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इंटेलिजेंस इनपुट को नजरअंदाज किया US ने, अफगान आर्मी की 'शक्ति' को लेकर मिली थी सूचना

बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार और कुप्रबंधन में डूबी अफगान सेना को लेकर अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन पहले ही इस आर्मी की काबिलियत को लेकर सशंकित थे. 

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बुधवार को काबुल में तैनात तालिबानी लड़ाके (फोटो- पीटीआई)
बुधवार को काबुल में तैनात तालिबानी लड़ाके (फोटो- पीटीआई)
स्टोरी हाइलाइट्स
  • अमेरिका की खुफिया नाकामी की चर्चा
  • अफगानिस्तान के पतन की गति देख भौचक्का US
  • जून में मिले थे बाइडेन-गनी

अफगानिस्तान के पतन और तालिबान के उदय के बाद एक सवाल जो पूछा जा रहा है वो यह है कि अमेरिका की खुफिया एजेंसियां क्या कर रही थीं? क्या राष्ट्रपति बाइडेन तालिबान की वापसी की रफ्तार का आकलन करने में चूक गए?

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ये चेतावनी तो स्पष्ट थी कि अमेरिकी सैनिकों के हटने के बाद अफगान सरकार के पतन की आशंका है. लेकिन ख़ुफ़िया एजेंसियां और राष्ट्रपति बाइडेन यह समझने में चूक गए कि यह कितनी जल्दी होगा? अगर बाइडेन को इसका तनिक भी अंदाजा होता तो वह इस समय का प्रयोग अफगानिस्तान से अमेरिकी सेनाओं और संसाधनों की सुरक्षित वापसी के लिए कर सकते थे. 

अमेरिकी प्रशासन को ये अंदाजा नहीं था कि अफगानिस्तान सरकार का प्रशासनिक और सैन्य ढांचा इतनी जल्दी ढह जाएगा. 

जून में आमने-सामने थे बाइडेन और अशरफ गनी 

इस साल जून में जब बाइडेन और अशरफ गनी आमने-सामने थे तो गनी ने दबाव डाला कि वे अमेरिकी सेनाओं की तात्कालिक निकासी का प्लान रोक दें, क्योंकि ऐसा करना तालिबान को जल्द आगे बढ़ने का न्यौता देना होगा. 

हालांकि बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार और कुप्रबंधन में डूबे अफगान सेना को लेकर जो बाइडेन पहले ही इस आर्मी की काबिलियत को लेकर सशंकित थे. 

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अमेरिका के खुफिया विफलता की चर्चा 

अब अमेरिका में इस खुफिया विफलता की दबे जुबान से चर्चा हो रही है. कई मौजूदा और पूर्व खुफिया अधिकारी इस पर अपनी राय जाहिर कर रहे हैं. 

अंदाजा नहीं था इतनी तेजी से होगा तालिबान का पतन

मात्र दो सप्ताह पहले तक खुफिया एजेंसियों ने सांसदों को ब्रीफिंग में ऐसी कोई चेतावनी नहीं दी थी कि अफगान सरकार को पतन का सामना करना पड़ सकता है. ये जानकारी इस घटनाक्रम से जुड़े एक अधिकारी ने दी है. 

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पिछले हफ्ते जब एक रिपोर्ट प्रकाशित हुई था कि काबुल को 30 दिनों के भीतर घेर लिया जा सकता है तो इसे एक निराशावादी रवैया समझा गया था, हालांकि ये हकीकत में बेहद आशावादी था. क्योंकि लगभग एक हफ्ते में तालिबान ने देश पर कब्जा कर लिया और बिना किसी लड़ाई के काबुल में प्रवेश कर गया. गनी और उनके शीर्ष सहयोगी भाग गए. 

ज्वाइंट चीफ ऑफ स्टाफ के अध्यक्ष जनरल मार्क मिले ने बुधवार को जोर देकर कहा कि उन्हें अफगान के पतन की रफ्तार का कोई संकेत नहीं था. उन्होंने कहा,  "ऐसा कुछ भी नहीं था जो मैंने या किसी और ने देखा हो, जो 11 दिनों में इस सेना और इस सरकार के पतन का संकेत देता हो,".

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इस अधिकारी ने कहा, "अफगान सरकार हमारी अपेक्षा से कहीं अधिक तेजी से भरभराकर गिरी."

अफगानिस्तान के पतन की रफ्तार पर अमेरिका भौचक्का

एक सरकारी अधिकारी ने कहा कि खुफिया एजेंसियों ने व्हाइट हाउस को सूचना दी थी कि अमेरिकी आर्मी की वापसी के बाद तेजी से अफगानिस्तान का सैन्य पतन संभव होगा क्योंकि तालिबान ने प्रमुख प्रांतीय राजधानियों पर कब्जा कर लिया था. हकीकत में भी ऐसा हुआ और कुछ ही दिनों में काबुल का पतन हो गया. 

अब जब अफगानिस्तान के पतन की रफ्तार पर अमेरिका भौचक्का है अमेरिकी खुफिया अधिकारियों का कहना है कि खुफिया एजेंसियां तालिबान को रोकने को लेकर अफगान सेना की क्षमता को लेकर कभी भी बहुत उम्मीद नहीं पाली थी.  

लगभग तीन दशकों तक सीआईए में सेवा देने वाले मार्क पॉलीमेरोपोलोस ने कहा, "चाहे वह छह दिन हो या 30 दिन, मुझे नहीं लगता कि खुफिया एजेंसियों ने कभी भी किसी भी तरह की गुलाबी भविष्यवाणियां की हैं."

क्रिस मिलर, जो 2001 में अफगानिस्तान में तैनात थे और बाद में देश के शीर्ष आतंकवाद रोधी अधिकारी और पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के तहत कार्यवाहक रक्षा सचिव थे, ने इस चुप को प्रलयंकारी अनुपात की खुफिया विफलता कहा है.  उन्होंने कहा, "हमारे देश में जिस तरह से हम अपने खुफिया आकलन करते हैं, उसमें मौलिक रूप से कुछ गलत है, यह सांस्कृतिक और तकनीकी अहंकार है. 

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