भारतीय मूल की ब्रिटिश जासूस नूर इनायत खान की आवक्ष प्रतिमा का गुरुवारु को यहां अनावरण हुआ. गॉर्डन स्क्वेयर गार्डन्स में उस मकान के नजदीक प्रतिमा स्थापित की गयी है जहां वह बचपन में रहा करती थी.
प्रतिमा का अनावरण महारानी एलिजाबेथ द्वितीय की बेटी राजकुमारी एनी ने किया. नूर जर्मनी द्वारा यातना दिए जाने और गोली मारे जाने से पहले द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान फ्रांस में काम करती थी.
ऐसा कहा जाता है कि ब्रिटेन में किसी मुसलमान को समर्पित और किसी एशियाई महिला के सम्मान में यह इस तरह का पहला स्मारक है.
नूर को फ्रांस में उसके द्वारा किए गए काम तथा 10 महीने तक चली यातनाओं के बावजूद पूछताछ करने वालों को कोई भी राज नहीं उगलने के लिए मरणोपरांत ‘जॉर्ज क्रॉस’ से सम्मानित किया गया था. वह मैसूर का शेर कहे जाने वाले टीपू सुल्तान की वंशज थी.
ब्रिटेन के लिए काम करने वाली इस भुला दी गई नायिका का स्मारक बनाए जाने के लिए श्रावणी बसु के नेतृत्व में नूर इनायत खान मेमोरियल ट्रस्ट वर्षों से अभियान चला रहा था. बसु ने नूर की जीवनी लिखी है.
ट्रस्ट के अभियान को ब्रिटिश प्रधानमंत्री डेविड कैमरन और कई सांसदों तथा बड़े लोगों और फिल्म निर्माता गुरिन्दर चड्ढा, रंगमंच कलाकार नीना वाडिया तथा सितार वादक अनुष्का शंकर जैसी जानी मानी महिलाओं का भी समर्थन प्राप्त था.
नूर मेमोरियल ट्रस्ट की संस्थापक और नूर की जीवनी ‘स्पाई प्रिंसेज’ की लेखिका श्रावणी ने कहा कि वह इस बात को लेकर नूर की कहानी के साथ जुड़ीं कि किस तरह एक भारतीय महिला यूरोप के युद्ध क्षेत्र में शामिल हुई. पत्रकार श्रावणी ने कहा, ‘जब मैंने उसकी (नूर) जिन्दगी पर शोध शुरू किया तो मैंने पाया कि वह सूफी थी जो अहिंसा और धार्मिक सौहार्द में यकीन रखती थी, फिर भी उसने स्वेच्छा से जंग में भाग लिया.’ उन्होंने कहा, ‘खान का कोड नाम मैडलिन था और उसे डचाउ यातना शिविर में गोली मारी गई थी. वह ब्रितानिया हुकूमत से लड़ाई के दौरान मारे गए टीपू सुल्तान की वंशज थी. उसके खुद के पिता कट्टर राष्ट्रवादी थे. वह पंडित जवाहर लाल नेहरू और महात्मा गांधी की बड़ी प्रशंसक थी.’ नाजी जर्मनी पुलिस द्वारा बड़े पैमाने पर गिरफ्तारियों और पेरिस में विशेष अभियान से जुड़े खुफिया नेटवर्क को नष्ट कर दिए जाने के बाद नूर लंदन के लिए संपर्क का अंतिम जरिया थी.
नूर का खुफिया तंत्र खत्म हो जाने के बाद उसके कमांडरों ने उससे लौटने का आग्रह किया, लेकिन उसने अपने फ्रांसीसी साथियों को बिना संपर्क के छोड़ने से इनकार कर दिया.
तीन महीने तक वह अकेले ही पेरिस में जासूसों की इकाई का संचालन करती रही. वह तुरंत अपना नाम और भेष बदल लिया करती थी, लेकिन आखिर में पकड़ी गई.
उसकी आवक्ष प्रतिमा लंदन यूनिवर्सिटी की जमीन पर स्थापित की जा रही है जो ब्लूम्सबरी स्थित उस मकान के नजदीक है जहां नूर 1914 में बचपन में रहा करती थी.