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जरदारी के खिलाफ पत्र का नया मसौदा कोर्ट में पेश

पाकिस्तान के राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामले दोबारा खोलने के लिए स्विट्जरलैंड के अधिकारियों को भेजे जाने वाले पत्र का नया मसौदा सरकार ने शुक्रवार को सर्वोच्च न्यायालय में पेश किया लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने इसे अपने आदेश के अनुरूप नहीं बताया.

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आसिफ अली जरदारी
आसिफ अली जरदारी

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पाकिस्तान के राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामले दोबारा खोलने के लिए स्विट्जरलैंड के अधिकारियों को भेजे जाने वाले पत्र का नया मसौदा सरकार ने शुक्रवार को सर्वोच्च न्यायालय में पेश किया लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने इसे अपने आदेश के अनुरूप नहीं बताया.

आसिफ अली जरदारी को झटका
समाचार पत्र 'डॉन' की वेबसाइट के मुताबिक, कानून मंत्री फारूक एच. नाइक ने राष्ट्रीय सुलह अध्यादेश (एनआरओ) को लागू करने से सम्बंधित मामले की सुनवाई कर रही सर्वोच्च न्यायालय की पीठ के समक्ष पत्र का मसौदा पेश किया.

न्यायमूर्ति आसिफ सईद खोसा की अध्यक्षता में न्यायालय की पांच सदस्यीय पीठ ने मामले की सुनवाई की. न्यायमूर्ति खोसा ने कहा कि पत्र का मसौदा न्यायालय के आदेश के अनुरूप नहीं है.

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उन्होंने कहा कि हालांकि पत्र का पहला और दूसरा अनुच्छेद न्यायालय के आदेश के अनुरूप है, लेकिन तीसरा अनुच्छेद पहले दो अनुच्छेदों और न्यायालय के आदेश से अलग है. उन्होंने आखिरी अनुच्छेद की समीक्षा करने को भी कहा.

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प्रधानमंत्री अशरफ ने 18 सितम्बर को न्यायालय में कहा था कि सरकार ने परवेज मुशर्रफ के कार्यकाल में जरदारी के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामले बंद करने सम्बंधी भेजा गया पत्र वापस लेने का निर्णय किया है.

उल्लेखनीय है कि वर्ष 2007 में पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ ने जरदारी और उनकी पत्नी तथा पूर्व प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो की स्वदेश वापसी सुनिश्चित करने के लिए उन्हें एनआरओ के तहत आम माफी दे दी थी.

जरदारी को बचाने के लिए गिलानी के बहाने!
इसके तहत राजनेताओं तथा नौकरशाहों को भ्रष्टाचार के मामलों में अभियुक्त बनाने से छूट दी गई लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 2009 में इस अध्यादेश को निरस्त कर दिया. सर्वोच्च न्यायालय ने इस साल जनवरी में तत्कालीन प्रधानमंत्री यूसुफ रजा गिलानी को जरदारी के खिलाफ स्विट्जरलैंड के अधिकारियों को पत्र लिखने के लिए कहा था.

उन्होंने हालांकि ऐसा नहीं किया. न्यायालय ने 26 अप्रैल को उन्हें अदालत की अवमानना का दोषी करार दिया. 19 जून को उन्हें संसद की सदस्यता तथा प्रधानमंत्री पद के अयोग्य ठहरा दिया गया.

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