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तालिबान के हाथ में जैसे ही 15 अगस्त 2021 को काबुल का कब्जा आया पूरी दुनिया में हंगामा सा मच गया. अशरफ गनी की सरकार के सरेंडर के ऐलान के साथ ही अफगानिस्तान की राजधानी काबुल छोड़कर भागने वालों की लाइनें लग गई. काबुल की सड़कों पर तालिबानी बंदूकधारियों के कब्जे से पहले ही हजारों गाड़ियां पड़ोसी देशों की सीमाओं की ओर भागने लगीं. काबुल एयरपोर्ट से विमान पकड़कर परिवार के साथ बाहर निकल जाने की मारामारी की तस्वीरों ने पूरी दुनिया को झकझोर कर रख दिया.
गोलियां बरसाते तालिबानी लड़ाके और खतरे के बावजूद परिवार को लेकर एयरपोर्ट की ओर भागते अफगानी लोग, छोटी-छोटी बच्चियों को कंटीले तारों के ऊपर से अमेरिकी सैनिकों की ओर उछालती मांओं की तस्वीरें और विमानों के पहियों और विंग्स पर लटककर अफगानिस्तान से बाहर निकल जाने की जानलेवा कोशिश करते लोगों की भीड़ पूरी दुनिया ने देखी. ये हालात अभी भी जस की तस है. अभी भी काबुल से बाहर निकलने वालों की भीड़ काबुल एयरपोर्ट पर लगी हुई है लेकिन अफगानिस्तान का ये मानवीय संकट उससे बहुत बड़ा है जितना काबुल एयरपोर्ट की तस्वीरों में दिख रहा है.
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कहां ले जाए जा रहे अफगानिस्तान से निकाले गए लोग?
अफगानिस्तान छोड़कर भाग रहे शरणार्थियों की तादाद अभी लगातार बढ़ती ही जा रही है. अमेरिका के अनुसार 15 अगस्त के बाद से अब तक विमानों के जरिए वह 80 हजार से अधिक लोगों को निकाल चुका है. इसी तरह ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, यूक्रेन समेत तमाम देश अपने-अपने लोगों और अफगान नागरिकों को वहां से निकाल रहे हैं. भारत ने भी वहां फंसे भारतीयों और अफगान सिख और हिंदुओं को निकालने के लिए बड़ा रेस्क्यू ऑपरेशन शुरू किया है. हर रोज दो विमान दोहा के लिए निकल रहे हैं और दोहा होकर भारतीयों को अफगानिस्तान से निकालकर स्वदेश लाया जा रहा है.
ये शरणार्थी संकट उससे भी बड़ा
तालिबान राज आने के बाद से अफगानिस्तान छोड़कर भागते लोगों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है. एक तरफ काबुल एयरपोर्ट से लोगों को निकाला जा रहा है तो दूसरी ओर पड़ोसी देशों की सीमाओं पर भी परिवार के साथ अफगानी लोग बड़ी संख्या में शरण लेने पहुंच रहे हैं. अमेरिका, कतर, ब्रिटेन, जर्मनी, यूएई समेत कई देशों में इन शरणार्थियों को रखा जा रहा है.
पड़ोसी देशों की सीमाओं पर क्या हालात?
अफगानिस्तान की सीमा 5 देशों से लगती है. ईरान, पाकिस्तान, उज्बेकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान और ताजिकिस्तान. तालिबान के पूरी तरह सत्ता में आने के महीनों पहले ही अफगानी लोगों को खतरा साफ दिखने लगा था. जैसे-जैसे एक-एक शहर तालिबान के कब्जे में आते गए लोगों के पलायन का सिलसिला भी तेज होता गया. कुछ लोगों ने पड़ोसी देशों की सीमाओं की ओर रुख किया तो हजारों लोगों ने अफगानिस्तान के अंदर ही दूसरे इलाकों में शरण ली. यूएनएचसीआर के आंकड़ों को देखें तो तालिबान के कब्जे से पहले से ही पड़ोसी देशों में 22 लाख अफगान रिफ्यूजियों ने शरण ले रखी थी जबकि 35 लाख लोग अशांत इलाकों से निकलकर काबुल-कंधार जैसे शहरों में शरणार्थी जीवन जी रहे थे. तालिबान राज आते ही बाहर भागने का ये सिलसिला और भी तेज हो गया.
काबुल के तालिबान के हाथ में आते ही ताजिकिस्तान, ईरान, उजबेकिस्तान की सीमाओं पर भीड़ लगने लगी. इतना ही नहीं इन पड़ोसी देशों से होकर तुर्की समेत कई और देशों में जाने वाले अफगान शरणार्थियों की तादाद भी बढ़ने लगी. इस बीच, तेजी से आते हुए अफगान शरणार्थियों को रोकने के लिए तुर्की के दीवार खड़ी करने के कदम की पूरी दुनिया में आलोचना हुई.
कितना बड़ा है ये मानवीय संकट?
