भारत की यात्रा के बाद अमेरिका के विदेश मंत्री माइक पोम्पियो श्रीलंका के दौरे पर पहुंचे हैं. अमेरिकी विदेश मंत्री ने बुधवार को श्रीलंका के विदेश मंत्री दिनेश गुणवर्धने से मुलाकात की और चीन पर जमकर हमला बोला. हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन के बढ़ते दबदबे को रोकने के मकसद से अमेरिकी विदेश मंत्री भारत और श्रीलंका के बाद मालदीव और इंडोनेशिया का दौरा भी करेंगे. अमेरिकी अधिकारी कई बार चिंता जाहिर कर चुके हैं कि चीन अपने निवेश के जरिए श्रीलंका और मालदीव जैसे देशों के रणनीतिक संसाधनों का दोहन कर रहा है.
श्रीलंका के विदेश मंत्री से मुलाकात के बाद ब्रीफिंग में भी पोम्पियो ने चीन पर निशाना साधा और कहा कि वो जमीन और समुद्र में दूसरे देशों की संप्रुभता का लगातार उल्लंघन कर रहा है. अमेरिका के विदेश मंत्री ने कहा, चीन की कम्युनिस्ट पार्टी एक शिकारी की तरह है जबकि अमेरिका एक दोस्त और सहयोगी के रूप में है. पोम्पियो ने कहा कि अमेरिका श्रीलंका के साथ अपनी साझेदारी को लोकतांत्रिक मूल्यों के तहत आगे ले जाना चाहता है जबकि चीन के मंसूबे कुछ और ही हैं.
पोम्पियो ने कहा, मजबूत और संप्रभुता संपन्न श्रीलंका वैश्विक मंच पर अमेरिका का एक ताकतवर रणनीतिक सहयोगी है. श्रीलंका अगर अपनी संप्रुभता को बनाए रखे तो वो हिंद-प्रशांत क्षेत्र के लिए एक मिसाल बन सकता है. लेकिन चीन इससे ठीक उलट चाहता है.
अमेरिकी विदेश मंत्री ने कहा, हम चाहते हैं कि श्रीलंका के लोगों की संप्रुभता और आजादी कायम रहे. हम उन्हें सफल होते देखना चाहते हैं और उनका विकास चाहते हैं. हमें लगता है कि अमेरिका एक दोस्त और साझेदार के तौर पर ये सब कुछ करने की कोशिश करेगा.
हालांकि, पोम्पियो जहां चीन पर हमलावर थे, वहीं श्रीलंका के विदेश मंत्री अमेरिका-चीन की लड़ाई में ना पड़ने की कोशिश करते नजर आए. जब श्रीलंका के विदेश मंत्री से सवाल किया गया कि क्या पोम्पियो के दौरे से चीन नाराज होगा तो उन्होंने कहा कि श्रीलंका की विदेश नीति तटस्थ रही है और उनका देश हर किसी के साथ काम करने का इच्छुक है. श्रीलंका के विदेश मंत्री गुणवर्धने ने कहा, श्रीलंका-अमेरिका के रिश्ते कई सालों के सहयोग से लगातार मजबूत हुए हैं. श्रीलंका एक तटस्थ, गुटनिरपेक्ष और शांतिप्रिय देश है और हम उम्मीद करते हैं कि अमेरिका और अन्य देशों के साथ हमारे रिश्ते कायम रहेंगे.
जब अमेरिकी विदेश मंत्री से सवाल किया गया कि क्या उनका ये दौरा सिर्फ चीन के खिलाफ है तो उन्होंने कहा कि अमेरिका और श्रीलंका जैसे लोकतांत्रिक देशों का एक साझा दृष्टिकोण है. पोम्पियो ने कहा, ये नजरिया श्रीलंका और अमेरिका के लोगों के लिए है. चीन की सोच बिल्कुल अलग है. हम ये सुनिश्चित करना चाहते हैं कि श्रीलंका के लोग स्वतंत्र रहने के लिए अपनी संप्रुभता का इस्तेमाल कर सकें.
पोम्पियो के श्रीलंका पहुंचने से पहले ही चीन ने अमेरिका पर छोटे देशों को धमकाने का आरोप लगाया था. अमेरिकी अधिकारियों का कहना है कि चीन के दूसरे देशों में जितने प्रोजेक्ट हैं, उससे उन देशों से ज्यादा चीन को ही फायदा होता है. इसी महीने, चीन ने श्रीलंका को ग्रामीण क्षेत्रों के विकास के लिए 90 मिलियन डॉलर की मदद उपलब्ध कराने का ऐलान किया है.
चीन अपनी बेल्ट ऐंड रोड परियोजना के लिए श्रीलंका को अहम कड़ी मानता है और पिछले कुछ सालों में यहां कई परियोजनाओं में अरबों डॉलर्स का निवेश किया है. इन परियोजनाओं में बंदरगाह, हाईवे, बिजली समेत कई क्षेत्र शामिल हैं. हालांकि, आलोचकों का कहना है कि चीन की परियोजनाएं अक्सर देशों को कर्ज के जाल में फंसा देती हैं. साल 2017 में श्रीलंका में चीन ने एक बंदरगाह बनाया था लेकिन इसे बनाने में लिए गए कर्ज को ना चुका पाने पर उसे इस बंदरगाह को एक चीनी कंपनी को 99 सालों के लिए लीज पर सौंपना पड़ा था.
पोम्पियो के श्रीलंका के दौरे से पहले चीन ने इसकी कड़ी आलोचना की थी. चीन ने अमेरिका के एक शीर्ष अधिकारी पर श्रीलंका को धमकाने का आरोप लगाया था. दरअसल, दक्षिण एशिया में अमेरिका के राजनयिक डीन थॉम्प्सन ने श्रीलंका से अपील की थी कि वह दीर्घकालीन संपन्नता को ध्यान में रखते हुए आर्थिक स्वतंत्रता बचाए और कठिन फैसले लेने की हिम्मत जुटाए. इसके जवाब में चीनी दूतावास ने कहा था कि ये कूटनीतिक प्रोटोकॉल का सीधा उल्लंघन है. चीनी दूतावास ने श्रीलंका पर वैचारिक दबाव डालने को लेकर पोम्पियो को फटकार भी लगाई थी. चीनी दूतावास ने अपने बयान में कहा था, क्या मेजबान देश के लिए यही आपका सम्मान है? क्या इससे महामारी के नियंत्रण में मदद मिलेगी? क्या ये श्रीलंका के लोगों के हित में है?