लेकर काफी हलचल है. बांग्लादेश के बड़े हिस्से में लोग तालिबान के पक्ष में हैं. ऐसे में, शेख हसीना सरकार धार्मिक अतिवाद और कट्टरता बढ़ने को लेकर आशंकित है. बांग्लादेश में पहले से ही कई अतिवादी और कट्टरपंथी इस्लामिक संगठन हैं. कई राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अफगानिस्तान में तालिबान के सत्ता में आने से बांग्लादेश निश्चित तौर पर प्रभावित होगा. बांग्लादेश के कट्टरपंथी इस्लामिक संगठन तालिबान की जीत को अपनी जीत की तरह देख रहे हैं. इसका असर बांग्लादेश के सोशल मीडिया पर भी दिख रहा है.
बांग्लादेश में सोशल मीडिया पर कई ग्रुप तालिबान के समर्थन में पोस्ट कर रहे हैं. कई लोग तो सार्वजनिक रूप से तालिबान का समर्थन कर रहे हैं. मिसाल के तौर पर राशिद कंचन ने अपने फेसबुक पन्ने पर लिखा है, ''निजी तौर पर मेरे मन तालिबान को लेकर आदर का भाव है. तालिबान ने विदेश शक्तियों से अपने मुल्क को मुक्त कराने के लिए 20 साल की लंबी लड़ाई लड़ी है. क्या आप अपने मुल्क के लिए नहीं लड़ते?''
तालिबान के समर्थन में एक और फेसबुक ग्रुप ने अपनी पोस्ट में लिखा है, ''दुनिया में सबसे तेज गति से बढ़ती अर्थव्यवस्था वाला देश अफगानिस्तान का समर्थन कर रहा है. बांग्लादेश भी ऐसा ही करेगा. कई लोगों ने भारत की भी निंदा की है.''
हालांकि ऐसा नहीं है कि बांग्लादेश में लोग केवल तालिबान के समर्थन में ही पोस्ट कर रहे हैं. कई लोग तालिबान के खिलाफ भी फेसबुक पर लिख रहे हैं. नाटक लेखक और पत्रकार पावेल रहमान ने काबुल एयरपोर्ट की स्थिति पर लिखा है. एयरपोर्ट पर अफगान तालिबान के डर से मुल्क छोड़ रहे हैं. पावेल ने लिखा है, ''एयरपोर्ट के भीतर का दृश्य भयावह है. लोग अपना जीवन बचाने के लिए देश छोड़ रहे हैं. दुनिया भर की राजनीति पूंजीपतियों के हाथों में है. जब राजनीति बीमार होती है तो देश की सेहत भी अच्छी नहीं होती है. यह दुर्भाग्य ही है कि लोग अपना मुल्क छोड़कर भाग रहे हैं. राजनीति लोगों के लिए होनी चाहिए न कि ताकतवर लोगों के लिए. बांग्लादेश शिक्षा पर ध्यान दो और सेहतमंद रहो.''
तालिबान का समर्थन करने वालों को बांग्लादेश में कई लोग निशाने पर ले रहे हैं. पावेल रहमान ने लिखा है, ''तालिबान के समर्थन में एक बार फिर से लोग सामने आ रहे हैं. तालिबान की जीत को बांग्लादेश में समर्थन मिल रहा है. मैंने इसी तरह का समर्थन ओसामा बिन लादेन के वक्त में देखा था. हालांकि लादेन को अमेरिका ने मार दिया और उनके समर्थकों को भी बाहर कर दिया. एक बार फिर से ऐसा ही होगा.''
बांग्लादेश राजनीतिक और रक्षा विश्लेषकों का कहना है कि तालिबान की जीत से यहां के कट्टरपंथी इस्लामिक संगठनों को प्रेरणा मिलेगी. बांग्लादेश इंस्टिट्यूट ऑफ पीस एंड स्टडीज में रक्षा विश्लेषक सफाकत मुनीर का कहना है, ''अफगानिस्तान में उपद्रव का असर बांग्लादेश पर पड़ना लाजिमी है. बांग्लादेश में कई कट्टरपंथी संगठन हैं. तालिबान की जीत को बांग्लादेश के कट्टरपंथी संगठन अपनी जीत की तरह देख रहे हैं. ढाका पुलिस भी तालिबान को लेकर सतर्क है. बांग्लादेश में तालिबान के उभार की प्रशंसा हो रही है. बांग्लादेश में धार्मिक अतिवाद को हवा मिल सकती है.''