तालिबानी क्रूरता से बचने की कोशिश कर रहे इन अफगानी शरणार्थियों की मदद के लिए दुनिया के देश आगे आ रहे हैं. ईरान में अफगान सीमा से लगते तीन प्रांतों में इमरजेंसी टेंट लगाए गए हैं. शरणार्थियों को इमरजेंसी मदद दी जा रही है. ईरान को उम्मीद है कि अफगानिस्तान में फिर जब हालात सुधरेंगे तो इन्हें वापस भेजा जाएगा. ताजिकिस्तान बॉर्डर में एक अनुमान के मुताबिक ताजा संकट शुरू होने के बाद 1 लाख से अधिक लोग शरण लेने पहुंच सकते हैं. इसमें बड़ी संख्या में अफगान सेना और वायुसेना के कर्मचारी भी शामिल हैं जिन्हें तालिबान शासन में बदले की कार्रवाई का डर था. उज्बेकिस्तान की सीमा में भी हजारों लोगों के पहुंचने का अनुमान है. वहां भी कई कैंप लगाए गए हैं. पड़ोसी देशों में अफगानी लोग इस मकसद से भी पहुंच रहे हैं कि वह एक बार परिवार समेत देश से निकलने के बाद अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, भारत समेत उन देशों में चले जाएंगे जहां उन्हें सेफ्टी का आभास होगा.
कहां कितने अफगान शरणार्थी?
इस ताजा संकट से पहले ही अफगान शरणार्थियों को लेकर यूनाइटेड नेशंस ने अलार्मिंग रिपोर्ट दी थी. UNHCR के 2020 के आंकड़ों को देखें तो सबसे ज्यादा अफगान शरणार्थियों का संकट पाकिस्तान को प्रभावित कर रहा है. पाकिस्तान में 14 लाख 50 हजार से अधिक अफगान लोगों ने शरण ले रखी है. इसके बाद ईरान में 8 लाख के करीब अफगान शरणार्थी पहुंचे हैं. खासकर ईरान सीमा से सटे शिया हाजरा समुदाय के लोगों मे हिंसा से तंग आकर ईरान सीमा की ओर रुख किया है. देखिए कहां कितने अफगान शरणार्थी?
-पाकिस्तान- 14 लाख 50 हजार
-ईरान- 7 लाख 80 हजार
-जर्मनी- 1 लाख 81 हजार
-तुर्की- 1 लाख 29 हजार
-ऑस्ट्रिया- 46 हजार
-फ्रांस- 45 हजार
-ग्रीस- 41 हजार
-स्वीडन- 31 हजार
-स्विट्जरलैंड- 15 हजार
-भारत- 15 हजार
-इटली- 13 हजार
-ब्रिटेन- 12 हजार शरणार्थी
इतनी बड़ी तादाद में पहले से अफगान शरणार्थियों के होने के बाद अब पलायन का नया सिलसिला इन देशों की मुश्किल और बढ़ाएगा. इतनी बड़ी आबादी को शरण देना, उनके लिए सुविधाएं प्रदान करना इन देशों के लिए अब नई चुनौती है. अफगानिस्तान से भारत लाए गए कई लोग कोरोना पॉजिटिव पाए गए हैं. उन्हें दिल्ली के आईटीबीपी कैंप में क्वारनटीन किया गया है. इसके अलावा कई अफगान शरणार्थी कनाडा दूतावास के बाहर धरना दे रहे हैं ताकि उन्हें कनाडा में शरण और वहां का वीजा मिल सके ताकि शरणार्थी जीवन की अनिश्चितताओं से निकलकर वे अपना मुस्तकबिल बना सकें.
खासकर महिलाओं-बच्चों के स्वास्थ्य को लेकर चिंता
तालिबान राज के कारण पैदा हुए इस शरणार्थी संकट के बीच संयुक्त राष्ट्र की संस्था UNICEF ने 1 करोड़ अफगानी बच्चों के भुखमरी-बीमारियों के खतरे को लेकर संकट में होने को लेकर चेतावनी जारी की है. यूएन फूड प्रोग्राम ने 200 मिलियन डॉलर के फंड के अफगानिस्तान में खर्च की जरूरत का अनुमान जताया है. दूसरे देशों में शरण ले चुके लोगों के अलावा जो लोग अफगानी धरती पर रह रहे हैं उन्हें भी बड़े संकट से दो-चार होना पड़ रहा है. वर्षों के हिंसक संघर्ष, राजनीतिक अस्थिरता, सूखा, आर्थिक संकट के साथ-साथ कोरोना संकट से भी जूझ रही अफगान जनता के लिए बड़ी मदद की जरूरत बताई है.
रिफ्यूजी संकट पर काम करने वाली यूएन की ही एक और एजेंसी UNHCR ने अफगानिस्तान के पड़ोसी देशों से मानवता के आधार पर बॉर्डर्स खुला रखने, लोगों को शरण देने, उन्हें मानवीय सहायता, इलाज, खाना, बच्चों को पोषण और रहने के लिए जरूरी सुविधाएं मुहैया कराने की अपील की है. शरणार्थियों में एक बड़ी आबादी बच्चों और महिलाओं की है. स्वास्थ्य के लिहाज से इनपर फोकस करने के लिए दुनिया के देशों से मानवीय मदद के लिए आगे आने की अपील एजेंसी ने की है. तालिबान के खिलाफ नॉदर्न एलायंस के उतरने से अफगानिस्तान में अगर गृह युद्ध छिड़ता है तो आने वाले समय में ये संकट और भी गहरा सकता है.