अमेरिकी विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन ने यह साफ कर दिया है कि दक्षिणी प्रशांत क्षेत्र में अमेरिका सक्रिय बना रहेगा. हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि यह क्षेत्र उभर रहे चीन के लिए काफी बड़ा है.
दक्षिणी प्रशांत सम्मेलन में भाग लेने वाली पहली अमेरिकी विदेश मंत्री हिलेरी ने इस क्षेत्र की सहायता परियोजनाओं के लिए 3.2 करोड़ डॉलर देने की घोषणा की. इस सम्मेलन में भागीदारी और आर्थिक अनुदान इस क्षेत्र में अमेरिकी रुचि को दर्शाता है.
ऑस्ट्रेलियाई लॉवे इंस्टीट्यूट के अनुसार, 'चीन ने 2005 से दक्षिणी प्रशांत क्षेत्र को कम ब्याज और आसान शर्तों पर 60 करोड़ अमेरिकी डॉलर का कर्ज देने का वादा कर रखा है. इस वजह से कई द्वीपों के संबंध चीन के साथ घनिष्ठ हो गए हैं. इस स्थिति के बीच हिलेरी ने इस क्षेत्र का दौरा करने का फैसला किया.'
अगले सप्ताह हिलेरी की बीजिंग यात्रा में दुनिया की दो बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के बीच तनावपूर्ण संबंधों पर वार्ताएं होंगी. ये दोनों ही अब दक्षिण प्रशांत क्षेत्र में एक दूसरे के प्रतिद्वंद्वी बनकर उभरे हैं. हिलेरी ने 15 सदस्यीय ‘पैसिफिक आईलैंड्स फोरम’ में कहा, ‘आपके विकास में सहयोगी देशों-जापान, यूरोपीय संघ और चीन के साथ काम करने के अवसर का हम स्वागत करते हैं.’
उन्होंने कहा, ‘इस क्षेत्र में आपकी सुरक्षा, समृद्धि और आपके लिए अवसरों को आधुनिक बनाने के लिए हम सभी को महत्वपूर्ण योगदान देना है. प्रशांत क्षेत्र हम सभी के लिए काफी बड़ा है.’
इस सम्मेलन के विरोध में उठ रही आवाजों के बारे में हिलेरी ने कहा कि अमेरिकी सेना ने दूसरे विश्वयुद्ध में एशिया-प्रशांत क्षेत्र में स्थिरता लाने के लिए काफी मदद की थी. उन्होंने कहा, ‘हमारे देश आपसी हितों के जरिए एक-दूसरे से जुड़े हैं. इससे भी महत्वपूर्ण यह है कि इनके साझे मूल्य, साझा इतिहास और भविष्य के लिए साझे लक्ष्य हैं.’
हिलेरी ने कहा, ‘हम इस क्षेत्र में अपना निवेश बढ़ा रहे हैं और हम यहां पर लंबी पारी खेलने के लिए आपके साथ बने रहेंगे.’ 1994 में अमेरिका ने दक्षिणी प्रशांत क्षेत्र में अपने सहायता कार्यक्रम बंद कर दिए थे.
उस समय उन क्षेत्रों में अमेरिका की कोई खास रुचि नहीं थी. लेकिन अमेरिका के वर्तमान राष्ट्रपति बराक ओबामा ने हाल ही में इस क्षेत्र के लिए मदद को फिर से बहाल किया है.