बांग्लादेश के विदेश मंत्री एके अब्दुल मोमेन ने तालिबान पर सरकार का रुख स्पष्ट किया था. बांग्लादेश के विदेश मंत्री एके अब्दुल मोमेन ने एक बयान में कहा, बांग्लादेश अफगानिस्तान की नई सरकार का स्वागत करने के लिए तैयार है बशर्ते इसे लोगों को समर्थन हासिल हो. उन्होंने कहा, हम लोगों द्वारा चुनी सरकार में विश्वास रखते हैं. हम ऐसी सरकार में विश्वास करते हैं जिसे उस देश के लोग पसंद करें. हम लोकतांत्रिक सरकार के पक्ष में हैं. मोमेन ने कहा कि अगर तालिबान की सरकार को लोगों का समर्थन मिलता है तो बांग्लादेश अपने दरवाजे जरूर उसके लिए खोल देगा.
मोमेन ने कहा कि बांग्लादेश सभी देशों के साथ दोस्ती चाहता है और कोई देश अगर उसकी मदद चाहता है तो वह जरूर आगे आएगा. उन्होंने कहा कि अफगानिस्तान बांग्लादेश का मित्र है और सार्क का सदस्य देश भी है. बांग्लादेश चाहता है कि अफगानिस्तान का विकास हो.
बांग्लादेश में पाकिस्तान के लिए बढ़ता समर्थन
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने खुले तौर पर तालिबान का समर्थन किया है. इमरान खान ने तालिबान के अफगानिस्तान पर कब्जे के बाद कहा था कि अफगानों ने गुलामी की बेड़ियां तोड़ दी हैं. वहीं, बांग्लादेश में भी कट्टरपंथियों का प्रभाव बढ़ा है. बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने भी इस बात को स्वीकार किया है कि कई चरमपंथी समूह तालिबान के मुद्दे पर पाकिस्तान के साथ खड़े हैं. स्थानीय मीडिया को दिए एक इंटरव्यू में शेख हसीना ने कहा कि वह अफगानिस्तान मुद्दे पर पाकिस्तान की मदद नहीं लेंगी. इसके साथ ही, उन्होंने चरमपंथियों को चेतावनी भी दी.
ढाका मेट्रोपॉलिटन पुलिस (डीएमपी) कमिश्नर मोहम्मद शैफुकुल इस्लाम ने कहा है कि अफगानिस्तान में तालिबान के आने से बांग्लादेश में कट्टरपंथियों को बढ़ावा मिल सकता है. उन्होंने कहा है कि बांग्लादेश के अतिवादी अफगानिस्तान में तालिबान की जीत से खुश हैं. उन्होंने कहा कि तालिबान की जीत से उपमहाद्वीप के कट्टरपंथी खुश हैं. शैफुकुल इस्लाम ने कहा कि इसे लेकर बांग्लादेश की सुरक्षा एजेंसियां सतर्क हैं. कुछ दिन पहले ही शैफुकुल इस्लाम ने भारत को भी आगाह किया था. उन्होंने बताया, बांग्लादेश से कुछ युवा तालिबान में शामिल होने के लिए अफगानिस्तान जाना चाहते थे. काबुल पहुंचने के लिए वो भारत का इस्तेमाल कर सकते थे इसलिए हमने बीएसएफ को अलर्ट किया था.
बुद्धिजीवियों की प्रतिक्रिया
बांग्लादेश की मध्यम वर्ग की शिक्षित आबादी का रुख तालिबान को लेकर बिल्कुल स्पष्ट है कि वे तालिबानी हुकूमत के खिलाफ हैं. वह तालिबान की सत्ता को किसी भी सूरत में नहीं चाहते हैं. पातेंगा सिटी कॉरपोरेशन कॉलेज में बांग्ला के प्रोफेसर और कवि फौद हसन ने कहा, "बांग्लादेश की सिविल सोसायटी और कामकाजी मध्यमवर्गीय आबादी अफगानिस्तान में तालिबान के उभार का पुरजोर विरोध कर रही है. वे तालिबान को लेकर चिंतित हैं. हमारे देश की कई महिलाएं नौकरी करती हैं और अपनी आजीविका चलाती हैं. वे तालिबान का राज नहीं चाहती हैं. बांग्लादेश के कट्टरपंथी भले ही तालिबान का समर्थन कर रहे हों लेकिन बांग्लादेश की ज्यादातर आबादी आतंकवादियों के खिलाफ है. शेख हसीना भी एक अनुभवी और समझदार नेता हैं. वह हालात को अच्छी तरह समझती हैं. सरकार जरूर इस पर ध्यान दे रही होगी."