पाकिस्तान के बड़े-बड़े शहरों में जहां तालिबानी आतंकियों की दावतें उड़ा करती थीं, आज वही तालिबानी पाकिस्तान से खतरा मान रहे हैं. एक रिपोर्ट के अनुसार, 21वीं सदी की शुरुआत से ऐसा पहली बार है, जब तालिबान को पाकिस्तान से खतरा महसूस हो रहा है. वरना पिछले दो दशकों में तो तालिबानी आतंकियों के लिए पाकिस्तान किसी 'जन्नत' से कम नहीं था.
अफगानिस्तान के एक स्वतंत्र पत्रकार बिलाल सरवरे ने तालिबान की लीक इंटरनल रिपोर्ट्स के आधार पर जानकारी जुटाकर यह रिपोर्ट तैयार की है.
तालिबान की इंटरनल रिपोर्ट में बताया गया है कि पाकिस्तान के आदिवासी इलाके में आईएसकेपी (इस्लामिक स्टेट ऑफ खुरासान) का ट्रेनिंग कैंप चल रहा है. इसके साथ ही पाकिस्तान से लेकर अफगानिस्तान के लोगार तक आईएसकेपी के सदस्यों के इकट्ठा होने की आशंका जताते हुए तालिबान की ओर से चेतावनी दी गई है.
बता दें कि इस्लामिक स्टेट ऑफ खुरासान एक संगठन है जो पाकिस्तान और अफगानिस्तान के कई इलाकों में एक्टिव है. तालिबान से इसकी कट्टर दुश्मनी है. दोनों के सदस्य एक दूसरे की जान के दुश्मन हैं.
पाकिस्तान और तालिबान, दोनों एक दूसरे के लिए बने परेशानी
मौजूदा समय में तालिबान और पाकिस्तान के संबंध ठीक नहीं चल रहे हैं. जहां एक तरफ तालिबान को पाकिस्तान से खतरा महसूस हो रहा है तो वहीं दूसरी तरफ पाकिस्तान को तालिबान के साथ दोस्ती रखने के गंभीर परिणामों को भुगतना पड़ रहा है. तालिबान से यारी की वजह से ही पाकिस्तान का नाम दुनिया के अधिकतर देशों में आतंक से जोड़ा जा रहा है.
साउथ एशिया डेमोक्रेटिक फोरम (SADF) का मानना है कि, अफगान तालिबान की शुरुआत से ही जिस पाकिस्तान ने सीमापार आतंकवाद को बढ़ावा दिया और लगातार अफगान तालिबान की सराहना की, वह अब इसके नतीजे भी भुगत रहा है.
हालांकि, अब पाकिस्तान को सिर्फ एक अफगान तालिबान समूह से नहीं बल्कि पाकिस्तानी तालिबान समूह से भी तनाव झेलना पड़ रहा है. दोनों तालिबान संगठन की सोच भी एक है और इरादे भी एक हैं, जिसका नुकसान पाकिस्तान को मिल रहा है.
एसएडीएफ रिपोर्ट के अनुसार, अगस्त 2021 में जब तालिबान ने अफगानिस्तान पर कब्जा किया था, तब पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने अफगान तालिबान की सराहना की थी. इमरान खान ने कहा था कि तालिबान ने सत्ता पाकर गुलामी की जंजीरों को तोड़ दिया है.
तालिबान के अफगानिस्तान में आने के बाद से बढ़ गया पाकिस्तान में आतंक
एसएडीएफ की रिपोर्ट में कहा गया कि जब से तालिबान ने अफगानिस्तान पर कब्जा किया है, तब से पाकिस्तान में आतंकी वारदात 50 फीसदी तक बढ़ गई है. इनमें अधिकतर वारदात पाकिस्तानी तालिबान ने की, जिसमें अफगान तालिबान का भी पूरा समर्थन रहा.
एसएडीएफ की रिपोर्ट में आगे कहा गया कि, पिछले दो दशकों में पाकिस्तान के पास पूरा मौका था कि वह विदेश नीति के नाम पर जिहादी आतंकवाद को रोक सकता था. इससे उसके संबंध पड़ोसी देश भारत से भी अच्छे हो जाते और कई तरह का फायदा भी मिलता.
एसएडीएफ रिपोर्ट में कहा गया कि, पाकिस्तान को सेना और आम नागरिकों के बीच संबंधों को सुधारने की जरूरत है, अल्पसंख्यकों की सुरक्षा और आर्थिक विकास की जरूरत है. ना कि इसकी कि पाकिस्तानी नेता अमेरिका और नाटो सदस्यों के खिलाफ जाकर तालिबान के साथ रिश्ते बनाए रखे.
एसएडीएफ में डायरेक्टर ऑफ रिसर्च सीग फ्राइड ओ वूल्फ कहते हैं कि, आज जिस आतंकवाद का पाकिस्तान सामना कर रहा है, यह इमरान खान की सरकार की गलती का नतीजा नहीं है. यह साल 1947 के बाद से नेताओं और आर्मी के फैसलों की वजह कई अहम मौके गंवाने और गलत नीतियों का नतीजा है.