
15 अगस्त... यह तारीख भारत की आजादी का प्रतीक है. लेकिन यही तारीख अफगानिस्तान के वर्तमान से भी जुड़ी हुई है. 15 अगस्त 2021 को तालिबान ने अफगानिस्तान पर कब्जा जमा लिया था. इस तरह अफगानिस्तान में तालिबान की सत्ता वापसी के दो साल पूरे हो गए हैं. लेकिन ये दो साल अफगानिस्तान के लोगों खासकर वहां की महिलाओं के लिए कैसे रहे? यह जानना बहुत जरूरी है.
2021 में अफगानिस्तान की धरती से अमेरिकी सेनाओं की रवानगी हो गई थी. अमेरिकी फौजों ने लगभग 20 सालों तक अफगानिस्तान में मोर्चा संभाला हुआ था. लेकिन अमेरिकी फौजों के लौटते ही तालिबान ने एक बार फिर देश पर कब्जा कर लिया. हालांकि, यूं तो तालिबान ने महिलाओं के हक की बातें करती हुई सत्ता संभाली थी. लेकिन सत्ता में वापसी करते ही वह पलट गया.
महिलाओं के होटल-रेस्तरां में खाने पर रोक
दुनिया गवाह है कि 1990 के दशक में जब तालिबान ने अफगानिस्तान पर कब्जा किया था तो महिलाओं पर तरह-तरह के प्रतिबंध लगाए गए थे. महिलाओं को हाशिए पर डाल दिया गया था. यही वजह थी कि इस बार जब तालिबान ने वापसी की तो महिलाओं के हक और हुकूक की दुहाई दी लेकिन सत्ता में लौटने पर फिर वही ढाक के तीन पात देखने को मिले.
इस बार महिलाओं पर जो प्रतिबंध लगाए गए. वे और भी कड़े थे. महिलाओं के पहनावे पर सेंसरशिप से लेकर होटलों, रेस्तरां सहित सार्वजनिक स्थानों पर खाना खाने, स्कूली में शिक्षा हासिल करने तक पर कड़े प्रतिबंध लगाए गए.
महिला शिक्षा पर गिरी गाज
गर्मी के महीने में जब स्कूल खुले तो तालिबान ने स्कूलों में लड़कियों की शिक्षा पर रोक लगा दी. संयुक्त राष्ट्र सहित दुनियाभर में इसकी आलोचना की गई, जिसके बाद प्राइमरी स्कूलों में लड़कियों को चेहरा और शरीर पूरी तरह ढककर पढ़ने की मंजूरी दी गई.
कामकाजी महिलाओं की संख्या तेजी से घटी
महिलाओं की आजादी से तालिबान की नाराजगी का पता इसी से चलता है कि बीते दो दशकों मे जहां अफगानिस्तान में कामकाजी महिलाओं की संख्या में तेज इजाफा देखा गया. वहीं, 2021 में ऐसी महिलाओं की संख्या 15 फीसदी तक कम हो गई.
महिलाओं के साथ-साथ पुतलों तक के सिर ढके गए
तालिबान की दकियानूसी का पता उसके इसी फरमान से चला था कि वह दुकानों और मॉल में लगे महिला पुतलों का खुला चेहरा भी बर्दाश्त नहीं कर सका और उसने इन पुतलों के चेहरे पूरी तरह से ढकने से आदेश दे दिए थे. हालांकि, शुरुआत में तालिबान चाहता था कि इन पुतलों के सिर कलम कर दिए जाए. लेकिन बाद में इनके चेहरे ढकने का फैसला लिया गया.
संगीत पर लगाई पाबंदी
यूं तो अफगानिस्तान ने इन दो सालों में कई अतरंगी फरमान सुनाए. इनमें से एक फरमान गाने-बजाने पर सार्वजनिक तौर पर पाबंदी थी, जिसे बाद में तालिबान ने सख्ती से लागू किया. कई शादियों में म्यूजिकल इंस्ट्रूमेंट्स बजाने पर उन्हें आग में झोंक दिया गया था.
तालिबान ने इस तरह के अतरंगी फरमानों को सख्ती से लागू करवाने के लिए नैतिकता मंत्रालय को दारोदार सौंपा था. यह एक तरह का मोरल पॉलिसिंग विभाग है जो अफगानी लोगों को सही रास्ते पर चलने की ट्रेनिंग देता है.
