पाकिस्तान और अफगान तालिबान आज कट्टर दुश्मन हैं, दोनों एक-दूसरे के सैनिकों की मौत का जश्न मनाते हैं. अब अफगान तालिबान समर्थक-TTP पाकिस्तान में उसकी फौजी चौकियों पर कब्जा जमा रहा है. वहीं, पाकिस्तान फौज मोर्चा छोड़कर भाग रही है. आखिर अफगान तालिबान पाकिस्तान का कट्टर दुश्मन कैसे बन गया, जिसकी मदद कभी पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी ISI ने अमेरिका से लड़ने में की?
पाकिस्तानी फौज के जनरल अब तक के सारे युद्ध हारने के बाद भी सीने पर मेडल का मेला सजाए घूमते हैं, उनकी खिल्ली किसी देश की सेना नहीं बल्कि तहरीक-ए-तालिबान नाम का आतंकी संगठन उड़ा रहा है. TTP के लड़ाके जहां जश्न मना रहे हैं वो पाकिस्तान का इलाका है. ये पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वाह के बाजौर के सालारजई क्षेत्र का सैन्य बेस है. यहां पाकिस्तानी फौज के जवान तैनात थे. पाकिस्तानी फौज के मोर्चे पर TTP ने अपना झंडा फहरा दिया है और ये पाकिस्तान की लंबी-चौड़ी फौज के लिए शर्मसार करने वाली तस्वीर है.
TTP वो पाकिस्तानी आतंकी संगठन है, जिसने अफगान तालिबान के साथ अफगानिस्तान से अमेरिका को खदेड़ने के लिए बरसों तक जंग लड़ी. इसमें पाकिस्तानी फौज उसकी मदद करती रही, लेकिन अब वही TTP पाकिस्तानी फौज के लिए खतरा बन चुका है. 28 दिसंबर को अफगान तालिबान ने पाकिस्तान के सरहदी इलाकों पर जोरदार हमला किया. इसमें TTP ने भी उसका साथ दिया. बताया जा रहा है कि इस हमले में 19 पाकिस्तानी फौजी मारे गए. इस हमले के बाद पाकिस्तान की सरकार हिल गई. उसकी विदेश विभाग की प्रवक्ता मुमताज जहरा बलोच ने भी कबूल किया कि जिस तालिबान की मदद इतने साल तक पाकिस्तान की हुकूमत करती रही, वो अब उसके लिए मुसीबत बन चुका है.
पाकिस्तान ने अफगान तालिबान को 24 दिसंबर को भड़काया
दरअसल, पाकिस्तान ने अफगान तालिबान को 24 दिसंबर को उस वक्त भड़का दिया, जब उसने अफगानिस्तान पर एयर स्ट्राइक कर दी. तालिबान सरकार के मुताबिक इस हमले में 46 लोग मारे गए जिनमें ज्यादातर बच्चे और महिलाएं थीं. इस हमले के बाद अफगानिस्तान के भीतर लोग गुस्से में थे. वहीं तालिबान सरकार के विदेश मंत्री ने अफगानिस्तान की जमीन पर हमला करने वाले पाकिस्तान को याद दिलाया कि इससे पहले ऐसा करने वाले अंग्रेजों से लेकर सोवियतों और अमेरिकियों का क्या हश्र हुआ था.
अफगान तालिबान ने लिया पाकिस्तानी एयर स्ट्राइक का बदला
28 दिसंबर को अफगान तालिबान ने पाकिस्तानी एयर स्ट्राइक का बदला ले लिया. इसके बाद जब अफगान सैनिक वापस लौटे, तो उनका जोरदार स्वागत किया गया. पूरे इलाके में जश्न का माहौल था. पाकिस्तान ने सपने ने भी नहीं सोचा होगा कि जिस तालिबान की उसने मदद की आज वो उसके सैनिकों की मौत का जश्न मना रहा है. यही नहीं अफगान तालिबान ने अपनी जमीन पर मौजूद TTP पर कार्रवाई करने से भी इनकार कर दिया है. दूसरी तरफ, पाकिस्तान बौखलाया हुआ है, कुछ दिन पहले TTP के हमले में मारे गए अपने जवानों की हत्या का बदला लेने के लिए ही उसने एयर स्ट्राइक की, लेकिन पाकिस्तान अब ऐसा करने से पहले 100 बार सोचेगा. इसकी वजह है तालिबान की तैयारी. उसने पाकिस्तान से लगने वाली सीमा पर बड़ी संख्या में सैनिकों को तैनात कर दिया है. लगातार उसके सैनिक पाकिस्तानी सीमा की ओर तैनाती के लिए बढ़ रहे हैं.
जंग के मोड़ तक कैसे पहुंचा रिश्ता
अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच 2,640 किलोमीटर लंबा बॉर्डर है, जिसे डूरंड लाइन कहा जाता है, ये 1893 में ब्रिटिश भारत और अफगानिस्तान के बीच एक समझौते के तहत तय की गई थी, लेकिन तालिबानी सरकार इसे नहीं मानती वो इसे काल्पनिक रेखा बताती है. इस वजह से भी पाकिस्तान और अफगानिस्तान पर लगातार झड़प होती रहती है, लेकिन अमेरिकी फौज के अफगानिस्तान में रहने के दौरान इनमें काफी कमी आई थी. उस समय अफगान तालिबान को पाकिस्तान से मदद मिल रही थी, अब सवाल ये कि पाकिस्तान और अफगान तालिबान के बीच रिश्ता जंग के मोड़ तक कैसे पहुंचा? तो कहानी यहां से शुरू होती है. सितंबर 2021 में पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी ISI के उस समय के चीफ फैज हमीद जीत का जश्न मनाने काबुल पहुंचे थे. 20 साल बाद अमेरिका अफगानिस्तान छोड़कर जाने पर मजबूर हुआ था. हमीद काबुल के एक 5 सितारा होटल में चाय पीते नजर आ रहे थे. एक विदेशी पत्रकार के सवाल पर उन्होंने कहा था कि अब सबकुछ ठीक हो जाएगा. पाकिस्तान को लग रहा था कि अब वो अपने इशारे पर अफगान तालिबान को चलाएगा, लेकिन जिन अफगानों ने इतिहास में कभी गुलामी कबूल नहीं की. वो पाकिस्तान के गुलाम कैसे बन जाते.
अफगानिस्तान की दो टूक- अब PAK की नहीं सुनेंगे
फरवरी 2023 में अगले ISI चीफ नदीम अंजुम पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ के साथ काबुल पहुंचे, लेकिन तब तक हालात बिगड़ गए थे. इस बैठक में अफगानिस्तान ने दो टूक कह दिया था कि वो पाकिस्तान की अब और नहीं सुनेगा. ये बात रावलपिंडी के पाकिस्तानी जनरलों को हजम नहीं हुई. दूसरी तरफ, भारत ने तालिबान को लेकर अपना रुख उदार रखा. 2022 में भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने साफ-साफ कहा कि अफगानिस्तान को अपना रास्ता चुनने का हक है. भारत ने जहां अफगान तालिबान को गेहूं, दवाइयां और दूसरी जरूरी मदद भेजी, वहीं पाकिस्तानी फौज के साथ अफगान तालिबान और TTP के रिश्ते बिगड़ते चले गए.