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विश्व

भारत की अध्यक्षता वाले प्रस्ताव पर रूस ने क्यों दिया झटका?

Resolution on Taliban
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अफगानिस्तान (Afghanistan) से अमेरिका (America) की वापसी के साथ ही भारत की अध्यक्षता में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) ने एक प्रस्ताव पारित कर दिया है. इस प्रस्ताव के अनुसार, तालिबान को अफगानिस्तान में मान्यता प्रदान दी गई है और इसमें मांग की गई है कि अफगानिस्तान का धरती का इस्तेमाल आतंकियों को पनाह देने या दूसरे देशों को धमकाने के लिए नहीं किया जाना चाहिए. 

(फोटो क्रेडिट: Getty images)

Resolution on Taliban
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इस प्रस्ताव को फ्रांस, ब्रिटेन और अमेरिका जैसे देशों ने प्रायोजित किया था और यूएनएससी ने इसे स्वीकार कर लिया है. भारत समेत 13 देशों ने इस प्रस्ताव के पक्ष में वोट किया था, वहीं, इस प्रस्ताव के खिलाफ किसी देश ने वोट नहीं दिया. हालांकि, वीटो-धारक सदस्य रूस और चीन ने इस प्रस्ताव से दूरी बनाई. दोनों देश वोटिंग में गैर-हाजिर रहे. (फोटो क्रेडिट: Getty images)

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इस प्रस्ताव के अनुसार, अफगानिस्तान की धरती का प्रयोग किसी भी देश को धमकाने या आतंकवाद को पनाह देने के लिए नहीं किया जाएगा. इसके अलावा अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को तालिबान से उम्मीद है कि वे अफगानिस्तान के नागरिकों और विदेशियों को सुरक्षित और व्यवस्थित तरीके से निकालने में मदद करेगा. (फोटो क्रेडिट: Getty images)

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भारत के विदेश सचिव हर्षवर्धन श्रृंगला ने उस सत्र की अध्यक्षता की जिसमें ये प्रस्ताव पारित किया गया था. उन्होंने कहा कि ये साफ तौर पर बताता है कि अफगानिस्तान के किसी भी हिस्से से किसी भी देश को धमकाने या हमला करने के लिए इस्तेमाल नहीं किया जाएगा और ना ही आतंकियों को शरण देने या उन्हें प्रशिक्षण देने के लिए इस देश की धरती का इस्तेमाल होगा. उन्होंने कहा कि ये भारत के लिए काफी महत्वपूर्ण है. (हर्षवर्धन श्रृंगला, पीटीआई)

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हालांकि, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव में तालिबान का पांच बार नाम लिया गया लेकिन उसकी निंदा नहीं की गई बल्कि अफगानिस्तान से अफगानों और विदेशी नागरिकों को सुरक्षित तरीके से निकालने को लेकर तालिबान की प्रतिबद्धता का जिक्र किया गया.

(फोटो क्रेडिट: Getty images)

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इसके अलावा इस प्रस्ताव में मानवाधिकारों को कायम रखने, एक समावेशी राजनीतिक समाधान तक पहुंचने और आतंकवाद का मुकाबला करने के महत्व पर भी जोर दिया गया है. हालांकि, तालिबान अगर अपनी प्रतिबद्धताओं का पालन करने में विफल रहता है तो उसे लेकर क्या सजा मिलेगी, इस बारे में कोई प्रावधान नहीं किया गया है. (फोटो क्रेडिट: getty images)

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इस मामले में रूस के स्थायी प्रतिनिधि वसीली नेबेंजिया ने कहा कि रूस को अफगानिस्तान के प्रस्ताव पर वोट के दौरान अनुपस्थित रहने के लिए मजबूर किया गया है क्योंकि ड्राफ्ट बनाने वालों ने हमारी सैद्धांतिक चिंताओं को नजरअंदाज किया है. उन्होंने कहा कि प्रस्ताव में आतंकी खतरों पर जोर नहीं दिया गया और ना ही अफगानों के निकलने से हो रहे ब्रेन ड्रेन पर कुछ कहा गया. अमेरिका के अफगानिस्तान की सरकार को मिलने वाली फंडिंग फ्रीज करने से पैदा हुए आर्थिक और मानवीय संकट को भी इस प्रस्ताव में जगह नहीं मिली. वहीं, चीन के राजदूत गेंग शुआंग ने कहा कि चीन को इस प्रस्ताव को लेकर संदेह है. (फोटो क्रेडिट: Getty images)

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चीन ने भी रूस की कुछ चिंताओं को लेकर अपनी सहमति जताई है और अमेरिका की आलोचना करते हुए कहा है अफगानिस्तान में फैली अराजकता पश्चिमी देशों की अव्यवस्थित तरीके की वापसी का परिणाम है. उन्होंने कहा कि 'अफगानिस्तान के घरेलू हालातों में मूलभूत परिवर्तनों के बाद अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के लिए तालिबान के साथ जुड़ना और सक्रिय रूप से उन्हें मार्गदर्शन प्रदान करना जरूरी हो चुका है.' (फोटो क्रेडिट: Getty images)

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वहीं, संयुक्त राष्ट्र में अमेरिकी राजदूत लिंडा थॉमस-ग्रीनफील्ड ने कहा, 'हमने एक बार फिर अफगानिस्तान में आतंकवाद के खतरे से निपटने की जरूरत पर बात की है. पिछले हफ्ते काबुल में हुए भीषण हमले ने ISIS-K जैसे आतंकवादी संगठनों के खतरे को दिखाया है. राष्ट्रपति जो बाइडन ने साफ किया है कि अमेरिका अपने लोगों की रक्षा के लिए जो भी जरुरी होगा, उसे करने में गुरेज नहीं करेगा.' (फोटो क्रेडिट: Getty images)


 

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गौरतलब है कि अफगानिस्तान से अमेरिका की वापसी के साथ ही इस देश में उथल-पुथल का दौर जारी है. तालिबान ने काबुल पर कब्जा जमाने के बाद प्रेस कॉन्फ्रेंस में सभी लोगों की आजादी और सुरक्षा को लेकर दावे किए थे. हालांकि ये संगठन अब इन दावों को झुठलाता नजर आ रहा है. इसके अलावा पंजशीर में भी एंटी तालिबान फोर्स इस संगठन से संघर्ष कर रही है. (फोटो क्रेडिट: getty images)

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