अफगानिस्तान में लोग जिंदगी और मौत की जंग से जूझ रहे हैं. अकाल, कोरोना महामारी और तालिबान राज में अफगानिस्तान की आबादी के एक बड़े हिस्से का मकसद सिर्फ सर्वाइवल है. तालिबान भी आर्थिक मदद रुक जाने की वजह से कैश की किल्लत से जूझ रहा है. तालिबान लोगों को अब कैश के बदले गेहूं दे रहा है.
काबुल में मजदूर का काम करने वाले खान अली के परिवार में छह लोग हैं. मार्केट ट्रेडर के तौर पर जॉब गंवा देने के बाद उसे अपना परिवार का पालन-पोषण करने में काफी कठिनाइयां आ रही हैं. नकदी संकट से गुजर रही तालिबान सरकार के इस प्रस्ताव के बारे में जब खान अली को पता चला तो उसने इसे फौरन स्वीकार कर लिया. खान अली ने रायटर्स के साथ बातचीत में बताया कि अभी के लिए ये ठीक है. कम से कम हम भूख से तो नहीं मरेंगे. तालिबान खान अली को प्रतिदिन दस किलो आटा दे रहा है. वहीं खान अली पूरा दिन अफगानिस्तान के पानी और जल निकासी की व्यवस्था को दुरुस्त करने का काम करता है.
हाल ही में यूएन की एक रिपोर्ट सामने आई थी जिसमें कहा गया था कि अफगानिस्तान में सिर्फ पांच प्रतिशत परिवार ऐसे हैं जिनके पास पर्याप्त तौर पर खाने के संसाधन मौजूद हैं. खान अली ने कहा कि ये निश्चित रूप से पर्याप्त नहीं है, लेकिन इस स्थिति में जहां सभी अफगानी लोग काम की कमी और गरीबी को लेकर शिकायत कर रहे हैं, ये अच्छा है.
'तालिबान से नहीं उम्मीद, हम बस जिंदा रहने की कोशिश कर रहे'
वहीं, अब्दुल नाम के शख्स ने कहा कि अफगानिस्तान में जीवन के लिए कोई खास उम्मीद नहीं बची है, हमारी दुनिया खत्म हो चुकी है. हम बस किसी तरह जिंदगी गुजर बसर कर रहे हैं. अब्दुल को भी काम के बदले गेहूं का भुगतान मिलता है. तालिबान सरकार के आर्थिक और भुखमरी संकट पर काबू पाने की क्षमता पर अब्दुल को यकीन नहीं है लेकिन वो अपने आपको भाग्यशाली समझता है.
उन्होंने आगे कहा कि मेरे जैसे हजारों लोग हैं जो मेरी तरह काम पाने की कोशिशों में जुटे हुए हैं. गरीबी, बेरोजगारी और निराशा ने पहले ही हमारे लोगों को बुरी तरह प्रभावित किया है. अल्लाह जाने क्या होगा, मुझे लगता है कि बहुत कठिन दिन आने वाले हैं. बता दें कि पाकिस्तान सहित पड़ोसी देशों ने अफगानिस्तान को मानवीय संकट से निपटने में मदद करने के लिए हजारों टन गेहूं का दान दिया है, लेकिन भुगतान के साधन के रूप में गेहूं का उपयोग आर्थिक मंदी के हालात को उजागर कर रहा है.