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फेरबदल के बाद भी CPC पुरुष प्रधान ही रही

क्रांति की राग अलापने के बावजूद चीन की सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी दशक में एक बार होने वाले फेरबदल में पुरुष प्रधान ही बनी रही है और उसके शीर्ष संचालन निकाय में भी देश के संकटग्रस्त जातीय अल्पसंख्यकों को कोई प्रतिनिधित्व नहीं मिला है.

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ली याछांग
ली याछांग

क्रांति की राग अलापने के बावजूद चीन की सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीसी) दशक में एक बार होने वाले फेरबदल में पुरुष प्रधान ही बनी रही है और उसके शीर्ष संचालन निकाय में भी देश के संकटग्रस्त जातीय अल्पसंख्यकों को कोई प्रतिनिधित्व नहीं मिला है.

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पहले तिब्बत मामलों की प्रभारी नीति निकाय की सदस्य रहीं हाई प्रोफाइल खानदानी कम्युनिस्ट नेता सड़सठ वर्षीया ली याछांग सर्वशक्तिशाली स्थायी समिति में स्थान नहीं पा सकीं. इसके साथ ही महिलाओं के लिए शीर्ष निकाय के द्वार खुलने की अटकलें झूठी निकलीं.

स्थायी समिति नौ सदस्यों से घटाकर सात सदस्यीय बना दी गयी. जहां कुछ नेताओं का कहना है कि इसका लक्ष्य सामूहिक नेतृत्व के समन्वय में सुधार लाना है वहीं कुछ इसे पार्टी में गुटीय संघर्ष से जोड़कर देख रहे हैं.

हालांकि ली अन्य महिला पदाधिकारी सन चनलन के साथ 25 सदस्यीय पोलित ब्यूरो में स्थान पाने में सफल रही है जो सीपीसी में दूसरी बड़ी नीति नियंता निकाय है.

पिछले तीन दशक में चीन में नौकरियों एवं उद्योग में महिलाओं की स्थिति में काफी सुधार के बावजूद सीपीसी में बहुत कम महिलाएं हैं. दोनों निकायों में जातीय अल्पसंख्यकों को भी प्रतिनिधित्व नहीं मिला है.

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तिब्बत और झिनजियांग में स्थिति गंभीर है और 18 वीं पार्टी कांग्रेस में इन पर व्यापक चर्चा हुई. तिब्बत में चीन शासन के खिलाफ आत्मदाह के माध्यम से प्रदर्शन तेज हो रहे हैं जबकि उग्यूर मुसलमानों के मूल क्षेत्र झिनजियांग में हान चीनियों की बस्तियां बसने के खिलाफ नाराजगी बढ़ रही है.

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