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अफगानिस्तान (Afghanistan) पर 20 साल बाद फिर से तालिबान (Taliban) का कब्जा हो गया है. राष्ट्रपति अशरफ गनी (Ashraf Ghani) ने देश छोड़ दिया है. लोग भी अपनी जान बचाने के लिए वहां से हर कीमत पर निकलने की कोशिश कर रहे हैं. लेकिन अब भी एक ऐसा प्रांत है, जिसे तालिबान कब्जा नहीं पाया है. उसका नाम है 'पंजशीर'. अफगानिस्तान के 34 प्रांतों में से एक पंजशीर (Panjshir) देश के उत्तर-पूर्वी इलाके में पड़ता है. ये ऐसा प्रांत है जिसे न तो तालिबान कब्जा पाया और न ही कभी सोवियत रूस जीत पाया.
अगर पंजशीर ने तालिबान के सामने सरेंडर कर दिया तो ये अपने आप में एक बहुत बड़ी खबर होगी क्योंकि तालिबान और अलकायदा (Al-Qaeda) ने मिलकर 9/11 के हमले से दो दिन पहले अहमद मसूद के पिता अहमद शाह मसूद (Ahmad Shah Massoud) को फिदायीन हमले में मार दिया था. अफगानिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति हामिद करजई (Hamid Karzai) ने अहमद शाह मसूद को राष्ट्रीय नायक का खिताब दिया था. उन्हें पंजशीर का शेर भी कहा जाता है. अहमद शाह मसूद और उनके सहयोगियों ने साथ मिलकर तालिबान के राज को खत्म करने में अहम भूमिका निभाई थी.
هنوز قلب در سینه داغدار میتپد برای زنده ماندن.
— Panjshir_Province (@PanjshirProvin1) August 16, 2021
Panjshir is the only hope for freedom pic.twitter.com/pGwgk0fWtz
पंजशीर के नेता अहमद मसूद (Ahmad Massoud) ने तालिबान के सामने सरेंडर करने से मना कर दिया है. उनका एक बयान सामने आया है, जिसमें वो तालिबान से बात करने के लिए तैयार होने की बात कर रहे हैं. हालांकि, सोशल मीडिया पर कुछ रिपोर्ट्स में दावा किया जा रहा है कि पंजशीर के नेताओं ने तालिबान के सामने सरेंडर कर दिया है, लेकिन इसकी पुष्टि पंजशीर के नेताओं ने नहीं की है.
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उपराष्ट्रपति और अहमद मसूद की हुई मुलाकात!
पंजशीर के नेता अहमद मसूद और अफगानिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति अमरुल्लाह सालेह की मीटिंग की एक तस्वीर भी सामने आई है. काबुल पर तालिबान के कब्जे के बाद अमरुल्लाह सालेह को आखिरी बार पंजशीर में ही देखा गया है. बताया जा रहा है कि अमरुल्लाह सालेह अहमद मसूद के साथ मिलकर तालिबान से मुकाबला करने की रणनीति बना रहे हैं.
32 साल के हैं अहमद मसूद
अहमद मसूद का जन्म 10 जुलाई 1989 को हुआ था. उनके पिता अहमद शाह मसूद को एक समय में अफगानिस्तान में सबसे ताकतवर माना जाता था. 80 के दशक में अहमद शाह मसूद ने सोवियत रूस की सेना का डटकर मुकाबला किया था और बाद में जब तालिबान यहां आया तो वो भी पंजशीर पर कब्जा नहीं कर पाया था. 9 सितंबर 2001 को अलकायदा और तालिबान ने मिलकर अहमद शाह मसूद की हत्या कर दी थी.
अहमद मसूद भी अपने पिता के ही नक्शे कदम पर चल रहे हैं और तालिबान का डटकर मुकाबला कर रहे हैं. पंजशीर को आखिरी उम्मीद के तौर पर देखा जा रहा है. अहमद ने लंदन के किंग्स कॉलेज से वॉर स्टडीज की पढ़ाई की है. इसके बाद उन्होंने इसी कॉलेज से इंटरनेशनल रिलेशन में मास्टर्स डिग्री ली. 2016 में अहमद वापस अफगानिस्तान लौट आए और 2019 में उन्होंने राजनीति में एंट्री की.