अफगानिस्तान के पूर्व CEO अब्दुल्ला अब्दुल्ला ने कहा है कि तालिबान और पाकिस्तान के घनिष्ठ संबंध तीन दशकों से रहे हैं. उन्होंने इसके अलावा अफगानिस्तान में तालिबान की सत्ता को लेकर भी कई सवालों के जवाब दिए. इंडिया टुडे कॉन्क्लेव में अफगानिस्तान की राजधानी काबुल से वर्चुअली जुड़े अब्दुल्ला अब्दुल्ला ने अफगानिस्तान में भारत की भूमिका को लेकर भी अपना नजरिया रखा.
तालिबान की सरकार में पाकिस्तान की भूमिका को लेकर अब्दुल्ला अब्दुल्ला ने कहा, "तालिबान का सबसे करीबी संबंध पाकिस्तान से है. ऐसा आज से नहीं है बल्कि पिछले तीन दशकों से पाकिस्तान और तालिबान के घनिष्ठ संबंध हैं. हालांकि देखने वाली बात ये है कि तालिबान का प्रशासन अफगानिस्तान को ऐसे ही चलाने वाला है जैसा उसने अपने पहले शासनकाल में किया था? क्योंकि अभी तक तो तालिबान ने अफगानिस्तान के लोगों की समस्याओं को लेकर कोई ठोस काम नहीं किया है."
उन्होंने आगे कहा कि अगर तालिबान महिलाओं की शिक्षा, फ्रीडम ऑफ स्पीच, अल्पसंख्यकों, हायर एजुकेशन, इकोनॉमी जैसे मुद्दों के लिए ठोस कदम नहीं उठाता है और शासन का दकियानूसी तरीका जारी रखता है तो इसमें कोई दो राय नहीं है कि अफगानिस्तान अस्थिर रहेगा और इससे किसी का भी भला नहीं होगा. पाकिस्तान को समझना चाहिए कि अफगानिस्तान के अस्थिर रहने में उसका भी कोई फायदा नहीं होने जा रहा है.
'तालिबान के साथ किसी ना किसी रूप में जुड़ना ही होगा'
क्या भारत को अफगानिस्तान में सत्ता संभाल रहे तालिबान को मान्यता देनी चाहिए? इस सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि मुझे लगता है कि भारत भी दूसरे देशों की तरह ही अपना मन बना रहा है कि तालिबान की सरकार को लेकर क्या करना है. निश्चित रूप से मानवीय संकट से गुजर रहे अफगानिस्तान के लोगों के लिए संकट की घड़ी में कोई भी मदद बहुत काम आ सकती है. उन्होंने आगे कहा कि मुझे लगता है कि अफगानिस्तान की नई सत्ता के साथ किसी ना किसी तरीके से तो जुड़ना ही होगा लेकिन भारत पड़ोसी देशों के साथ काम कर सकता है ताकि अफगानिस्तान के लोगों को एक सशक्त और जरूरी मैसेज दिया जा सके कि वे अफगानियों को सपोर्ट करना जारी रखेंगे.
अफगानिस्तान में तालिबान के आने के बाद भारत में आतंकी हमले बढ़ने की आशंका को लेकर अब्दुल्ला अब्दुल्ला ने कहा कि भारत को तालिबान से बातचीत करनी चाहिए और उन्हें सीधे अपनी चिंताओं से अवगत कराना चाहिए.
'गनी को बताया गद्दार'
तालिबान के सत्ता में आने पर अफगानिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति अशरफ गनी की तरह वह काबुल छोड़कर क्यों नहीं भागे? अब्दुल्ला अब्दुल्ला ने इस सवाल के जवाब में कहा कि गनी की तरह यूएई भागना देश से गद्दारी होती और मैं मरते दम तक ये नहीं करूंगा. उन्होंने कहा, काबुल में अपने लोगों के साथ रुकने का फैसला मैंने सोच-समझकर लिया था. जनता ने हमें अपने नेता के तौर पर हमेशा सपोर्ट किया और सम्मान दिया. मुझे यहां रुकने का कोई अफसोस नहीं है. मैं इस देश का नागरिक हूं और मुझे किसी पद की जरूरत नहीं है.