काबुल एयरपोर्ट को लेकर जो डर था वही हुआ, जो हामिद करजई एयरपोर्ट हजारों लोगों की भीड़ के कारण दुनिया का ध्यान खींच रहा था. वो एक के बाद एक धमाकों से दहल गया. जो काबुल एयरपोर्ट तालिबान के अत्याचार से बचने का एकमात्र जरिया बना हुआ था उसे आतंक ने खौफ से भर दिया.
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने कुछ दिन पहले ही काबुल पर आतंकी हमले की आशंका जताई थी और ISIS-K का नाम लिया था. इसके कुछ दिन बाद ही काबुल एयरपोर्ट पर आतंकी हमला कर दिया गया.
14 अगस्त के बाद से काबुल एयरपोर्ट पर लगातार भीड़ बढ़ रही थी. नाटो देशों के सैनिक गर्मी में पस्त होते अफगान नागरिकों की मदद भी कर रहे थे. लेकिन ये तस्वीरें अमेरिकी सुरक्षा तंत्र को डरा रही थीं क्योंकि आतंकवादी इसका फायदा उठा सकते थे.
पुरानी है अमेरिका और ISIS-K की अदावत...
ISIS खुरासान, ISIS का ही एक हिस्सा है. जिसे अफगानिस्तान-पाकिस्तान के आतंकवादी चलाते हैं. इसका मुख्यालय अफगानिस्तान का नांगरहार राज्य है, जो पाकिस्तान के बेहद नजदीक है. तालिबानी कमांडर मुल्ला उमर की मौत के बाद तालिबान के बहुत से खूंखार आतंकवादी ISIS खुरासान में शामिल हो गए. इस तरह ये तालिबान से ही निकला ग्रुप कहा जा सकता है, जिसका मकसद खुरासान राज्य की स्थापना करना है.
ISIS खुरासान की अमेरिका से दुश्मनी क्यों और कैसे शुरू हुई. ये समझने से पहले आपको फारसी शब्द खुरासान को समझना होगा. जिसका मतलब होता है, जहां से सूरत उगता है. तीसरी-चौथी सदी में अरब से निकले लोग आज के ईरान पहुंचे. जहां वो आबाद हुए उसका नाम खुरासान पड़ा, जिसका दायरा बढ़ता गया और वो एक बड़ी शक्ति के रूप में उभरा.
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बाद में बगदादी की नजर खुरासान पर पड़ी और उसने आतंक का खुरासान नक्शा तैयार किया. इस्लामिक स्टेट ऑफ खुरासान के नक्शे में भारत का गुजरात, राजस्थान, पंजाब, हरियाणा और जम्मू कश्मीर आता है. वहीं इसमें आधा चीन, पाकिस्तान, ईरान, तुर्कमेनिस्तान, उज्बेकिस्तान, कजाकिस्तान. किर्गिस्तान आता है.
लेकिन अमेरिका से इसकी अदावत कई साल पहले शुरू हुई जब अमेरिका ने इसे तालिबान से बड़ा खतरा मानते हुए इसपर एयरस्ट्राइक शुरू की. इन हमलों की वजह से ISIS-K की ताकत काफी कमजोर हो गई. अमेरिकी हमलों की वजह से साल 2016 तक ISIS-K में 1500 से 2000 आतंकवादी ही बचे थे. लेकिन 13 अप्रैल 2017 को अमेरिका ने इस आतंकवादी संगठन को सबसे बड़ी चोट पहुंचाई और उसके ठिकाने पर सबसे बड़ा गैर-परमाणु बम गिरा दिया.
अमेरिका ने अफगानिस्तान के नांगरहार राज्य में मदर ऑफ ऑल बम को ISIS-K मुख्यालय के ठीक ऊपर गिराया जिसमें तीन दर्जन से ज्यादा आतंकवादी एक झटके में मारे गए थे. लेकिन इसके बावजूद ये धीरे-धीरे एक बड़े आतंकवादी संगठन में तब्दील हो गया.
साल 2020 में ISIS-K ने शिहाब अल-मुहाजिर को अपना नया लीडर घोषित कर अफगानिस्तान को दहला दिया. पिछले साल ISIS-K ने सिखों के गुरुद्वारे पर हमले के अलावा काबुल में एक महिला अस्पताल को भी निशाना बनाया. इस हमले में 24 महिलाओं और नवजात बच्चों की मौत हो गई. मरने वाली महिलाओं में ऐसी महिलाएं भी शामिल थीं जो कुछ ही देर में बच्चों को जन्म देने वाली थीं.
भविष्य के लिए खतरे के संकेत?
इस घिनौनी हरकत को अंजाम देकर ISIS-K ने साबित कर दिया कि वो तालिबान से भी खूंखार आतंकी संगठन है. काबुल एयरपोर्ट में जो हुआ उसे जानकार खतरे की बड़ी घंटी करार दे रहे हैं. क्योंकि अफगानिस्तान आतंक के अलग-अलग संगठनों का केंद्र बन चुका है. जो आने वाले वक्त में पूरी दुनिया के लिए नासूर साबित हो सकता है.
क्या अफगानिस्तान आतंकवादियों के बीच जंग का मैदान बनने जा रहा है? क्या अफगानिस्तान में आतंकियों के बीच होड़ शुरू हो चुकी है? काबुल में हुए इन सिलसिलेवार धमाकों में एक बड़ा संदेश छिपा है ये धमाके बता रहे हैं कि दुनिया को सिर्फ लश्कर-ए तैय्यबा, जैश-ए-मोहम्मद, तालिबान से ही खतरा नहीं है. ISIS पहले की तरह अब भी खतरा बना हुआ है, जिसके हमले की भनक अमेरिका को पहले ही लग चुकी थी.
ISIS-K ने काबुल में धमाके करके ये जता दिया कि वो आने वाले वक्त में इससे भी बड़े आतंकवादी हमलों को अंजाम दे सकता है. भले ही उसे महिलाओं और छोटे-छोटे बच्चों का खून ही क्यों न बहाना पड़े. इस धमाके से पहले तालिबान खुद को बदला हुआ आतंकवादी संगठन साबित करने में लगा था. जो अपनी जमीन का इस्तेमाल किसी देश के खिलाफ नहीं होने देगा. लेकिन काबुल में हुए धमाके ने बता दिया है कि पाकिस्तान की तरह वहां पर आतंक की जड़ें बहुत गहरी हैं.
(रिपोर्ट: आजतक ब्यूरो)