भारत को पाकिस्तान और चीन के साथ पारम्परिक युद्ध के लिए तैयार रहना चाहिए, क्योंकि परमाणु क्षमता से ही युद्ध की सम्भावना को टाला नहीं जा सकता है जैसा कि 1999 में कारगिल युद्ध से पता चल चुका है. यह बात अमेरिका के थिंक टैंक की रिपोर्ट में कही गई.
युद्ध को टालने के लिए परमाणु प्रतिरोध काफी नहीं
कार्नेगी एंडॉमेंट फॉर इंटनेशनल पीस की एक रिपोर्ट में भारतीय वायु सेना की भूमिका के बारे में कहा गया है, 'रणनीतिक स्तर पर कारगिल युद्ध से स्पष्ट पता चलता है कि स्थिर द्विपक्षीय परमाणु प्रतिरोध सम्बंध क्षेत्रीय झगड़े को बड़ा आकार लेने से भले ही नहीं रोक पाए, लेकिन उसे सीमित कर सकता है.'
रैंड कारपोरेशन के वरिष्ठ शोध सहायक बेंजामिन एस. लाम्बेथ की रिपोर्ट में कहा गया, 'परमाणु प्रतिरोध के अभाव में ऐसे छोटे मोटे झगड़े पारम्परिक खुले युद्ध में बदल सकते हैं.'
'एयरपावर एट 18,000 : द इंडियन एयर फोर्स इन द कारगिल वार' रिपोर्ट में कहा गया है, 'लेकिन कारगिल युद्ध से यह भी पता चलता है कि परमाणु प्रतिरोध से ही युद्ध को टाला नहीं जा सकता है. भारत के उत्तरी सीमा पर पाकिस्तान और चीन से भविष्य में पारम्परिक युद्ध की सम्भावना बनी हुई है और भारतीय रक्षा संस्थानों को इसके अनुरूप तैयार रहना चाहिए.'
भारतीय वायु सेना की भूमिका अहम
रिपोर्ट में कहा गया, 'कारगिल युद्ध भारतीय सैन्य इतिहास में मील का पत्थर है और इससे भारत के सामने भविष्य के युद्ध की चुनौती का पता चलता है.' रिपोर्ट में कहा गया कि यह युद्ध एक ऊंचे पहाड़ी परिस्थिति में वायुशक्ति के प्रयोग का उदाहरण प्रस्तुत करता है और इससे भारत की भावी वायु शक्ति को समझने का मौका मिलता है.
रिपोर्ट के मुताबिक इस युद्ध में वायु सेना की महत्वपूर्ण भूमिका रही, लेकिन इसी समय भारत की सैन्य क्षमता की कुछ खामियों का भी पता चलता है. रिपोर्ट के मुताबिक कश्मीर में पाकिस्तान की घुसपैठ से भारत की चौकसी की खामी का पता चलता है.