महिला टीवी एंकर्स को ढकने पड़े चेहरे
अफगानिस्तान पर कब्जे वाले तालिबान ने सभी टीवी चैनलों में काम करने वाली सभी महिला एंकर्स को शो करते समय अपने चेहरे ढकने के आदेश दिए थे. अफगानिस्तान के सभी मीडिया आउट्लेट्स को यह आदेश लागू करने की सख्त हिदायत दी गई थी.
महिलाओं के अकेले यात्रा करना हुआ बैन
अफगानिस्तान में तालिबान ने जो क्रूरता मचाई है, उससे लोगों में रोष है. एक के बाद एक तालिबान ने ऐसे फरमान थोपे हैं, जिनसे लोगों खासकर महिलाओं का जीना मुहाल हो गया है. तालिबान ने ऐसे ही एक फरमान में महिलाओं को अकेले लंबी दूरी की यात्रा करने की इजाजत नहीं दी. तालिबान ने सख्त हिदायत दी कि महिलाएं अपने करीबी पुरुष रिश्तेदार के साथ ही लंबी दूरी की यात्राएं कर सकती हैं. इसके अलावा हिजाब पहनी महिलाओं को ही गाड़ी में बैठाने के दिशानिर्देश दिए गए थे.
महिलाओं का ब्यूटी सैलून जाना हुआ बंद
तालिबान ने अफगानिस्तान में महिलाओं को निशाना बनाते हु एक बार फिर काबुल सहित देशभर में महिलाओं के ब्यूटी सैलून जाने पर रोक लगा दी. इसके लिए एक मौखिक फरमान जारी किया गया था. तालिबान सरकार ने महिलाओं के ब्यूटी सैलून के लाइसेंस भी रद्द कर दिए थे.
बेरोजगार मुल्क की ओर बढ़ता अफगानिस्तान
अफगानिस्तान में टोलो न्यूज राष्ट्रीय पत्रकार संघ (ANJU) के हवाले से एक रिपोर्ट जारी की गई थी, जिसमें बताया गया था कि देश में तालिबानी राज आने के बाद से कई बदलाव देखने को मिले हैं. इसमें एक बड़ा बदलाव ये है कि देश में 50 प्रतिशत से अधिक पत्रकारों ने अपनी नौकरी खो दी है और लगभग आधे मीडिया आउटलेट बंद हो गए हैं. इसके कई कारण हैं जिसमें से एक वित्तीय संकट भी है.
चरमराती देश की अर्थव्यवस्था
अब चूंकि अफगानिस्तान को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता नहीं दी गई है. ऐसे में तालिबान के कब्जे के बाद अफगानिस्तान को मिलने वाली विदेशी मदद रोक दी गई. कई तरह से आर्थिक प्रतिबंध भी लगाए गए. इसका नतीजा ये हुआ कि देश की अर्थव्यवस्था ने तेजी से गोता लगाया. देश में अब हालात ऐसे हैं कि गरीबी, बेरोजगारी और महंगाई से जनता त्रस्त है और तालिबान मस्त है.
अफगानिस्तान को नहीं मिल पाई अंतर्राष्ट्रीय मान्यता
तालिबान चाहता है कि उसे सरकार के तौर पर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता मिले. इसी जुगत में वह चीन रूस जैसे देशों से उच्चस्तरीय बैठकें भी कर चुका हैं. वह जून में कंधार में कतर के प्रधानमंत्री से मुलाकात कर चुका है. यह अफगानिस्तान के सर्वोच्च नेता और किसी विदेशी अधिकारी के बीच ऐसी पहली सार्वजनिक बैठक थी. लेकिन तालिबान को आधिकारिक तौर पर भी वैश्विक मंच से अलग-थलग किया जा चुका है.
तालिबान में विपक्ष का नामोनिशान नहीं
फिलहाल तालिबान में किसी तरह का राजनीतिक या सशस्त्र विपक्ष नहीं है. अफगानिस्तान में ऐसी कोई शक्ति या गुट नहीं है, जो तालिबान का विरोध कर सके. ऐसे में तालिबान का आत्मविश्वास सातवें आसमान पर है.
बता दें कि तालिबान ने एक आधिकारिक बयान में कहा है कि काबुल पर विजय ने एक बार फिर यह दिखा दिया है कि कोई भी अफगानिस्तान पर कब्जा नहीं कर सकता और यहां नहीं टिक सकता. तालिबान ने 15 अगस्त 2021 को सत्ता पर कब्जा जमा लिया था. पिछले दो साल में तालिबानी शासन ने समाज को पीछे धकेलने में कसर नहीं छोड़ी है. खासकर महिलाओं और लड़कियों के लिए हालात कितने खराब हुए हैं, उसकी गवाह पूरी दुनिया है.